Wednesday, September 15, 2010

Thanks to a great swami भारतीय मुस्लिम जगत सदा शंकराचार्य जी का आभारी रहेगा कि उन्होंने पवित्र कुरआन की 24 आयतों के पत्रक छापकर नफ़रत फैलाने वाले गुमराहों की अंधेर दुनिया को सत्य के प्रकाश से आलोकित कर दिया है। - Anwer Jamal

पवित्र कुरआन एक मौज्ज़ा और चमत्कार है। यह नफ़रतों को ख़त्म करता है और मुहब्बत पैदा करता है । यह अपने विरोधियों को अपनी ओर खींचता है और अपना बना लेता है। कुरआन इस्लाम का आधार है। इस्लाम हमेशा कुरआन के बल पर फैला है। कुरआन अपनी सत्यता को खुद मनवा रहा है। यह एक ऐसा चमत्कार है जिसे आज भी देखा जा रहा है। स्वामी जी ने पहले कुरआन के विरोध में किताब लिखी लेकिन उनका दिल साफ़ था इसीलिये जब उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ तो उन्होंने सब के सामने कुरआन का सत्य रख दिया और बता दिया कि इस्लाम आतंक नहीं आदर्श है, जो जानना-मानना चाहे वह जान-मान ले कि कल्याण के लिए मुहब्बत की ज़रूरत है नफ़रत की नहीं । वास्तव में सबका मालिक एक है।
भारतीय मुस्लिम जगत सदा शंकराचार्य जी का आभारी रहेगा कि उन्होंने पवित्र कुरआन की 24 आयतों के पत्रक छापकर नफ़रत फैलाने वाले गुमराहों की अंधेर दुनिया को सत्य के प्रकाश से आलोकित कर दिया है।
 वे धन्यवाद के पात्र हैं और उनके साथ ही भाई ऐजाज़-उल-हक़ भी ,

अल्लाह मालिक, सबका मालिक एक ।
मान लो उसको और हो जाओ नेक ।।

इसके बाद भी कुछ लोग सत्य तथ्य को नहीं मानेंगे, उन्हें शैतान समझना चाहिये। उनका काम फ़ित्ने फैलाना होता है। उनके कुछ आक़ा होते हैं वे उनके प्रति जवाबदेह होते हैं। यह किताब उन गुमराह अफ़वाहबाज़ों की शिनाख्त के लिए भी एक बेहतरीन कसौटी का काम देगी।
शंकराचार्य जी ने बता दिया है कि एक आदर्श भगवाधारी को कैसा होना चाहिये ?
जिसके भी दिल में भगवा रंग के लिये आदर है, उसे उनका अनुसरण करना चाहिये ताकि आने वाले कल में कोई किसी भी रंग को आंतकवाद से जोड़ने की धृष्टता न कर सके।

Friday, September 10, 2010

Eid रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है ईद - Anwer Jamal

नई दिल्ली। सेवाइयोंमें लिपटी मोहब्बतकी मिठास का त्योहार ईद-उल-फित्र भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है। मुसलमानों का सबसे बडा त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोडने का मजबूत सूत्र है बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द्रभरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है।
मीठी ईद भी कहा जाने वाला यह पर्व खासतौर पर भारतीय समाज के ताने-बाने और उसकी भाईचारे के सदियों पुरानी परम्परा का वाहक है। इस दिन विभिन्न धर्मो के लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और सेवाइयांअमूमन उनकी तल्खी की कडवाहट को मिठास में बदल देती हैं। दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मौलाना मुकर्रम अहमद ने कहा कि ईद-उल-फित्र एक रूहानी महीने में कडी आजमाइश के बाद रोजेदार को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला रूहानीइनाम है।
ईद को समाजी तालमेल और मोहब्बतका मजबूत धागा बताते हुए उन्होंने कहा कि यह त्योहार हमारे समाज की परम्पराओं का आइना है और एक रोजेदार के लिए इसकी अहमियत का अंदाजा अल्लाह के प्रति उसकी कृतज्ञता से लगाया जा सकता है। दुनिया में चांद देखकर रोजा रहने और चांद देखकर ईद मनाने की पुरानी परम्परा है और आज के हाईटेकयुग में तमाम बहस मुबाहिसेके बावजूद यह रिवाज कायम है।
व्यापक रूप से देखा जाए तो रमजान और उसके बाद ईद व्यक्ति को एक इंसान के रूप में सामाजिक जिम्मेदारियों को अनिवार्य रूप से निभाने का दायित्व भी सौंपती है। ऑलइंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बेजव्वाद ने कहा कि रमजान में हर सक्षम मुसलमान को अपनी कुल सम्पत्तिके ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीबों में बांटना होता है। इससे समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन तो होता ही है, साथ ही गरीब रोजेदार भी अल्लाह के इनाम रूपी त्योहार को मना पाते हैं। उन्होंने कहा कि व्यापक रूप से देखें तो ईद की वजह से समाज के लगभग हर वर्ग को किसी न किसी तरह से फायदा होता है। चाहे वह वित्तीय लाभ हो या फिर सामाजिक फायदा हो।
मौलाना जव्वाद ने कहा कि भारत में ईद का त्यौहार यहां की गंगा-जमुनी तहजीब के साथ मिलकर उसके और जवां और खुशनुमा बनाता है। हर धर्म और वर्ग के लोग इस दिन को तहेदिल से मनाते हैं। उन्होंने कहा कि जमाना चाहे जितना बदल जाए लेकिन ईद जैसा त्यौहार हम सभी को अपनी जडों की तरफ वापस खींच लाता है और यह एहसास कराता है कि
पूरी मानव जाति एक है और इंसानियत ही उसका मजहब है।
http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=4895&category=6

