tag:blogger.com,1999:blog-85662244442567628152024-03-06T13:44:18.245+05:30मन की दुनियाजब अहसास की रूह अल्फ़ाज़ के जिस्म में दाखि़ल होकर ज़ाहिर होती है तो ज़माना उसे साहित्य के नाम से जानता है।DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comBlogger38125tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-11305943988172360132014-07-03T11:14:00.000+05:302014-07-03T11:23:41.578+05:30दज्जाल के रंगरूट<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
दज्जाल आया। मुल्क तबाह किए। कठपुतली सरकारें बिठाईं और चल दिया। जाने से पहले रंगरूट भर्ती किए उन्हें ट्रेनिंग दी। वे रंगरूट ट्रेनिंग पाकर पुरानी सरकार के समर्थकों को मारते, जिन्हें दज्जाल ख़ुद भी मारता रहा है। पुराने फ़ौजियों ने ट्रेनिंग पूरी करने से पहले ही रंगरूटों को मार गिराया। मरने वालों में इस फ़िरक़े के भी थे और उस फ़िरक़े के भी, इस इलाक़े के भी थे और उस इलाक़े के भी लेकिन फिर भी एक फ़िरक़े के शायद ज़्यादा थे। उस फ़िरक़े के मुज्तहिद ने दज्जाली रंगरूटों को मज़लूम शहीद घोषित कर दिया और उनके लिए अल्लाह से दुआए मग़फ़िरत की। इसी के साथ उसने फ़तवा दे दिया कि इन दज्जाली रंगरूटों को मारने वाले ज़ालिम हैं, काफ़िर हैं, इनसे जिहाद किया जाए। </div>
<div style="text-align: justify;">
जज़्बाती अवाम फ़तवे को न मानती तो काफ़िर हो जाती, ऐसा उसके माइंड को पहले से ही कंडीशन्ड कर रखा है। सो जान बचाने के लिए भागने वाले अब ईमान बचाने के लिए मजबूरन जिहाद (?) कर रहे हैं। खुद मर रहे हैं लेकिन दज्जाल के दुश्मनों को भी मार रहे हैं। जिहाद इसलाम (?) के लिए हो रहा है और उसका फ़ायदा दज्जाल को पहुँच रहा है। </div>
<div style="text-align: justify;">
कठपुतली सरकार ने माई बाप दज्जाल से विनती की थी कि जनाब हवाई हमलों से पुरानी सरकार के फ़ौजियों को तहस नहस कर दीजिए, चाहे इसमें अवाम पहले की तरह लाखों ही क्यों न मारी जाए।</div>
<div style="text-align: justify;">
दज्जाल ने खींसें निपोर दीं। बोला, अपना मामला खुद सुलट लो। उसे पता है कि इनसे सुलटेगा नहीं और सुलटता भी होगा तो हम सुलटने थोड़े ही देंगे। जिहाद (?) चल रहा है, चलता रहेगा। </div>
<div style="text-align: justify;">
दज्जाल यही चाहता है।</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVyrXEh8av4WvEvaVDln_nYN1Bg2w_VX7jEATjOIEEraTX_d84IVNb-Sl0Q1pcibEoyzQgjYIPDtVmHWBmPS_HKeD-vQ4lM7JF0vHTOaDMsyy87cGTStzT_A5Bk4fWUxif72Cie2RqKy0/s1600/dajjal1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVyrXEh8av4WvEvaVDln_nYN1Bg2w_VX7jEATjOIEEraTX_d84IVNb-Sl0Q1pcibEoyzQgjYIPDtVmHWBmPS_HKeD-vQ4lM7JF0vHTOaDMsyy87cGTStzT_A5Bk4fWUxif72Cie2RqKy0/s1600/dajjal1.jpg" /></a></div>
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DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-3463549455446718212014-04-10T11:19:00.000+05:302014-04-10T11:19:01.810+05:30लिफ़्ट (कहानी) दूसरा भाग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="color: blue;"><strong><span style="background-color: #fff2cc;"><a href="http://mankiduniya.blogspot.in/2013/12/blog-post.html" target="_blank">लिफ़्ट (कहानी) पहला भाग</a></span><span style="background-color: white;"> पढ़ने के लिए इस शीर्षक पर क्लिक करें।</span></strong></span></div>
<div style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px; padding: 0px; text-align: justify;">
<img alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmn0JTI9aPupw2F3bOesFyTVkDF5RFVlihjPqIoWJ9vabOznOb7PP5bKCNWfwChjEtMP-ajdLSKH_KLpyEe2Kp52sLc0YbE9A1eZaRNPBmyeUOcyP34nqH5dH7YnkyrZ_AHawEJjQXMrw/s1600/lift+tejpal.jpg" /><br />.............................................<br />मेरी चेतना हल्के हल्के डूब रही थी। सीढ़ियों पर ढहते हुए मैंने देखा कि उस लड़की के मुंह से अब क़हक़हों के बजाय चीख़ें निकल रही थीं-‘हेल्प, हेल्प, प्लीज़ हेल्प, समवन हेल्प प्लीज़‘।<br />इंसान तड़पकर पुकारे और मदद न आए यह हो नहीं सकता। उसकी पुकार पर होटल के एक रूम से जो शख्स बाहर निकल कर आया वह एक चाइनीज़ था। उसके बाद एक एक करके और भी कई लोग निकल आए। उस चीनी आदमी ने फ़ौरन मेरे हाथ के दो तीन प्वांइट्स पर दबाव डाला और मेरी हालत नॉर्मल हो गई।<br />मैंने हैरानी से पूछा-‘यह क्या जादू है?’<br />चीनी आदमी ने कहा-‘दिस इज़ सु-जोक’।<br />मैं अपना लिबास दुरूस्त करते हुए खड़ा हुआ। मैंने उस चीनी आदमी का शुक्रिया अदा किया। उसने उस वक्त अपना पूरा नाम जो भी बताया था लेकिन अब उसमें से सिर्फ़ ‘वांग’ ही याद रह गया है। मिस्टर वांग अपने रूम की तरफ़ पलटे तो तमाम लोग भी उनके पीछे पीछे उनके रूम में ही दाखि़ल हो गए। सभी बीमार थे। आजकल दिल, गुर्दे और फेफड़ों की बीमारियां आम हैं और उनसे भी ज़्यादा मन के रोग। मन के रोग जितने जटिल होते हैं, इनका इलाज इतना ही आसान होता है।<br />लड़की की आंखों से पश्चात्ताप के आंसू टप टप ज़मीन पर गिर रहे थे। उसका मन धुल रहा था। वह सीढ़ियों के नीचे खड़ी थी और मैं चन्द सीढ़ियां ऊपर। उसने अपनी पलकें उठाकर मेरी तरफ़ क्षमा याचना के भाव से देखा। ...यानि कि वह सेहतमंद हो चुकी थी।<br />मैं मुस्कुराया और उसकी तरफ़ आगे बढ़कर मैंने उसे अपना कार्ड देते हुए कहा-‘हमारे घर आना। तुम्हें अपनी बेटियों से मिलवाऊंगा। उन्हें अपनी एक नई बहन से मिलकर बेहद ख़ुशी होगी।’<br />उसने ‘हां’ कहने के लिए अपनी गर्दन को हिलाया। मैं लिफ़्ट की तरफ़ बढ़ गया। मैंने मुड़कर देखा तो उसके होंठो पर मुस्कुराहट खेल रही थी जबकि उसकी आंखों में आंसू अभी भी फंसे हुए से थे मगर बहना बन्द हो चुके थे। मैंने अपनी जेब से रूमाल निकाल कर उसकी तरफ़ उछाल दिया। जो हवा में लहराता हुआ ठीक उसके चेहरे पर जा चिपका।<br />लड़की ने रूमाल को अपने सिर पर खींच लिया। लिफ़्ट के बन्द होते हुए दरवाज़े से मैंने उस लड़की का चेहरा देखा। उसका चेहरा अब मेरी बेटियों से मिल रहा था।</div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-63209722861838822052014-03-31T11:08:00.000+05:302014-03-31T11:15:02.925+05:30चाय के ठेले पर विकास पुरूष vikas purush<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<a href="http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/indians" target="_blank">‘क्या असर लाएंगी ‘यूज़ एंड थ्रो’ के शिकार बुज़ुर्गों की तेज़ाबी बद्-दुआएं</a>?’</div>
<div style="text-align: justify;">
के बाद अब पेश है एक कहानी-</div>
<div style="text-align: justify;">
चाय का ठेले पर विकास पुरूष</div>
<div style="text-align: justify;">
अड्डू दादा आजकल आहत हैं। वैसे तो उनका नाम लालवाणी है लेकिन गांव में आधे लोग उन्हें नफ़रत से अड्डू कहकर पुकारते हैं। गांव पर वह किसी अड्डू से कम नहीं थे। बच्चे कांच की गोलियां खेलते हैं तो उसमें ग़लती हो जाए तो जुर्माना भरना पड़ता है। उस जुर्माने को गांव में अड्डू कहा जाता है। अड्डू दादा बंटवारे के समय सिंध से आकर इस गांव में बस गए थे। उनके बसने से बहुत लोग उजड़ गए थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
मुग़ल दौर में किसी बादशाह ने गांव में एक मस्जिद बना दी थी। दस पांच मुसलमान उसमें नमाज पढ़ लेते थे। उसमें एक कुआं भी था। गांव के हिन्दुओं को कुआं पूजन की ज़रूरत पड़ती थी तो वे मस्जिद के कुएं को ही पूज लेते थे। मुसलमान भी कोई ऐतराज़ न करते थे। न मुसलमानों को पता था कि क़ुरआन में क्या लिखा है और न हिन्दुओं ने ही कभी वेद देखे थे। दोनों अपने हिसाब से एडजस्ट होकर अपनी ज़िन्दगी का जुगाड़ फ़रारी की तरह मज़े से चला रहे थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
लालवाणी जी गांव में पधारे तो उन्हें यह सब बड़ा अजीब लगा कि बंटवारे में इतना ख़ून बहा लेकिन फिर भी हिन्दू मुस्लिम प्रेम ख़त्म नहीं हुआ। वह पढ़े लिखे थे। उन्होंने दो चार शास्त्र भी ख़ुद ही बांच लिए थे। विदुर नीति से लेकर चाणक्य नीति तक सब उन्हें कंठस्थ थी। हिटलर के तो वह फ़ैन ही थे। इतनी योग्यता पा लेने के बाद वह गांव से भाईचारे को ख़त्म करने का बीड़ा कैसे न उठाते?</div>
<div style="text-align: justify;">
एक शाम कुआं पूजन करते वक़्त किसी बच्ची के हाथ से गुड़िया कुएं में गिर गई। लालवाणी जी ने चाय नाश्ते का ठेला लगाने के लिए मस्जिद का चबूतर क़ब्ज़ा लिया था। अपने ठेले के लिए पानी वह मस्जिद के कुएं से ही लाते थे। अगले दिन सुबह वह पानी लेने पहुंचे तो उनके सामने एक नमाज़ी ने कुएं से पानी खींचा तो उसके डोल में पानी के साथ एक गुड़िया भी निकल आई। लालवाणी जी के शातिर दिमाग़ को फ़ौरन शैतानी सूझ गई। वह वहीं से चिल्लाते हुए भागे कि काली प्रकट हो गई, काली प्रकट हो गई।</div>
<div style="text-align: justify;">
गांव के बच्चे बड़े सब इकठ्ठा हो गए। इतने में वह बच्ची भी आ गई, जिसके हाथ से वह गुड़िया गिरी थी। वह मौक़ा देखकर चुपके से अपनी गुड़िया उठाकर रफ़ूचक्कर हो गई। अब जो गुड़िया ग़ायब देखी तो लालवाणी जी ने फिर शोर मचा दिया कि काली अंतर्धान हो गई, काली अंतर्धान हो गई।</div>
<div style="text-align: justify;">
गांव के लोगों में काली की पूजा का कोई ख़ास क्रेज़ नहीं था। लालवाणी जी ने इस वाक़ये की न्यूज़ बनाकर मीडिया को दे दी। मीडिया ने तिल का ताड़ बनाकर पेश किया। ख़बर बंगाल पहुंची तो वहां से लोग आना शुरू हो गए। किसी में श्रद्धा थी और कोई महज़ पिकनिक के लिए आ गया था। </div>
<div style="text-align: justify;">
लालवाणी जी ने अपनी मेहनत की कमाई से काली की एक मूर्ति बाज़ार से ख़रीदी और उसे अपने ठेले के पास में बिना प्राण प्रतिष्ठा के ही स्थापित कर दिया। यह एक इन्वेस्टमेन्ट था। इसके बाद उन्हें भारी आमदनी होनी तय थी और हुई भी। वह दूर दराज़ से आने वाले श्रद्धालुओं को काली के प्रकट होने की कथा मिर्च मसाले लगाकर सुनाते। कुछ समय के बाद उन्होंने यह भी कहना शुरू कर दिया कि काली माता ने उन्हें सपने में दर्शन देकर एक भव्य मंदिर बनाने का आदेश दिया है। उन्होंने फ़्लैक्सी पर एक भव्य भवन का नक्शा बनवाकर अपने ठेले पर ही टांग दिया। अब लोग उन्हें चंदा भी देने लगे। उनके चाय नाश्ते की सेल पहले ही बढ़ चुकी थी।</div>
