अपना ग़म भूल गए तेरी जफ़ा भूल गए
हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गए
अब तो सोचा है दामन ही तेरा थामेंगे
हाथ जब हमने उठाए हैं दुआ भूल गए
शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो
तुमने वो दर्द दिया है कि दवा भूल गए
10 comments:
क्या बात है अनवर जमाल साहब? यह किस से शिकायत हो रही हैं?
@ जनाब मासूम साहब ! आप बेफ़िक्र रहिए आपसे तो हरगिज़ नहीं हो रही है ।
अब आप 'अमन का पैग़ाम' कहाँ दे रहे हैं ?
कुछ अता पता तो दीजिए जनाब !
@ जनाब मासूम साहब ! आप बेफ़िक्र रहिए आपसे तो हरगिज़ नहीं हो रही है ।
अब आप 'अमन का पैग़ाम' कहाँ दे रहे हैं ?
कुछ अता पता तो दीजिए जनाब !
2. ahsaskiparten.blogspot.com
पर भी आकर nice post देखिए 'औरत की पवित्रता और सुरक्षा के संबंध में' !
:)
@ हंसमुख भाई ! आप हंसे लेकिन यह कोई हास्य कविता नहीं है ।
2, दूसरे ब्लाग पर . ओशो की बात पर भी आप हंसे , उनकी बात पर क्यों हंसे आप ?
:)
वाह वाह !
केसर जी की शायरी से तो मेरे मन की दुनिया ही गर्मा गई ।
हुजूर एक बार गरीबखाने को भी नवाज़ दीजिए , इस ज़र्रा ए नाचीज़ के ब्लाग पर टिप देकर .
हर शेर जानदार है
शुक्र और शिकायत का बेजोड़ जोड़ पेश किया है आपने .
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