Tuesday, September 7, 2010

Ghazal Eid ईद

                            ईद

क़फ़स में हंसते थे , गुलशन में जाके रोने लगे
परिन्दे अपनी कहानी सुनाके रोने लगे

बिछुड़ने वाले अचानक जो बरसों बाद मिले

वो मुस्कुराने लगे , मुस्कुराके रोने लगे

खुशी मिली तो खुशी में शरीक सबको किया

मिले जो ग़म तो अकेले में जाके रोने लगे

फिर आई ईद तो अब के बरस भी कुछ मां-बाप

गले से अपने खिलौने लगाके रोने लगे

- शफ़क़ बिजनौरी , निकट मदीना प्रेस

                                बिजनौर - 246701
               जनाब शफ़क़ बिजनौरी साहब से मेरी मुलाक़ात दिसम्बर 2008 में जम्मू के ‘वैष्णवी धाम‘ में उस समय हुई जबकि हम हरदम मौत के निशाने पर थे। बचकर घर लौटने की उम्मीद बहुत कम थी और घर से चलते वक्त मैं अपनी वसीयत करके चला था कि अगर मैं इस मिशन में मारा गया तो मेरे बाद उन्हें किन बातों का ख़ास ख़याल रखना है।
ईद क़रीब थी, घरवाले और बच्चे याद आ रहे थे। इसी दरम्यान जम्मू की एक बड़ी आर्ट यूनिवर्सिटी में एक तरही मुशायरे का आयोजन हुआ जिसमें जम्मू के शायर इकठ्ठा हुए। उसमें मेहमान शायर के तौर पर बिजनौर के दूसरे शायरों के साथ जनाब शफ़क़ बिजनौरी को भी बुलाया गया जोकि उस वक्त वैष्णवी धाम में हमारे साथ ही ठहरे हुए थे।
इस ग़ज़ल को मैंने सुना तो मेरी आंखों में आंसू आ गये। मेरी ही क्या वहां मौजूद हर आदमी की आंखें नम हो गयीं। यह ग़ज़ल मैंने उनसे अपनी डायरी में लिखवा ली थी और आज के दिन मैं इसे आपको गिफ़्ट करता हूं। इसे आपके लिए और आज के लिए ही बचाकर रखा गया था और महसूस कीजिये उन मां-बापों का दर्द जो अपने बच्चों को त्यौहार पर नये कपड़े, जूते और खिलौने नहीं दिला पाते। हर वर्ग के ग़रीबों का दर्द त्यौहार पर एकसा ही होता है।
त्यौहार आ रहा है। आपके लिए खुदा की तरफ़ से आज़माईश का एक मौक़ा आ रहा है। आपकी खुशी तभी मुकम्मल होगी जबकि समाज के कमज़ोर वर्ग को भी आप खुशी दे पाएं, अपनी खुशी में उन्हें शरीक कर पाएं।
फ़ितरा एक निश्चित दान है, रोज़े की ज़कात है। इसका मक़सद भी यही है। ईद की नमाज़ को जाने से पहले फ़ितरा ज़रूर अदा कर दीजियेगा।