<div style="text-align: justify;">
राजू ठाकुर, जोशीला मनोहर, कालू टंडन और क्षमा दीदी इनके काम में हाथ बंटाने लगे। जब ये छोटे थे तो ये सब लालवाणी जी के ठेले पर बर्तन धोया करते थे। अब ये बहती गंगा में हाथ धोने लगे। जस्सू चौधरी लालवाणी जी के पक्के यार थे। हालांकि वह पास के भूड़ गांव के थे लेकिन उनका दिन चाय के ठेले पर ही हंसते बतियाते बीतता था।</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGDj2FpJhX6wdDxwG_Bvf2mu8_oAYs6JRldF6egi893QiZtsQSWNEyYVvZAQR1NFMwXKiLVvHEv3K_xaKuDBehUGCa1JzuCOtzUMlYF40NSt38rvX_8tIWpt96jbrJ2tIaanz8NUNfuVI/s1600/tea.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGDj2FpJhX6wdDxwG_Bvf2mu8_oAYs6JRldF6egi893QiZtsQSWNEyYVvZAQR1NFMwXKiLVvHEv3K_xaKuDBehUGCa1JzuCOtzUMlYF40NSt38rvX_8tIWpt96jbrJ2tIaanz8NUNfuVI/s1600/tea.jpg" height="181" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
ठेले के आस पास के दुकानदारों की नाक में दम था। कभी उनकी दुकानों में धुआं आता था तो कभी जगह ख़ाली देखकर श्रद्धालु आ धमकते थे। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही उनसे दुखी थे। कुछ ने तो अपनी दुकानें लालवाणी जी को औने पौने दामों में बेचकर अपनी जान की ख़ैर मनाई। श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ देखकर मस्जिद के दो चार नमाज़ियों ने भी कुछ न करना ज़्यादा बेहतर समझा। थाने में शिकायत की ख़ानापूरी करके वे भी ख़ामोश रह गए।</div>
<div style="text-align: justify;">
लालवाणी जी देश भर में मशहूर हो गए। अब वे यात्राएं भी करने लगे थे। वे जहां भी जाते, वहीं प्रेम और भाईचारे का माहौल देखते। जिसे ख़त्म करने के लिए वे जी जान से जुटे हुए थे। उनकी यात्रा के बाद बहुत सी जगहों पर ख़न-ख़राबा और दंगा-फ़साद हुआ लेकिन अब उनका क़द इतना बड़ा हो चुका था कि क़ानून उन्हें सज़ा नहीं दे सकता था। दुनिया की अदालतें सज़ा हमेशा कमज़ोर को देती हैं। </div>
<div style="text-align: justify;">
बहरहाल यात्राओं का दौर ख़त्म हुआ तो लालवाणी जी अपने गांव वापस लौटे। मन्दिर अब केवल कमाई का ज़रिया ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय गौरव का मुददा भी बन चुका था। पढ़े लिखे लोग जानते हैं कि धुआंधार प्रचार से कैसे एक काल्पनिक चीज़ को राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बनाया जाता है। आजकल सत्ता पाने के लिए यही टोटके काम में आते हैं। देश के लिए काला पानी की सज़ा भुगतने वाले नेताओं और क्रांतिकारियों के नाम जनता ने याद नहीं रखे। ऐसे में ऐसी भुलक्कड़ जनता के लिए कोई क्यों मरे, ऐसी जनता की बलि देकर सत्ता का सुख क्यों न भोगे?</div>
<div style="text-align: justify;">
लालवाणी जी अब सत्ता का सुख भोगना चाहते थे। उन्होंने एक पुरानी मरियल सी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। उनकी पार्टी जीती लेकिन गांव का प्रधान उनके बजाय कोई और बन गया। उन्होंने अपना नाम ख़ुद ही वेटिंग लिस्ट में डाल लिया। पड़ोस के रेतीले गांव से जस्सू चौधरी चुनाव जीत गए। अब वह धड़ाधड़ विदेश जाने लगे।</div>
<div style="text-align: justify;">
इसी दौरान एक नया बच्चा विकास चाय के ठेले के पर काम करने लगा। चाय बेचते बेचते वह बच्चे से पुरूष बन गया। सब उसे विकास पुरूष कहने लगे। वह नाम का ही विकास पुरूष न था बल्कि उसने वास्तव में ही बहुत विकास किया था। उसने चाय के ठेले को लालवाणी जी की ख़रीदी हुई दुकानों में ट्रांसफ़र करके उसे एक शानदार रेस्तरां का रूप दे दिया था।</div>
<div style="text-align: justify;">
पहले लालवाणी जी गांव के दूसरे लोगों की तरह कोयले इस्तेमाल करते थे लेकिन विकास पुरूष ने बाहर से गैस मंगवाई। जिसे देखकर गांव के लोगों ने भी गैस का इस्तेमाल शुरू कर दिया। गैस के व्यापारियों को विकास पुरूष के कारण एक नया बाज़ार हाथ आ गया था। विकास पुरूष ने मोबाईल और इंटरनेट का इस्तेमाल शुरू किया तो गांव के हर बुड्डे और जवान के हाथ में नई तकनीक आ गई। नई तकनीक का इस्तेमाल सही कम और ग़लत ज़्यादा हुआ। हॉलीवुड की पिक्चरें सरेआम और पोर्न पिक्चरें छिप छिपाकर देखी जाने लगीं। इससे पार्टनर की डिमांड क्रिएट हुई। डिमांड पैदा हुई तो पार्टनर का जुगाड़ भी गांव में ही होना शुरू हो गया। </div>
<div style="text-align: justify;">
अब पिकनिक की भावना से आने वाले टूरिस्टों में भी पहले के मुक़ाबले बहुत इज़ाफ़ा हो गया। गांव की कुछ लड़कियां तो इन्हीं टूरिस्टों के साथ चली गईं। कुछ के पैर भारी हुए तो मां-बाप गांव से मुंह छिपाकर रात में निकल लिए। पहले किसी एकाध से भूल चूक हो जाती थी तो मां-बाप उसे ठिकाने लगाकर सुखऱ्रू होकर गांव में ही इज़्ज़त से रहते थे लेकिन अब इन लड़कियों का पूरा जत्था था। उन्हें इंटरनेट से नये नये क़ानूनों का अपडेट भी मिलता रहता था।</div>
<div style="text-align: justify;">
ऐसा नहीं है कि इनमें से हरेक के पैर भारी हुए ही थे। ज़्यादातर लड़कियां अपनी केयर करना जानती थीं। पूँजीपतियों ने इन लड़कियों को अपने प्रोडक्ट्स बेचने के साइन कर लिया। लड़कियों की लुभावनी अदाओं के साथ प्रोडक्ट्स का प्रचार हुआ तो सेल बढ़ गई। पूंजीपतियों को विकास पुरूष भा गया। यह सब उन्हें लालवाणी कहां दे पाए थे। वैसे भी अब लालवाणी उर्फ़ अड्डू दादा काफ़ी बूढ़े हो गए थे और उन्होंने ज़िन्दगी भर मन्दिर मुददे को भुनाने के सिवा कुछ और किया भी नहीं था। </div>
<div style="text-align: justify;">
चुनाव क़रीब आए तो पूंजीपतियों ने ठान लिया कि इस बार गांव का प्रधान विकास पुरूष को ही बनाना है। उनकी नज़र गांव की सरकारी ज़मीन पर भी थी जो कि वहां स्कूल, पार्क और अस्पताल बनाने के लिए आवंटित की गई थी। पूंजीपति वहां अपनी फ़ैक्ट्रियां और मिलें खड़ी करना चाहते थे। इसके लिए वे किसानों की ज़मीनें भी हथियाना चाहते थे। उन्होंने विकास पुरूष का टी.वी., रेडियो और इन्टरनेट पर ऐसे ही प्रचार किया जैसे कि वे अपने प्रोडक्ट्स का करते थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
प्रचार का असर रंग लाने लगा तो सबसे पहले अड्डू दादा का रंग उड़ा। वह प्रधान पद से अपनी दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं थे लेकिन आखि़रकार उन्हें छोड़नी ही पड़ी। पास के रेतीले गांव से जस्सू चौधरी को भी वह अपनी पार्टी का टिकट नहीं दिला पाए। जस्सू चौधरी को बुढ़ापे में निर्दलीय खड़ा होना पड़ा, महज़ अपनी आन बचाने के लिए। राजू ठाकुर, जोशीला मनोहर, कालू टंडन और क्षमा दीदी को भी विकास पुरूष के सामने पानी भरने पर मजबूर होना पड़ा। अपनी पार्टी में सभी बंधक से होकर रह गए। हर अहम फ़ैसला विकास पुरूष लेने लगा। वह समझता था कि ऐसा करके वह गांव का प्रधान हो जाएगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
जब अड्डू दादा ने देख लिया कि प्रधान पद तो मेरे हाथ से निकल ही गया तब उन्होंने तय किया कि वह विकास पुरूष को भी प्रधानमंत्री हरगिज़ न होने देंगे। ऐसा निश्चय करके उन्होंने अपने समर्थक राजू ठाकुर, जोशीला मनोहर, कालू टंडन और क्षमा दीदी वग़ैरह को बुलाकर एक ख़ुफ़िया मीटिंग की। इसके बाद जो हुआ वह एक लंबी कहानी है लेकिन कुल मिलाकर यह कि विकास पुरूष जीता तो सही लेकिन प्रधान पद मिला किसी और को। जीते लालवाणी जी भी हैं लेकिन अपमान के अहसास में जीत की ख़ुशी कहीं दब सी गई है। अलबत्ता उनके गुट के साथी विकास पुरूष का सबक़ सिखाकर ज़रूर अच्छा फ़ील कर रहे हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
जिन किसानों की ज़मीनें विकास पुरूष ने बहकाकर पूंजीपतियों को लगभग मुफ़त ही नाम करवा दी थीं। ज़मीन खोकर खाने के लिए किसानों को पैसे की ज़रूरत पड़ी तो उन्हें पूंजीपतियों से भारी ब्याज पर क़र्ज़ लेना पड़ा। क़र्ज़ में दबकर किसी की पत्नी और किसी की बेटी को ब्याजख़ोर से दबना पड़ा और किसी को अपने गले में फंदा डालकर दुनिया से उठ जाना पड़ा। </div>
<div style="text-align: justify;">
विकास पुरूष ने गांव के लिए जो कुछ किया है, उसे याद करके गांव के लोगों की आंखे भर आती हैं, आदर से नहीं बल्कि दर्द के मारे। लालवाणी जी भी कोठी में पड़े रोते रहते हैं। सोचते हैं कि जो सत्ता उनके हाथ ही नहीं आई, उसके लिए उन्होंने बेशुमार लोगों को मरवा दिया। अब अंत समय है। मरने के बाद पुण्य ही काम आना है और वह पाप के मुक़ाबले बहुत कम है। इसी वजह से अड्डू दादा आजकल आहत हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
विकास पुरूष आहत है या नहीं, हमें पता नहीं। किसी भाई बहन को उसका हाल चाल पता चले तो हमें भी बताना।</div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-16392172410449784622013-12-03T12:25:00.000+05:302013-12-05T18:00:59.878+05:30लिफ़्ट Lift<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmn0JTI9aPupw2F3bOesFyTVkDF5RFVlihjPqIoWJ9vabOznOb7PP5bKCNWfwChjEtMP-ajdLSKH_KLpyEe2Kp52sLc0YbE9A1eZaRNPBmyeUOcyP34nqH5dH7YnkyrZ_AHawEJjQXMrw/s1600/lift+tejpal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmn0JTI9aPupw2F3bOesFyTVkDF5RFVlihjPqIoWJ9vabOznOb7PP5bKCNWfwChjEtMP-ajdLSKH_KLpyEe2Kp52sLc0YbE9A1eZaRNPBmyeUOcyP34nqH5dH7YnkyrZ_AHawEJjQXMrw/s1600/lift+tejpal.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
आलीशान होटल की लिफ़्ट ऊपर से नीचे आकर रूकी तो अंदर से एक एक करके सभी निकले और चले गए। मैं इत्मीनान से उसमें दाखि़ल हो गया। मेरे पीछे पीछे लम्बे क़द की एक ख़ूबसूरत लड़की भी लिफ़्ट में आ गई। वह उम्र में मेरी छोटी बेटी जैसी थी लेकिन उसका लिबास मेरी बेटियों जैसा न था। उसने मिनी स्कर्ट से भी छोटा कुछ पहन रखा था और टॉप के नाम पर जो था, वह स्किन कलर में भी था और स्किन टाइट भी। अलबत्ता उसका गला ढीला था, जो उसकी छातियों पर पड़ा दायें बायें झूल रहा था। मुख्तसर यह कि उसका अन्दाज़ पूरी तरह अमेरिकन था। एक औरत जो कुछ छिपाना चाहती है, वह सब यह दिखा रही थी।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>शायद उसने क़ानून के सम्मान के लिए ही कपड़े पहन रखे थे क्योंकि सार्वजनिक जगहों पर नंगा घूमना क़ानूनी तौर पर मना है। लिफ़्ट का बटन दबाने के लिए उसने अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने घबरा कर अपना हाथ रोक लिया। उसने अपनी मंज़िल का बटन दबाकर अपना सनग्लास माथे पर अटका लिया और फिर मेरी तरफ़ देखा। वह मेरे घबराए हुए चेहरे का बग़ौर मुआयना कर रही थी।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उसके बाल, बदन और लिबास से जो मुरक्कब ख़ुश्बू (मिश्रित सुगंध) उड़कर मेरी नाक में आ रही थी। वही मेरे बूढ़े दिल की धड़कनें बढ़ा रही थीं। इस पर यह कि उसने अपने पर्स से एक छोटी सी बॉटल निकाल कर एक घूंट भी पी ली। अब उसके मुंह से व्हिस्की की गंध भी आ रही थी। शराबी नशे में किसी भी हद तक जा सकता है और इसकी हद तो बेहद लग रही थी। मुझ पर बदहवासी तारी हो गई। ए.सी. के बावुजूद मेरी पेशानी पर पसीने के क़तरे नुमूदार हो गए। मैंने जेब से रूमाल निकाल कर अपना माथा साफ़ किया तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैरने लगी।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उसकी मंज़िल आने में अभी कुछ वक्त और था। उसने वक्तगुज़ारी के लिए अपना पर्स खोलकर कुछ तलाश किया। इस तलाश में हर बार वह कोई न कोई चीज़ हाथ में लेकर बाहर निकालती। जिनकी बनावट देखकर और इस्तेमाल की कल्पना करके ही मेरी धड़कनें बेक़ाबू हो रही थीं। इस तलाश में उसने अपने काम की सारी चीज़ें एक एक करके मुझे दिखा दीं। शायद यही उसका मक़सद था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उसका पर्सं भी इम्पोर्टेड था और उसकी चीज़ें भी। पर्स बंद करके उसने एक बार फिर मुझे मुस्कुरा कर देखा। मैं समझ गया कि वह मेरी हालत से लुत्फ़अन्दोज़ हो रही है। कभी कभी लम्हे कैसे सदियां बन जाते हैं, इसका अंदाज़ा मुझे आज हो रहा था।<br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>उसकी मंज़िल पर लिफ़्ट रूकी तो मैं भी उसके पीछे पीछे ही लिफ़्ट से निकल आया। इस जैसी क़ातिल हसीना किसी भी मंज़िल से लिफ़्ट में फिर से दाखि़ल हो सकती थी। मैं दोबारा रिस्क नहीं लेना चाहता था। मैं उसके बराबर से निकला तो उसने बड़ी अदा के साथ अपने बाल समेटे और खुलकर एक क़हक़हा लगाया। मुझे अभी 5 मंज़िल और ऊपर जाना था। मैं सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया। होटल की सीढ़ियां लिफ़्ट के मुक़ाबले ज़्यादा सेफ़ होती हैं। <br />
<span class="Apple-tab-span" style="white-space: pre;"> </span>मैं बूढ़ा हूँ, दिल का मरीज़ हूँ। सीढ़िया चढ़ना मेरे लिए जानलेवा हो सकता है लेकिन फिर भी इज़्ज़त बचाने का यही एक तरीक़ा मुझे नज़र आया। वह मुझे सीढ़ियों पर चढ़ते देखकर और ज़्यादा ज़ोर से हंस रही है। उसकी नज़र के दायरे से निकलने के लिए मैं घबराकर तेज़ तेज़ क़दम उठा रहा हूँ। अचानक मुझे अपना दिल बैठता हुआ सा लग रहा है और मेरी चेतना डूबती जा रही है। पता नहीं अब कभी आंख खुलेगी या नहीं लेकिन मेरी इज़्ज़त बच गई है। मुझे ख़ुशी है कि मैं अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और घरवालों की नज़र में शर्मिन्दा होने से बच गया हूँ।<br />
...<br />
भारतीय नारी ब्लॉग पर हिन्दी ब्लॉगर शिखा कौशिक जी की लघुकथा <a href="http://bhartiynari.blogspot.in/2013/12/blog-post.html" target="_blank">‘पुरूष हुए शर्मिन्दा’</a> पढ़कर हमें यह लघुकथा लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई है जो एक दूसरा पहलू भी सामने लाती है। इससे पता चलता है कि हमारे समाज में कितने रंग-बिरंगे व्यक्ति रहते हैं और यह कि न सभी पुरूष एक जैसे हैं और न ही सारी औरतें एक जैसी हो सकती हैं।</div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-38384059676509543252013-03-22T19:23:00.003+05:302013-03-22T19:34:12.272+05:30पीपल और खजूर, कब तक रहेंगे दूर ? peepal & khajoor<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGIrfQHJdYiey5nqhO0k2dr1UyweQwOrrv6WbmHelEU0eke6K4C3l5vgXUtG5Wxq2JaegM_6fY8RZDCsauuTdsljY8wUhUy5sMI4lnCR3XMS1c-HC_439scjLGDsGnqbS1M6nex-k8Km8/s1600/download.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGIrfQHJdYiey5nqhO0k2dr1UyweQwOrrv6WbmHelEU0eke6K4C3l5vgXUtG5Wxq2JaegM_6fY8RZDCsauuTdsljY8wUhUy5sMI4lnCR3XMS1c-HC_439scjLGDsGnqbS1M6nex-k8Km8/s1600/download.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
वह हरियाली की धरती है। वहां भरपूर पानी है। सर्दी, गर्मी और वसंत हरेक मौसम वहां है। कहीं रेगिस्तान होता है तो कहीं केवल चट्टानें और कहीं महज़ मैदान लेकिन वहां ये तीनों हैं। वहां नदियां भी हैं और उनका सनम समंदर भी। वह वाक़ई बड़ा अजीब देश है। वहां एक ही गांव में पीपल और खजूर एक साथ उगते हैं। वहां के लोग भी ऐसे ही हैं। खजूर वाले आदमी पीपल के नीचे बने चबूतरे पर बैठ जाते हैं और पीपल वाले आदमी खजूर पर चढ़ जाते हैं। गांव में पहले भी ऐसा था और आज भी ऐसा ही है। जिन्होंने गांव छोड़ दिए हैं। उनके मिज़ाज थोड़े बदल गए हैं। उनकी भी मजबूरी है। उन्हें तरक्क़ी करनी है। गांव का चलन शहर में भी बाक़ी रखते तो लोग उन्हें गंवार कहते।</div>
<div style="text-align: justify;">
गांव में आदमी ज़बान का पक्का होता है। शहर में आदमी काग़ज़ का पक्का होता है, ज़बान पर यहां कोई ऐतबार नहीं करता और कोई कर ले तो फिर वह ख़ुद ऐतबार के लायक़ नहीं रह जाता। इस देश की आत्मा गांवों में बसती है। शहर जाने के लिए लोगों ने गांव छोड़ा तो उन्होंने अपनी आत्मा भी वहीं छोड़ दी। पीपल वालों ने भी छोड़ दी और खजूर वालों ने भी छोड़ दी। यहां शहर वालों का मिज़ाज भी सबका एक है।</div>
<div style="text-align: justify;">
यहां के शहर भी अजीब हैं। यहां पीपल नहीं होता लेकिन उसकी याद में कुछ लोग शाखाएं लगा लिया करते हैं। कहते हैं कि हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर रहे हैं। </div>
<div style="text-align: justify;">
कोई पूछ बैठे कि किससे कर रहे हैं तो कहते हैं कि खजूर वालों से !</div>
<div style="text-align: justify;">
शहर में कुछ हो या न हो लेकिन कम्प्टीशन बड़ा सख्त है। खजूर वाले भी कम्प्टीशन में हैं। खजूर में पीपल जैसी शाखाएं नहीं होतीं। सो वे शाखाएं तो नहीं लगा पाए। उन्होंने कैम्प लगा लिए। वे ट्रेनिंग देने लगे। कहते हैं कि हम अपनी रक्षा कर रहे हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
कोई पूछता है कि किस से कर रहे हो तो कहते हैं कि पीपल वालों से!</div>
<div style="text-align: justify;">
पीपल वाले सरकारी ओहदों पर हैं। छोटे से लेकर बड़े ओहदों तक सब जगह यही हैं। कहीं कहीं खजूर वाले भी हैं। पीपल वालों की पांचों उंगलियां तर हैं। खजूर वालों की बांछें तक तर नहीं हो पा रही हैं। ऊपर की कमाई के मामले में भी पीपल वाले ही ऊपर हैं। खजूर वाले भी ऊपर आना चाहते हैं। पीपल वाले उन्हें ऊपर नहीं आने देना चाहते। एक अच्छा ख़ासा संघर्ष चल रहा है। पीपल वालों ने इसे धर्मयुद्ध घोषित कर दिया है तो खजूर वाले इसे जिहाद से कम मानने के लिए तैयार नहीं हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
इसी को राजनीति कहा जाता है। दोनों ही राजनीति कर रहे हैं। पीपल वाले कूटनीति भी कर लेते हैं। सो वे भारी पड़ जाते हैं। शहरों में यही सब चल रहा है। अब थोड़ा थोड़ा गांवों में भी शहरीकरण होता जा रहा है लेकिन फिर भी वहां आत्मा है। वहां अब भी शांति है। </div>
<div style="text-align: justify;">
आज भी शहर वाले गांव पहुंचते हैं तो उनमें आत्मा लौट आती है। उनके मुर्दा ज़मीर ज़िंदा हो जाते हैं। थोड़ी देर के लिए वे इंसान बन जाते हैं। खजूर वाला फिर पीपल के चबूतरे पर जा बैठता है और पीपल वाले खजूरों पर ढेले फेंकने का सुख लेते हैं। जिसके हाथ जो लग जाए, उसी को लेकर ख़ुश हो जाते हैं। किसी के हाथ एक भी न लगे तो उसे ज़्यादा वाला अपनी खजूरों में से दे देता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
यह वाक़ई अजीब धरती है। यहां स्वर्ग की सी शांति है। यहां ईश्वर मिलता है। सारी दुनिया से लोग यहां ईश्वर को ढूंढने आते हैं। जिन्हें ईश्वर नहीं मिलता। प्रेम उन्हें भी मिल जाता है। यहां रिश्ते स्थायी हैं। मरने के बाद तक की बुकिंग एडवांस में रहती है। रिश्ते सबसे बड़ी दौलत हैं। रिश्तों का प्यार सचमुच सबसे बड़ी दौलत है। हर रिश्ते का यहां अलग नाम है। जिस रिश्ते का दुनिया में कोई नाम न होगा, यहां उसका भी अलग नाम होगा। दुनिया का सबसे बड़ा दौलतमंद देश यही है।</div>
<div style="text-align: justify;">
यहां हर आदमी दौलतमंद है। दौलतमंद लोगों के पीछे लुटेरे लग ही जाते हैं। यहां के लोगों के पीछे भी लुटेरे लगे हुए हैं। यहां के लोग ख़तरे में जी रहे हैं। लुटेरे भी अपने ही हैं। इसीलिए लोग ख़ामोश हैं। यहां अपनाईयत बहुत है। लुटेरे अपने हों तो वे उन्हें भी कुछ नहीं कहते।</div>
<div style="text-align: justify;">
यह अपनाईयत देखकर आंखें नम हो जाती हैं। यहां इसी नमी की ज़रूरत है। अल्लामा इक़बाल ने भी कहा है कि</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बड़ी ज़रख़ेज़ है साक़ी‘</div>
<div style="text-align: justify;">
मिट्टी सचमुच अच्छी है, बस एक साक़ी चाहिए।</div>
<div style="text-align: justify;">
अल्लामा इक़बाल ने ये भी कहा था कि </div>
<div style="text-align: justify;">
‘यह दौर अपने बराहीम की तलाश में है‘</div>
<div style="text-align: justify;">
इबराहीम (अ.) के नाम में से ‘इ‘ हटाकर उन्होंने ‘बराहीम‘ कहा तो ब्रहमा का गुमान हो जाता है। सब इन्हें अपना बड़ा मानते हैं और बहुत बड़े बड़ों के ये सचमुच ही बाप हैं। इनका घर आंगन बहुत बड़ा है। पीपल भी इनका है और खजूर भी इनकी ही है। इन्हीं के कुम्भ में अमृत रहता है। जिसके पास भी आज अमृत है। उसे वह इन्हीं के कुम्भ से मिला है। </div>
<div style="text-align: justify;">
इस मिट्टी को अमृत से ही नम होना है। अमृत कुम्भ में छिपाया गया है। वास्तव में परमेश्वर का सबसे गोपनीय नाम ही अमृत है। उस नाम का अंतिम अक्षर ‘ह‘ है और कुम्भ के ‘भ‘ (ब+ह) में यही अक्षर छिपा है। यह रहस्य हमेशा रहस्य नहीं रहेगा। पीपल हमेशा खजूर से दूर नहीं रहेगा।</div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-25247887443491313872013-03-11T15:18:00.001+05:302013-03-11T15:18:23.991+05:30यमराज का प्रेग्नेंसी टेस्ट -आलोक पुराणिक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;">एनबीटी की एक रिपोर्ट ने बताया कि मेडिकल टेस्टों के नाम पर कैसी-कैसी धांधली चल रही है। पहले भी ऐसा कई बार हो चुका है।</span></div>
<span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">एक वक्त था, जब यमराज धरती पर सशरीर अपने भैंसे के साथ आते थे। अब नहीं आते। इस संबंध में शोध करने पर यह कहानी सामने आई है।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">कुछ समय पहले यमराज ऊपर डेथ स्टैटिस्टिक्स चेक कर रहे थे, ज्यादातर लोग किसी बीमारी से नहीं, सदमे से मरे पाए गए। यमराज ने आत्माओं से तफतीश की तो पता चला कि महंगे अस्पतालों, क्लिनिकों में बीमार होकर पहुंचते हैं, तो वो इत्ते महंगे टेस्ट करवाते हैं कि टेस्टों में खर्च रकम देखकर ही मरीज सदमे में मर लेता है।</span></div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17.27272605895996px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">यमराज ने खुद जंबूद्वीपे, भारत खंडे में खुद आकर तफतीश करने की सोची।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">दिल्ली के टॉपमटॉप फाइव-स्टार अस्पताल में यमराज घुसे और बोले ब्लड प्रेशर चेक करवाना है।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">डॉक्टर ने ब्लड-प्रेशर छोड़कर सब चेक किया और टेस्ट लिखे- एमआरआई, पूरे ब्रेन का टेस्ट, यूरिन टेस्ट, हीमॉग्लोबिन टेस्ट, कैंसर टेस्ट, टीबी टेस्ट, हड्डियों में फास्फोरस टेस्ट, आई टेस्ट, प्रेग्नेंसी टेस्ट....। कंसेशनल रेट पर सिर्फ 7 लाख 47 हजार रुपये जमाकर मिलें मुझसे।</span></div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17.27272605895996px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">यमराज हिल गए, बोले- सिंपल बीपी टेस्ट करो।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">यमराज ने डॉक्टर को सेट किया इस आश्वासन पर कि स्विटजरलैंड में एक बड़ी मेडिकल कॉन्फ्रेंस हो रही है, वहां फ्री में आना-जाना और पांच लाख रुपये का पारिश्रमिक जमवा दूंगा। तू ये बता इत्ते टेस्ट काहे को?</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">डॉक्टर बोला- प्रेग्नेंसी टेस्ट, एमआरआई टेस्ट की नई मशीन आई है। उसमें जो इनवेस्टमेंट लगा है, वो कैसे रिकवर होगा।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">यमराज बोले- भगवन मेरे केस में प्रेग्नेंसी का क्या मतलब है?</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">डॉक्टर बोला- होने को कुछ भी हो सके। साइंस में नई-नई चीजें आ रही हैं। फिर इनवेस्टमेंट भी तो रिकवर करना है।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">यमराज धराशायी हुए।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">डॉक्टर बोला- सोच रहा हूं कि ये टेस्ट आपके भैंसे के लिए भी रिकमंड कर दूं। इनवेस्टमेंट भी तो रिकवर करना है।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">यमराज कांपे।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">डॉक्टर बोला- होने को तो कुछ भी हो सके, भैंसे के टेस्ट भी बनते हैं।</span></div>
</span><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: 17px;">उस हादसे के बाद यमराज जंबूद्वीपे, भारतखंडे से इतना डर गए हैं कि यहां सशरीर न दिखते कभी।</span></div>
</span></div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-68838369975155351502013-03-03T11:06:00.000+05:302013-03-11T15:22:10.111+05:30हीरामन की चौथी क़सम -Sudheesh Pachauri, हिंदी साहित्यकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">हीरामन ने हताश होकर चौथी कसम खाई कि अब किसी हीरा बाई की कहानी को ठीक नहीं करेंगे। इतनी मेहनत की और हीरा बाई ने थैंक्यू तक न कहा। हमने उसे बनाया, लेकिन उस थैंकलेस ने एक बार हमारा जिक्र नहीं किया। हम न होते, तो वह आज कहां होती? नाम कमा लिया, तो नजरें फेर लीं! कसम खाते हैं कि आगे से कभी किसी हीरा बाई को कथाकार नहीं बनाएंगे!</span><br />
<div style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">
</div>
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;"><br />रेणु की तीसरी कसम कहानी में तीसरी कसम खाकर हीरामन स्टेशन से बाहर निकले। घर आए। गाड़ी चलाना छोड़ लेखनी चलाने लगे। कथाकार हुए। साहित्य के ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ के अनुकूल सभी देवताओं को पूजा चढ़ाई। संपादक साधे। आचार्यों को प्रसन्न किया। इनाम झटके। चर्चा होने लगी। नाम चलने लगा। इनाम टपकते रहे। अकादमी पर टकटकी लगी।</span><br />
<div style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">
</div>
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">हीरामन भोले थे। गंवई थे। उपकारी थे। रचनाकार थे। चेलों से ज्यादा चेलियां पसंद थीं। चेली देखते ही कहते कि तुम में प्रतिभा है, लेकिन सही मार्गदर्शन जरूरी है। हमें गुरु मानो। हम बतावेंगे कि किस तरह लिखा जाता है। एक दिन हम तुम्हें लेखिका बना देंगे। साहित्य की बयार स्त्रियों की ओर बहती थी। चेलियां चंट थीं। वे हिसाब लगातीं कि हीरा गुरु साहित्य में जिस तिस से जुड़ा है। दिल्ली वाले बड़े-बड़े नाम उसकी मानते हैं। वह अलेखिकाओं को लेखिका बना सकता है, मैं तो लेखिका हूं।</span><br />
<div style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">
</div>
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">हर शहर में संभावनावान लेखिकाएं होती हैं। हर शहर में एक-दो हीरामन हुआ करते हैं। सबको साहित्य की गाड़ी चलाने वाला एक ठो गाड़ीवान चाहिए। बिना एक हीरामन के साहित्य की गाड़ी आगे नहीं बढ़ती। हीरामनों की डिमांड बनी रहती है। हीरामन सब टोटके जानते थे। बिना खर्चा के साहित्य में चर्चा नहीं होती। आसामी देखते, तो कैश की डिमांड बढ़ा देते और आसामिन हुई, तो यों ही कृपालु हो उठते। हिंदी में लेखिकाओं के घोर अकाल को देख वह लेखिका बनाने का अपना ऐतिहासक कर्तव्य निभाने चले थे।</span><br />
<div style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">
</div>
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">उन्होंने ‘नई कहानी’ का ‘द विंसी कोड’ पढ़ रखा था, जो कहता था कि हर लेखक के पीछे एक पत्नी के अलावा एक लेखिका (प्रेमिका) जरूरी होती है। ऐसी ही किसी शुभ घड़ी में उनके पास एक संभावनाशील लेखिका आई। आप हमारी कथा देख लें, यह विनती की। साहित्य की अनजान नगरी में हम नई हैं। आप सर्वज्ञ हैं। हमारी कथा ठीक न लगे, तो ठीक कर दें। हीरामन ने बड़ी मेहनत से कथा करेक्ट की। इतनी तो कभी अपनी करेक्ट न कर सके। लेखिका को प्रकाशक मिल गए। कथा प्रकाशित हो गई और देखते-देखते लेखिका का नाम फैल गया। हर पत्रिका में रिव्यू हो गया। हीरामन की कल्पना से भी स्वतंत्र शक्तियां साहित्य में सक्रिय हो उठीं। सब गुण ग्राहक थे। इनाम-इकराम की बातें फैलने लगीं। लेखिका आजाद हो गई। पंख फैलाने लगी।</span><br />
<div style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">
</div>
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">हीरामन निराशा में डूब गए। बदले की कार्रवाई में उनका मर्द जाग गया। फिल्मी हीरो की तरह कहने लगे: इतना घमंड? हम बना सकते हैं, तो मिटा भी सकते हैं। कसम खाते हैं कि अब कभी किसी हीरा बाई को लेखिका नहीं बनाएंगे! हिंदी में स्त्रियों का अपना पक्ष ज्यों ही आजाद होता है, हीरामनों का मर्दवाद कह उठता है, ‘उसे क्या आता था? मैंने बनाया है उसे लेखिका!’ ऐसे स्त्री-विरोधी वातावरण में अगर कोई लेखिका दुर्दमनीय हो साहित्य में निकल पड़ती है, तो उसकी जय बोलने का मन करता है..।</span><br />
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">साभार दैनिक हिन्दुस्तान दिनांक 3 मार्च 2013</span><br />
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">Source : </span><br />
<h3 class="post-title entry-title" itemprop="name" style="background-color: white; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 18px; font-weight: normal; margin: 0px; position: relative;">
<a href="http://auratkihaqiqat.blogspot.in/2013/03/sudheesh-pachauri.html" style="text-decoration: none;"><span style="color: blue;">हिंदी में स्त्रियों का अपना पक्ष ज्यों ही आजाद होता है, हीरामनों का मर्दवाद कह उठता है, ‘उसे क्या आता था ? (व्यंग्य)-Sudheesh Pachauri</span></a></h3>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-77293754194653615632013-01-22T19:08:00.001+05:302013-01-22T19:08:12.830+05:30समाधान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<h1 align="center" style="color: #334d55; font-family: Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 19px; margin: 0px; padding: 0px;">
<span style="font-family: Mangal; font-size: 16px; text-align: left;">एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।</span></h1>
<div align="left" class="style17" style="font-family: Mangal; font-size: 16px; padding: 0px 0px 10px;">
एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और बहुत सामान बनाया है। <span dir="rtl"> </span>बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।</div>
<div align="left" class="style17" style="font-family: Mangal; font-size: 16px; padding: 0px 0px 10px;">
बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।</div>
<div align="left" class="style17" style="font-family: Mangal; font-size: 16px; padding: 0px 0px 10px;">
फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना करे कि खूब बारिश हो।</div>
<div align="left" class="style17" style="font-family: Mangal; font-size: 16px; padding: 0px 0px 10px;">
एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो <span dir="rtl">?</span></div>
<div align="left" class="style17" style="font-family: Mangal; font-size: 16px; padding: 0px 0px 10px;">
पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना।</div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-9882423155652216582013-01-11T12:56:00.001+05:302013-01-11T12:56:13.720+05:30कहीं नर और वानर ही न बच जाएं दिल्ली में ! (आलोक पुराणिक )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<strong style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;">इकॉनमिक टाइम्स</strong><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;"> (9 जनवरी, 2013) के पहले पेज की रिपोर्ट है कि अब दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव में कार्यरत तमाम कामकाजी महिलाएं अनसेफ एनसीआर से बाहर जाना चाहती हैं। मुझे आशंका है कि गैर-कामकाजी महिलाएं भी अनसेफ दिल्ली-एनसीआर छोड़ने का फैसला ना कर लें। ऐसा न हो कि दिल्ली में सिर्फ नर और वानर बचें।</span><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;">सोचकर घबरा रहा हूं कि दिल्ली से उड़ने वाली फ्लाइट्स में एयर होस्टेस ना मिलें, कई बस कंडक्टरों और ऑटो चालकों की तरह बलिष्ठ और बदतमीज पुरुष एयरहोस्ट मिलें, जो दूसरी बार पानी की मांग करने पर डपट दें- सारी बोतलें ठूंस दूं क्या तेरे मुंह में। एयरलाइंस वाले तो कह देंगे कि जी ये ही हैं, जो दिल्ली में काम करने को रेडी हैं। दिल्ली आने वाले जहाजों की एयरहोस्टेस भी दिल्ली से पचास किलोमीटर पहले ही पैराशूट से कूद जाती हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;">दिल्ली में फैशन शो में जिस सुंदरी को ड्रेस पहनकर रैंप पर चलना होगा, वह सुंदरी अनसेफ दिल्ली में आने से, यहां पर कहीं भी जाने से इनकार कर देगी। एक फैशन डिजाइनर ने मुझसे कहा कि अनसेफ दिल्ली के लिए जिम्मेदार पुलिस वालों को ही ड्रेस पहनाकर रैंप पर चलाना पड़ेगा। वो जो पुलिसजी दिख रहे हैं ना उस ड्रेस में, उनकी जगह रीटाजी की कल्पना कीजिए। उस ड्रेस में यूं तो वह छह फुटे कॉन्स्टेबल हैं, पर उन्हें आप मार्गरीटा समझिए। दिल्ली में काम करने को तो जी ये ही रेडी हो पा रहे हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;">राखी सावंतजी अपनी किसी फिल्म का प्रमोशन करने के लिए अनसेफ दिल्ली आने से इनकार कर देंगी। तब सीन ये होगा कि किसी होटल में राखीजी का हीरो एक पहलवान के साथ बांहों में झूलकर गाना गा रहा होगा। पीछे से डायरेक्टर बताएगा कि इन पहलवानजी को आप राखी सावंत मानिए। दिल्ली में काम करने को तो जी ये ही रेडी हो पा रहे हैं।</span><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><br style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'ARIAL UNICODE MS', mangal, raghu8; font-size: 14px; line-height: 18px;">मुझे लगता है कि अनसेफ दिल्ली में कुछ दिनों बाद विमिन के नाम पर सिर्फ वही बचेंगी, जो विमिन टैक्सी ड्राइवर वाली टैक्सी सेवा संचालित करती हैं, क्योंकि अनसेफ दिल्ली में पुरुष भी विमिन ड्राइवर वाली टैक्सी में ही खुद को सेफ महसूस करेंगे।</span><br />
<span style="background-color: white; font-size: 14px; line-height: 18px;"><span style="font-family: ARIAL UNICODE MS, mangal, raghu8;">http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/dillidamamla/entry/women-in-delhi</span></span></div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-25891963484390619562012-09-23T14:58:00.001+05:302012-09-23T14:58:55.317+05:30Learn Reiki in Ten Minutes<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="http://www.youtube.com/embed/0DDw0BrIXrk?fs=1" width="480"></iframe>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-72969372823297358292012-09-14T11:13:00.002+05:302012-09-14T11:13:40.879+05:30यह व्यंग्य नहीं है, कार्टून तो नहीं ही है -राजेन्द्र धोड़पकर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">जब 25 साल पहले कार्टून बनाना शुरू किया था, तब नहीं सोचा था कि यह इतना संगीन मामला है। ममता बनर्जी ने एक कार्टून को सिर्फ ई-मेल पर फॉरवर्ड करने वाले को किसी महिला की इज्जत पर हमला करने के आरोप में जेल भेज दिया। एक कार्टूनिस्ट नरेंद्र मोदी का कार्टून बनाने के लिए जेल भेज दिया गया। एक कार्टूनिस्ट पर देशद्रोह का इल्जाम लगाकर जेल में डाल दिया गया। अब भी भारतीय दंड संहिता में ढेर सारी धाराएं बची हुई हैं और कार्टूनिस्टों की तादाद उतनी नहीं है। हो सकता है कि एक-एक कार्टूनिस्ट पर 20-20 धाराएं लगा दी जाएं या व्यंग्य के दूसरे क्षेत्रों के लोगों का नंबर लग जाए। अचरज नहीं कि किसी व्यंग्यकार पर 302 यानी हत्या का मामला दर्ज हो जाए। किसी पर डकैती का केस हो जाए। सोच रहा हूं कि अखबार में बाकायदा विज्ञापन छपवा दूं कि मैं हास्य-व्यंग्य से कोई ताल्लुक आइंदा नहीं रख रहा हूं और अपने पिछले तमाम व्यंग्य लेखों या कार्टूनों को भी अमान्य करता हूं। जिन्हें भी भारतीय दंड संहिता का रचनात्मक उपयोग करना है, वे अन्य कार्टूनिस्टों और व्यंग्यकारों पर विभिन्न धाराओं का इस्तेमाल करें।</span><span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;"><br />कई लोग हैं, जिनकी महत्वाकांक्षा व्यंग्यकार कहलाने की है। उनकी जबर्दस्त लगन के बावजूद इस मिशन में वे जरा-सा चूक जाते हैं, उनकी कृतियां हास्यास्पद हो जाती हैं, हास्यजनक नहीं हो पातीं। मैं जेल भिजवाने के इच्छुक लोगों से आग्रह करता हूं कि इन्हें सहर्ष पकड़कर ले जाएं। इससे दो फायदे होंगे, जेल जाने से वे प्रमाणित व्यंग्यकार हो जाएंगे और लोग उनके हास्यास्पद व्यंग्य पढ़ने के कष्ट से वंचित हो जाएंगे। यही बात कुछ कार्टूनिस्टों के बारे में भी सही है। और एक तीसरा फायदा यह होगा कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इन्हें छुड़वाने के लिए मुहिम चलाने की जिम्मेदारी लेखकों, कलाकारों, नेताओं आदि के जिम्मे आ जाएगी, जिसमें कोई यह कह भी नहीं सकेगा कि ये बेहूदा व्यंग्य लिखते हैं या कार्टून बनाते हैं। मैंने अपनी ओर से भरसक कोशिश की है कि यह गंभीर लेख बने, इसलिए इसके व्यंग्य हो जाने का खतरा है। लेकिन मैं फिर यह कहना चाहता हूं कि यह व्यंग्य नहीं है।</span>
<br />
<span style="background-color: white; font-family: mangal; font-size: 14px; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;">Source :</span><span style="font-size: xx-small;"><span style="background-color: white; font-family: mangal; letter-spacing: -1px; line-height: 19px; text-align: justify;"> </span>http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-261689.html</span></div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-47192767803910883542012-09-02T11:56:00.001+05:302012-09-02T11:56:50.967+05:30केयर ऑफ स्वात घाटी -मनीषा कुलश्रेष्ठ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="left" style="text-align: justify;">
<div class="image">
<span class="content-image"><img src="http://www.aparajita.org/files/images/77a5f9a607f107e7f4c2dde19d581957.jpg" /></span>
''यह मेरी अस्मिता का प्रश्न है...विद्वता का अभिमान नहीं है मुझे।
ज्ञान पर विश्वास अवश्य है। सब कहें तो कहें कि वाचकनु के ॠषिकुल में
किसी स्त्री ने शास्त्रार्थ में भाग नहीं लिया फिर वह भी याज्ञवल्क्य
जैसे महान ज्ञानी के समक्ष...समूचे राजदरबार के समक्ष राजा जनक के
ब्रह्मयज्ञ में मैं ब्राह्मणत्व और आत्मा को लेकर कुछ प्रश्न उठाने का
साहस बल्कि दुस्साहस करने जा रही हूँ । तुम मुझे रोको मत प्रिय। मेरे
पिता ॠषि वाचकनु और मेरे बालसखा तुम ही ने तो मुझे तर्क का सामर्थ्य
दिया है...तुम दोनों के बीच बैठ कर ही मैं ने यह सीखा है। मैं
तुम्हारी वाग्दत्ता अवश्य हूँ मगर हूँ तो एक स्वतन्त्र इकाई। इस चराचर
विश्व में विद्वजनों के प्रतिपादित नियमों के विपरीत सोचने और प्रश्न
करने या खण्डन करने का तर्क मैंने अर्जित कर लिया है तो क्यों नहीं
अब...याज्ञवल्क्य के समक्ष ऐसा अवसर दुर्लभ होता है। नहीं तुम मुझे
नहीं रोक सकते। तुम्हें मेरी मर्यादा की चिन्ता है नहजारों पुरुषों के
समक्ष, नेत्र और मस्तक उठा कर प्रश्न उठाऊंगी...तो लो मैं ने डाल लिया
दुशाला अपनी यौवनपुष्ट देह पर, कहो तो इस सुन्दर मुख पर भी हवनकुण्ड
की राख मल लूं और कुरूप कर लूं। यह जान लो, तुम और पिता से भी कह दो
कि मेरी यह देह मेरे ज्ञान और प्रतिभा की कारा नहीं बन सकती। नहीं बन
सकती।''<br />
तालियों की गडग़डाहट से थिएटर हॉल गूंज उठा। सुगन्धा हल्के - हल्के
हांफते हुए ग्रीनरूम में चली आई। साथियों ने उसे घेर लिया, फुसफुसा कर
बधाई देने लगे।<br />
'' वाह सुगन्धा, पहली ही बार में झण्डे गाड दिए।''<br />
'' क्या डॉयलॉग डिलीवरी थी। शानदार। दर्शक दम साधे बैठे हैं।''<br />
'' क्या सच ?''<br />
'' हाँ।''<br />
गार्गी बनी सुगन्धा ने एक नजर शीशे पर डाली, विद्रोहिणी, विदूषी
ॠषिकन्या के वेश में उसने अपनी देह को लम्बवत देखा। वह हल्का - हल्का
कांप जरूर रही थी मगर मंच पर बोले संवादों का ओज अब भी देह से
उत्सर्जित हो रहा था। राजा जनक के नौरत्नों में एक रत्न 'गार्गी'।
शास्त्रार्थ में भाग लेने को उत्सुक गार्गी। और सुगन्धा? वह कौन है?
उससे अपनी पहचान की डोर छूटने लगी थी।<br />
उसने रंगीन दुशाला बदला और सफेद दुशाला सीने और कंधों पर लपेट
लिया। जंघा तक लहराते हुए खुले बाल खींच कर पीछे जूडे में बांधेफूल
बालों से निकाल फेंके। उसके चौडे सांवले माथे पर पीले वाटरकलर से
मेकअप आर्टिस्ट निधि ने चन्दन का - सा त्रिपुण्ड उसके माथे पर रचा
दिया। बीच में लाल बिन्दु। वह अपनी बारी आने तक बाकी के संवाद
बुदबुदाते हुए दोहराने लगी।<br />
''भूत, भविष्य और वर्तमान क्या है। ये काल क्या है और किस पर बुना
गया है इस काल का ताना - बाना और बुने जाने की पुनरावृत्तियां किसमें
ओत - प्रोत हैं? महात्मन, स्वर्ग के ऊपर क्या है और धरती के नीचे क्या
है, इन दोनों के बीच क्या है? ये ब्रह्मलोक क्या हैयह कैसे रचा गया और
कब विकसित हुआ?<br />
''गार्गी इतने प्रश्न मत कर कि तेरा ही सर ही फट जाए। ''<br />
याज्ञवल्क्य बना अनुज अपने आसन से उठ खडा हुआ और उसे लाल आंखों से
घूरने लगा। वह डायलॉग भूलने को थी मगरउसने मन से दो पंक्तियां मन से
बोलीं फिर शेष खुद ब खुद जुबान पर आ गईं।<br />
''क्षमा करें, महाराज जनक, मेरा उद्देश्य मेरे प्रश्न व्यर्थ नहीं
हैं।'' सुगन्धा ने प्रश्नवाचक दृष्टि राजा जनक के सिंहासन की ओर डाली।
राजा जनक ने दृष्टि झुका ली।<br />
''महात्मन याज्ञवल्क्य, आप तो मुझे क्षमा करें। जैसे वैदेह या काशी
के किसी योद्धा के किशोर पुत्र अपने ढीली डोर वाले धनुष पर भी बाण चढा
कर युद्ध के लिए किसी को भी ललकार सकते हैं। इन प्रश्नों के पीछे वैसा
ही बालसुलभ साहस ही समझ लें मगर उत्तर अवश्य दें। बस मेरे इन अंतिम दो
प्रश्नों के उत्तर दें, मुझे पता है, आपके पास इन प्रश्नों के सटीक
उत्तर हैं। देखिए न, ये सहस्त्र कामधेनुएं बडी बडी आँखों में
प्रतीक्षा लिए आपके आश्रम के पवित्र वातवरण में हांकी जाने को उत्सुक
हैं।'' कह कर ॠषि वाचकनु की पुत्री गार्गी शांत हो गई और अपने आसन से
उठ कर एक गाय के भोले मुख को सहलाने लगी। तभी<br />
याज्ञवल्क्य का स्वर गूंजा, ''तो फिर, सुन ओ गार्गी, ध्यान से
सुन।''<br />
गार्गी बनी सुगन्धा ने कुछ सुना कि नहीं न जाने कब नाटक खत्म हुआ
उसे पता नहीं चला वह तो मंचसज्जा, अभिनय, परदों के गिरते - उठते क्रम,
प्रकाश - संगीत के महीन जाल के बीच सुन्न खडी थी। तालियां उसे बार -
बार वर्तमान में लाने के प्रयास में थीं। उसके सैलफोन पर श्यामल का
संदेश जगमग कर रहा था। '' शानदार! तुम पर गर्व है, गार्गी।''<br />
मेकअप उतारते हुए उसका ध्यान चेहरे की बांई तरफ गया। बांई आंख के
नीचे एक खंरोच थी और उसके चारों तरफ एक काला और जामुनी निशान बना था।
उसका शरीर ढीला हो गया। वह ओज जाता रहा...बेचारगी घर करती रही। गर्व
से भरी आंखों में पानी भर आया। वह खुद को घसीटते हुए कपडे बदलने के
लिए ड्रेसिंगरूम में ले गई। बाहर आते ही सहकलाकारों ने उसे घेर लिया,
'' सुगन्धा, पहली ही परफॉरमेन्स में ये जलवे!''<br />
''श्यामल को देखा होतावो किस कदर गर्व से झूम रहे थे। कोई उनसे कह
रहा था कि 'वेदों का युग जीवन्त हो गया था और दर्शकों को अपनी दुनिया
में लौटने में समय लगा।''<br />
''सच?''<br />
''हां।''<br />
'' चलो सफल रहा पहला ही शो...कल अखबार भरे होंगे।''<br />
'' भैय्ये, गए वो जमाने जब नाटकों की सफलता राजनीति और फिल्मों के
साथ स्कोर कर पाती थी, रिव्यू आते थे। किसी कोने में छोटी खबर ही छप
जाए तो गनीमत समझना।''<br />
'' पागल है, यह श्यामल सर का नाटक है,अननोटिस्ड नहीं जाने
वाला।''<br />
सबका बाहर निकल कर निरूलाज में डिनर करने का कार्यक्रम पहले से तय
था। श्यामल अपने महत्वपूर्ण मेहमानों और पत्रकारों के साथ बाहर व्यस्त
थे। उसे अपनी हदें पता थीं, चुपचाप उसने बैग उठाया और सबसे विदा
ली।<br />
'' ये क्या यार!''<br />
'' नहीं हो पाऐगा अनुज। छोटा वाला शाम के बाद नहीं रहता मेरे
बिनाफिर मेरे पति भी आज बहुत व्यस्त हैं। छोडो न फिर कभी। बल्कि तुम
सब लोग कभी सुबह घर आओ ब्रेकफास्ट पर, मैं तुम सब को खिलाउंगी पिजा या
थाई फूड।''<br />
'' हां, जल्दी ही तुम्हारे घर टपक पडेंग़े। बिना प्लान..''<br />
'' बाय।''<br />
''गुडनाइट।''<br />
'' सुनो निधि, श्यामल को कहना, मैं जल्दी में थी। कल फोन पर बात
करूंगी।''<br />
थिएटर के गलियारों से निकल कर वह बाहर आई। श्रीराम सेन्टर के खुले
छोटे लॉन में आकर उसने गहरी सांस ली, बालों को क्लचर में बांधा और दो
सीढी उतर कर बस के इंतजार में बाईं तरफ बने एक टीनशेड में खडी हो गयी।
मौसम तो सुबह ही से मुंह बना ही रहा था, अंधेरे के गहराते ही बरसात भी
शुरू हो गई। टिन पर टपकती मोटी बूंदों ने तालियों की याद दिला दी।
क्या उसे ही लेकर थीं वो तालियां। प्रशंसा में बजती तालियां? या मजाक
उडाती तालियां। उसका चेहरे की सूजन पर ध्यान गया।<br />
''बहुत दिनों से देख रहा हूँ। घर से खूंटा छुडा कर भागने लगी हो।
बच्चों की तरफ ध्यान कम रहने लगा है। मान्या का रिपोर्ट कार्ड देखा?
कैसे उसकी पोजिशन पहली से पांचवीं हो गई है हाफइयरली में।''<br />
''जानते हो तुम, उसे चिकनपॉक्स हुए थे।''<br />
'' तब भी तुम घर में कहां बैठी थीं।''<br />
''बहस शुरू मत करो।''<br />
''बहस की बात ही नहीं। बहस की गुंजाइश मैं नहीं छोडता। बस बन्द करो
ये सब और घर में ठहरो थोडा। बच्चों को देखो। जब मेरे ऑफिस में बहुत
व्यस्तता हो, तभी तुम्हारा कोई न कोई शौक मुंह उचकाने लगता है। पहले
फ्रेन्च सीखूंगी। फिर ये थियेटर।''<br />
''विनय, आज मूड्स मत दिखाना, आज मेरा पहला स्टेज परफॉरमेन्स
है।''<br />
'' देखो, नन्नू को बुखार है, मुझे रात देर होगी, आज तुम कहीं नहीं
जा रही हो।''<br />
'' मान्या है न, फिर मैं ने उसे क्रोसीन सिरप दे दिया है, फिलहाल
वह सो रहा है। बस शाम छह से नौ तक की बात है।''<br />
'' नहीं।''<br />
'' प्लीज। नाटक की घोषणा हो गयी है। टिकट बिक चुके हैं। मेरा
लीडिंग रोल है। इसे कोई और नहीं कर पाऐगा।विनय प्लीज।''<br />
'' स्साले, अच्छा घन्टों बाहर डोलने का बहाना ढूंढ लिया है।''<br />
'' तो क्या करुं? बच्चे स्कूल चले जाते हैं, तुम दफ्तर सुबह आठ से
शाम आठ मैं क्या करूं? घर और बच्चे अकेले ने छूटें इसीलिए हमने यहां
रिहर्सल कीं।''<br />
'' ठीक है वो दिन - दिन की बात थी। अब रातों को भी...रात को इस शहर
में बाहर भेज दूं तुम्हें...तुम्हें न सही मुझे तो तुम्हारी सुरक्षा
का ख्याल है।'' वह नर्म पडा।<br />
'' तो तुम साथ चलो।'' उसने भी कोशिश की।<br />
'' बीवी की नौटंकी देखने? हिश्ट।'' वह घने तिरस्कार के साथ बोला।
सुगन्धा चुप रही अगले कुछ मिनट, वह शीशे में देखकर टाई उतारता
रहा।<br />
''आज मेरा डिनर नहीं बनेगा। एक क्लाइंट के साथ डिनर है।बल्कि मैं
चाहता हूँ कि तुम साथ चलो।''<br />
'' क्यों अच्छा इंप्रेशन पडता है, जवान बीवी का?'' कह कर वह जबान
भी नहीं काट पाई थी कि_<br />
'' बकवास....बकवास करती है।'' कह कर विनय ने बांह मरोड दी।<br />
'' मैं बकवास कर रही हूँ नौटंकी और थिएटर में फर्क करने की तमीज़
तो सीख लो।'' उसने बांह छुडा कर उसे धकिया दिया।<br />
'' सीख ली...मेरी मौजूदगी तो मौजूदगी गैरमौजूदगी में भी तेरे
नौटंकीबाज़ यार यहां मजमा लगाए तो रहते हैं। वो तेरा बंगालीबाबू
श्यामल। उसकी फेमिनिस्ट बीवी अनामा जो तमाम मीडिया में फेमिनिज्म का
झण्डा लेकर घूमती फिरती है। तू मत करना कभी ये कोशिश, वरना उसी झण्डे
का डण्डा..... ''<br />
'' तुमसे मुंह लगना बेकार है, बेटी के सामने भी अपना ये गन्दा मुंह
खोलने से बाज नहीं आओगे...मैं जा रही हूँ ।''<br />
'' तू कहीं नहीं जा रही। चुपचाप घर में बैठ।'' कह कर उसने उसे
बिस्तर पर धकिया दिया। वह उठी और बैग उठा कर चलने लगी _ '' तू भी रोक
कर देख ले।''<br />
उसने तमतमा कर उसके चेहरे पर घूंसा मार दिया। अनामिका में पहनी
शादी की अंगूठी की एक खरोंच आंख के पास उभर आई, खंरोंच के आस - पास
तुरन्त सूजन आ गई। वह चेहरा सहलाती हुई तेजी से फ्लैट से उतर आई और
गेट के बाहर आकर खडी हो गई। वह खिडक़ी में से चिल्लाया _<br />
'' बहुत अकड क़े जा रही है ना? फिर सोच लेना, लौट कर घर आने की
जरूरत नहीं है।''<br />
''...''<br />
'' देख जुर्रत मत करना लौटने की।''<br />
एक टैक्सी वाला रुका, वह पीछे आती आवाज उपेक्षित कर टैक्सी में चढ
ग़ई -'' मैट्रो स्टेशन।''<br />
थिएटर पहुंची तो, वक्त अभी बाकी था। लडाई नहीं हुई होती तो बच्चों
को को कुछ खिला कर, बहला कर आती। हडबडाहट में सब रह गया। यूं तो
नौकरानी आऐगी ही, रोटी - सब्जी बनेगी। बच्चे बेमन से खाएंगे। कुछ उनकी
पसंद का बना आती, बर्गर या पास्ता।<br />
वह मंच की तरफ बढ आई वहां हल्का अंधेरा था। श्यामल मंच सज्जा और
में तल्लीन था कुछ लडक़ों के साथ। मंच सज्जा अधुनातन और कलात्मक तरीके
से की गई थी। बहुरंगी प्रकाश का प्रयोग ज्यादा था, बजाय चीजों और
परदों और पेन्टिंगों के। कंप्यूटर की सहायता से 'वर्चुअल इमेजेज' यानि
आभासी छायाओं का इस्तेमाल खूबसूरत भी है और कम खर्चीला भी। बहुरंगी
प्रकाश के बीच गुरूकुल की सुबह का दृश्य बहुत सुन्दर बन पडा है, हिलते
पेडों और कुटियों की महज छायाएं। नेपथ्य से गूंजते मंत्र और पंछियों
की काकली के स्वर ध्वनि प्रभाव की तरह इस्तेमाल किए जाने हैं। मिथिला
की आध्यात्म सभा के दृश्य के लिए हवा में डोलते सुनहरे परदों का
इस्तेमाल किया जाना था, इसके लिए पीछे एक स्क्रीन पर नवग्रह चलायमान
थे। एक ओर सहस्त्रों गायों की प्रतिच्छाया पडनी थी। एक कोने में एक
बडा यज्ञकुण्ड रखना था जिसमें से निकलती अग्नि को उडती नारंगी झालरों
के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना था। एक सचमुच की सजी हुई गाय बाकि
आभासी गायों का प्रतिनिधित्व करने को लाई गई थी। एक नाटक खासी तैयारी
मांगता है। बहुत सा श्रम। पर्दे के पीछे का काम कम नहीं होता! सुगन्धा
हैरान थी और शाम की क्लेश का प्रभाव उसके मन से जाता रहा। श्यामल की
गंभीरता के पीछे इतना बडा कलाकार कहा छिपा रहता है? श्यामल, जिसके
निकट रह कर उसने अपने व्यक्तित्व की थाह जानी है। श्यामल, जिसके पास
बने रहना उसे सुख देता है।<br />
श्यामल, जिससे वह आठ महीने पहले मिली थी, बडे भाई अनुराग के साथ।
वो दोनों कॉलेज के मित्र रहे हैं। उस दिन श्यामल के एक बेहद लोकप्रिय
नाटक का सौवां शो था। हफ्तों तक उस नाटक का नशा रहा था। तब उसने सोचा
तक नहीं था कि एक दिन वह इसी लोकप्रिय नाटयनिर्देशक के निर्देशन में
मंच पर उपस्थित होगी।<br />
एक दिन, न जाने किस बहके हुए फुरसतिया क्षण में उस ने श्यामल को
फोन किया था।<br />
'' क्या मैं आपके किसी नाटक में एक पेड या खम्भे का रोल पा सकती
हूँ?''<br />
''नहीं, वहां भी लम्बी कतार है। परदा गिराने और उठाने वाले की जगह
जरूर है,कर लोगी?''<br />
'' हां, आपके नाटक में उपस्थित रहने के लिए कुछ भी करूंगी।''<br />
''तुम्हारी क्वालीफिकेशन क्या है?''<br />
'' एम एससी बॉटनी।''<br />
'' मार डाला।''<br />
'' क्यों?''<br />
'' कलाओं से कहीं कोई दूर का वास्ता?''<br />
'' न।''<br />
''नाटक पढे?''<br />
''नहीं।''<br />
''देखे।''<br />
''स्कूल में देखे। किए नहीं।''<br />
'' गार्गी के बारे में सुना है?''<br />
''कौन गार्गी?''<br />
'' पौराणिक पात्र?''<br />
'' शायद हां, कभी स्कूल की किसी संस्कृत की किताब में या हिंदी के
पाठ में...पर अब याद नहीं।''<br />
'' नेट पर देखना और रिसर्च करके मुझे कल बताना। तुम मेरे साथ
स्क्रिप्ट पर काम करोगी?''<br />
'' मुझे स्टेज पर छोटी - सी उपस्थिति चाहिए थी। स्क्रिप्ट तो...!
''<br />
'' स्टेज बाद की चीज है। नेपथ्य में काम करना सीखोगी तभी तो न मंच
को समझोगी!''<br />
''ठीक है।''<br />
स्क्रिप्ट पर काम करने में दो महीने जाने कहाँ उडनछू हो गए। बहुत
कुछ सीखा उसने श्यामल से। इस नाटक में गहरी रुचि जाग उठी। गार्गी के
चरित्र ने उस पर असर डालना शुरू किया। स्क्रिप्ट देखकर श्यामल की
पत्नी अनामा ने जब इस गैरपारंपरिक, कम ग्लैमरस रोल में रुचि लेने की
जगह दूरदर्शन के चर्चित सीरियल में अपना समय देना ज्यादा पसंद किया तो
श्यामल ने सुगन्धा में अपनी गार्गी को खोजा। लम्बे बाल, चौडा माथा,
चौडा जबडा, कम झपकने वाली जिज्ञासु आंखें, गङ्ढे वाली ठोडी और जिद्दी
व्यवहार जताती नाक। हल्की भारी आवाज...लम्बी और पुष्ट देह।<br />
'' मैं कर पाऊंगी?''<br />
''कर लोगी।''एक विश्वास था निर्देशक श्यामल का जिसका निर्वाह करना
था सुगन्धा को।<br />
वह जुट गई। दूध उफन रहा है, सुगन्धा रट रही है डायलॉग।<br />
''याज्ञवल्क्य, बताओ तो जल के बारे में कहा जाता है कि उस में हर
पदार्थ घुल मिल जाता है, तो यह जल किसमें जाकर मिल जाता है?''<br />
''अच्छा आत्मन, फिर सच्चा ब्राह्मणत्व क्या है?''<br />
साबुन के झाग से ढकी हुई देह को शीशे में देखती हुई वह... और शॉवर
के साथ उसका एकालाप चलता जा रहा है, '' लो मैं ने डाल लिया दुशाला
अपनी यौवनपुष्ट देह पर, कहो तो इस सुन्दर मुख पर भी हवनकुण्ड की राख
मल लूं और कुरूप कर लूं। यह जान लो, तुम और पिता से भी कह दो कि मेरी
यह देह मेरे ज्ञान और प्रतिभा की कारा नहीं बन सकती। नहीं बन
सकती।''<br />
वह मानो सपनों की किसी आसमानी दुनिया में रही थी पिछले कुछ महीने।
आज समय आ गया था ज़मीन छूने का।<br />
'' आ गई मेरी विदूषी गार्गी! राजा जनक के नौ रत्नों में से एक
रत्न। वाचकनु ॠषि की पुत्री।''<br />
'' वैसे श्यामल! मुझे शक है...''<br />
'' बोलो न, मंच पर जाने से पहले अपने सारे शक दूर कर लो।''<br />
' यही कि गार्गी का कोई मंगेतर था भी, कोई उसका बाल - सखा, ॠषि
वाचकनु का शिष्य। जिसे आपत्ति होती कि गार्गी आध्यात्म सभा में अन्य
आठ शास्त्रार्थ करने वाले ज्ञानियों के साथ जाए और याज्ञवल्क्य से
सवाल करे! आपने स्क्रिप्ट में यह मिथक बुना है या यह सच है। वह सदा की
बालब्रह्मचारिणी थी या बाद में अविवाहित रहने का प्रण लिया? नेट पर
बालब्रह्मचारिणी होने का ही जिक़्र है। कई लोगों ने उसे याज्ञवल्क्य
की पत्नी भी समझा है।''<br />
''मिथक हो कि कल्पना...जो नाटक को पूर्णता व सार्थकता दे वही सही
है। मुझे कहीं लगता है कि सुन्दर और युगप्रवर्तक गार्गी को प्रेमी या
मित्रविहीन बना कर बृहदारण्यक उपनिषद में ज्यादती हुई है। उस युग की
स्त्री टाईम और स्पेस को लेकर सवाल कर रही है! बडी बात है। वही सवाल
जिनके अंत में उसने उत्तर चाहे थे, स्पेस और टाईम के बाहर क्या है?
ब्रहान्ड। तो फिर पूछती है यह ब्रह्माण्ड किसके अधीन है जिसका गोल -
मोल उत्तर याज्ञवल्क्य महाशय देते हैं जिनका लॉजिक मैं नहीं समझ
पाता।''<br />
''ऐसा क्यों?''<br />
''वही कि कोई अविनाशी तत्व। अक्षरत्व। जिसके अनुसासन व प्रशासन में
सब ओत - प्रोत है। ऑल रबिश! समझती नहीं, प्रश्नों के उत्तर की जगह
गार्गी को धमकी देने वाले याज्ञवल्क्य को निरूत्तर छोड क़र पुरुष जाति
की हेठी करानी थी क्या? जबकि वे उत्तरविहीन हो चुके थे मगर हो सकता है
कि क्षेपक की तरह आगे जोडा गया हो, या उनके खीजने पर गार्गी ने ही
स्वयं वे उत्तर दिये हों। हो सकता है कि प्रेम या सम्मान के कारण
गार्गी ने अंत में कहा हो कि 'याज्ञवल्क्य के पास हर प्रश्न का उत्तर
है, चाहे वह धरती या ब्रह्मलोक से जुडा हो या अंतरिक्ष से।
ब्राह्मणत्व या पुरुष की इयत्ता से जुडे प्रश्न हों...वे ब्रह्मर्षि
हैं। वे इन सहस्त्रों गायों के अधिकारी हैं।' मगर फिर स्त्री की
इयत्ता? यह प्रश्न क्यों नहीं किया गार्गी ने और मेरी विवशता देखो कि
मैं गार्गी के सम्मान में इस उपनिषद के किसी तथ्य को कल्पना से बदल
नहीं सकता, अन्दाजा लगा कर भी नहीं...पता है, लोग थियेटर फूंक देंगे।
गार्गी की मां, बालसखा और संगी साथियों तक का हल्का - सा जिक़्र कहीं
नहीं है।''<br />
'' हाँ।''<br />
''अपनी परंपरा की विरासत इतनी समृद्ध है, मगर हमारे पास सही तथ्यों
के मामले में दरिद्रता ही दरिद्रता है। विवश कर देने वाली दरिद्रता।
उस समय के ब्राह्मणों ने सदियों तक अपने लाभ के लिए बहुत कुछ नष्ट हो
जाने दिया और बहुत कुछ क्षेपकों की तरह हमारे महान ग्रन्थों में जोड
दिया।''<br />
सुगन्धा चकित हो श्यामल की पीडा को देखने लगी तो वह संभला।<br />
'' खैर, डायलॉग्स जहां - जहां भूलती थीं वहां सुधारा ? सुगन्धा कर
तो लोगी न! खासी भीड होगी।''<br />
'' हाँ, शायद। पता नहीं। डराइए मत।''<br />
'' एक्सप्रेशन शार्प और ड्रामेटिक रखना। पौराणिक नाटक है। फिर दिन
की रिहर्सल और रात में मंच की नकली रोशनी में फर्क होता है। तुम्हारे
उच्चारणों पर तो पूरा कॉन्फीडेन्स है मुझे। वही तुम्हारी ताकत है। गुड
लक, सुगन्धा। तुम ग्रीनरूम में चलो, मैं पहुंचता हूँ। निधि वहां है
तुम्हारे कॉस्टयूम के साथ।''<br />
कॉस्टयूम पौराणिक किस्म का था। कंचुकीनुमा ब्लाउज़, नाभिदर्शना
साडी, सुनहरे दुशाले ने राहत दी। श्यामल कॉस्टयूम को लेकर बहुत सजग
रहते हैं। वह बाल काढ रही थी कि श्यामल ग्रीन रूम में आए।<br />
''निधि, सुगन्धा के ये बाल खुले रहेंगे पहले सीन में। दूसरे -
तीसरे सीन में जब वह 'ब्रह्मचारिणी' रहने का प्रण लेती है, उसके बाद
से यह जूडे में बंधे हुए रहेंगे। माथे पर चन्दन का त्रिपुण्ड रहेगा।
यह सुनहरा दुशाला सफेद रंग के दुशाले से बदला जाऐगा। सुनो मुझे मेकअप
एकदम सादा चाहिए मगर वेल डिफाइन। नेचुरल लिप्सटिक, गहरी आंखें।''<br />
श्यामल कहते हुए कुछ हैरान सा सुगन्धा की तरफ बढा।<br />
''सुगन्धा यह चेहरे पर क्या हुआ है? कल तक तो यह नहीं था। इतनी
गहरी खरोंच और यह नीला निशान?''<br />
'' बाथरूम में फिसल गई थी, नल से लग गई।'' उसने लगभग बुदबुदाते हुए
कहा था। श्यामल अविश्वास के साथ उसे गौर से देखता रहा। वह चुप था मगर
उसकी अनुभवी आंखें बोल रही थीं_<br />
''पन्द्रह बरस हुए होंगे मुझे थिएटर करते हुए। तुम लोगों के पास अब
बहाने भी खत्म हो चले हैं। मेरे नाटकों की गार्गियां, आम्रपालियां,
वसंतसेनाएं, वावसदत्ताएं देवयानियां, शर्मिष्ठाएं...यूं ही चेहरे पर
अपनों के विरोध के हिंसक निशान लेकर थिएटर आती रही हैं। बहाने भी
अमूमन यही सब रहते हैं , मसलन बाथरूम में फिसल गई थी। बच्चे ने खिलौना
कार से मार दिया गलती से। टैक्सी या बस के दरवाजे से टकरा गई। तुम
पहली तो नहीं हो, सुगन्धा! ''<br />
प्रत्यक्षत: वह इतना ही बोला और बाहर निकल गया, ''कोई बात नहीं,
जाओ पहले बर्फ लगा कर सूजन दबा दो फिर कन्सीलर लगा कर, गहरा फाउण्डेशन
लगा लेना।समय होने वाला है जल्दी करो।'' वह उसे ग्रीन रूम में
शर्मिन्दा छोड ग़या था। उसे लगा वह सारे संवाद भूल जाऐगी। उसने अपने
संवादों वाला पुलिन्दा निकाल लिया। बेमन से उन काले शब्दों को पढने
लगी थी, जिनके अर्थ उन शब्दों के छोटे कलेवर में समाए नहीं समा रहे
थे। खैर, चलो यह नाटक तो पूरा हुआ।<br />
बस आने में देर लग रही थी। शेड में खडे लोग एक - एक कर टैक्सियां
पकड रहे थे। वह भी एक टैक्सी की तरफ बढी।<br />
''कहा जाना है, मैडम?''<br />
उसके कानों में खिडक़ी से उछल कर किसी पत्थर की तरह पीठ पर पडी
आवाज़ ग़ूंजी।<br />
'' डोन्ट कम बैक होम। इस जुर्रत के साथ घर लौटने की जरूरत नहीं
है।''<br />
'' मैडम,बारिश तेज हो रही है कहाँ जाना है ?<br />
''कहाँ?'' क्या वह भूल गई?<br />
''गुरूकुल या वैदेह के दरबार से बाहर आओ, गार्गी। मंच और थिएटर के
बाहर तुम्हारा एक घर है। वहाँ बच्चे हैं। विनय है। विनय डिनर पर बाहर
गया होगा। बच्चों ने नौकरानी के हाथों खाना पता नहीं खाया होगा या
टीवी देखते होंगे। मान्या का होमवर्क अधूरा होगा। नन्नू को बुखार है।
इडियट, यह सब भूल कैसे सकती हो?<br />
'' मैडम? किधर जाना है? ''<br />
'' घर...ऑफकोर्स घर ही।''<br />
'' घर किधर? पता है कोई?''<br />
''हाँ, है।'' सुगन्धा टैक्सी में घुसते हुए बोली। ड्राइवर ने
टैक्सी बढा दी। उसने सीट से सर टिका लिया। शीशे के बाहर की तेज होती
बारिश धीरे - धीरे आंखों में होने लगी। उसने आंखें बन्द कीं तो दो
बूंदे, पलक की कोरों पर आकर उलझ गईं। टपकने से पहले उसने उन्हें रुमाल
में सोख लिया। मन ने कहा - ''मेरा पता क्या पूछते हो, मैं तो प्रज्ञा
और गर्भाशय के बीच उलटी लटकी हूँ। प्रज्ञा आसमान छूना चाहती है,
गर्भाशय धरती में जडें धंसाए हुए है। फिर भी, हाँ, है पता मेरा भी पता
है। तुम सुनो, सब सुन लें।''<br />
सुगन्धा बहुत धीमे होठों में बुदबुदाने लगी।<br />
''मैं गार्गी, केयर ऑफ याज्ञवल्क्य। मैं दुश्चरित्र अहिल्या केयर
ऑफ गौतम ॠषि। मैं भंवरी देवी, मैं रूप कंवर केयर ऑफ लोक पंचायत, केयर
ऑफ ऑनर किलिंगकेयर ऑफ चेस्टिटी बैल्ट। पब में पीटी जाने वाली लडक़ी
हूँ, केयर ऑफ शिवसेना। नाजनीन फरहदी हूँ केयर ऑफ तेहरान जेल। सरेआम
कोडे ख़ाने वाली वो कमसिन लडक़ी...केयर ऑफ स्वात घाटी।''<br />
Source : http://www.aparajita.org/read_more.php?id=818&position=1&day=7 <br />
</div>
</div>
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DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-90744687871935479882012-08-24T09:40:00.001+05:302012-08-24T09:40:18.391+05:30चला गीदड़ शिकारी बनने Story for children<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2>
मूल-मंत्र/ विजय-राज चौहान </h2>
<br />
<div class="left" style="text-align: justify;">
<div class="image">
<span class="content-image"><img src="http://www.aparajita.org/files/images/78e41f1a6a13ea52b49c10375baeae7d.jpg" /></span>
झींगा शेर तालाब के किनारे काँस के झुंडों के बीच में अपने भूखे
बच्चों और पत्नी के साथ बैठा सूरज की मीठी धूप में ऊँघ रहा
था। इस समय उसकी आँखें बंद थी और वह अपने सुनहरे दिनों के सपनों
में खोया हुआ था उसे अपनी जवानी के उन दिनों की याद आ रही थी जब वह
खूब शक्तिशाली था उन दिनों का भी क्या रंग था, क्या ताक़त
थी, शरीर की चुस्ती और फुरती के आगे क्या मजाल थी कि कोई शिकार
हाथों से निकल जाये। अगर उसे दिन में दो-तीन बार भी शिकार के
पीछे दौड़ना पड़ता था तो वह तब भी नहीं थकता था। लेकिन अब उम्र
का तक़ाज़ा था कि अब उसे एक शिकार मारने के लिए भी तालाब के किनारे
कई-कई घंटे इंतज़ार करना पड़ता था, और कभी तो पूरा दिन भी कोई
शिकार नहीं मिलता था और भूखों ही सो जाना पड़ता था। उसकी यह हालत
बूढ़े हो जाने के कारण थी क्योंकि अब उसके शरीर की शक्ति अब क्षीण हो
चुकी थी इसलिए वह अब तालाब के किनारे पानी पीने आए एक-आध कमज़ोर पशु
को ही मार पता था और उसे उसी से ही अपने परिवार की भूख को शांत करना
पड़ता था।<br />
लेकिन आज सुबह से शाम होने को आयी, तो भी कोई शिकार दिखाई
नहीं दिया था।<br />
झींगा शेर की माँद से कुछ दूर पर ही शेरू नाम का एक गीदड़ भी अपनी
पत्नी रानी और अपने दो बच्चों के साथ एक बिल में रहता था।<br />
शेरू के परिवार का पेट भी काफ़ी हद तक झींगा शेर के शिकार के ऊपर
ही निर्भर करता था क्योंकि जब झींगा किसी शिकार की मार डालता था तो
शेरू का परिवार भी बची झूठन को कई दिनों तक खाता था।<br />
लेकिन आज शेरू के परिवार का भी भूख के मारे बुरा हाल हुआ जा रहा
था। लेकिन फिर भी वह अपने परिवार के साथ किसी शुभ घड़ी के इंतजार
में, झींगे के ऊपर नज़रें गड़ाये बैठा था।<br />
आखिर जब सूरज क्षितिज में छुपने जा रहा था तो शुभ घड़ी आ पहुँची और
एक दरियाई घोड़ों का झुंड तालाब किनारे आ पहुँचा। झुंड को देखते
ही दोनों परिवारों में खुशी ही लहर दौड़ गई, झींगे ने भी झुंड को
देखते ही अपनी स्थिति को सँभाला और खड़ा होकर कमर को धनुष बनाते हुए
अँगड़ाई ली। इसके बाद उसने हाथ पैरों को झटका और किसी पहलवान की
तरह से आगे पीछे किया। इसके बाद उसने मूल-मन्त्र करने के लिए
अपनी पत्नी को पास बुलाया जिससे झींगे के शरीर में एक उतेजना पैदा हो
गई।<br />
उसने अपनी पूछ को कमर पर मोड़ा और आँखें लाल कीं, फिर उसने
अपनी पत्नी से पूछा-<br />
- “देखो तो ज़रा मेरी पूँछ मुड़ कर पीठ पर आ गई है या
नहीं?"<br />
शेरनी ने कहा – “हाँ स्वामी आप तो प्रचंड योद्धा की तरह से लग
रहे हो।“<br />
इसके बाद झींगे ने पूछा -<br />
“मेरी आँखें कैसी लग रही हैं?"<br />
शेरनी ने कहा – “स्वामी आप की आँखें तो इस समय ऐसी लग रही हैं
मानो कोई ज्वालामुखी लावा उगल रहा हो!"<br />
झींगे ने इतना सुना तो वह पूर्ण रूप से उतेजित हो गया और उसने
तूफ़ान की गति से दौड़ कर एक ही झटके में एक कमज़ोर से दिखाई देने
वाले दरियाई घोड़े को मार गिराया जिसे वह खींचकर अपने झुंड में ले
आया।<br />
इसके बाद पूरे परिवार ने व्रत तोड़ा और खूब डट कर खाया और फिर पेट
पर हाथ फिराते हुए अपनी माँद की तरफ़ चल पड़े।<br />
झींगा शेर ने जब से शिकार किया तब से ही शेरू गीदड़ का परिवार भी
उन पर आँखें गड़ाये बैठा था, झींगे का परिवार पत्तल से उठ कर चला
तो शेरू झूठी पत्तल को साफ़ करने के लिए उसकी तरफ़ दौड़ा और वह भी
अपने परिवार सहित अपनी भूख मिटाने में जुट गया।<br />
परिवार के सभी सदस्य झूठन को खा रहे थे लेकिन शेरू की पत्नी, रानी
के मन में सुबह से व्रत करते-करते कुछ प्रश्न जमा हो रहे
थे, जिन्हें पूछने का ह मौका तलाश रही थी।<br />
आख़िर उसने भोजन करते-करते शेरू से पूछा -<br />
“स्वामी आख़िर हम कब तक दूसरों का झूठा खाते रहेंगे, क्या हम
अपने लिए ख़ुद शिकार नहीं कर सकते?"<br />
शेरू ने रानी के ये वाक्य सुने तो मुँह चलाते हुए बोला -<br />
“अरे जब तक मिलता है तब तक खाओ, आगे की आगे सोचेंगे।"<br />
रानी त्योरियाँ चढ़ाते हुए बोली – “नहीं आगे न
खायेंगे, तुम भी तो जवान हो, झींगा बूढ़ा हो चुका हैं लेकिन
अब भी शिकार करता हैं क्या तुम नहीं कर सकते?"<br />
रानी की इस बात पर शेरू चुप रहा, कुछ न बोला।<br />
उधर रानी ने पेट भर खाया और बच्चों को को लेकर अपने बिल में जा
लेटी। शेरू वही झूठन चाटता रहा लेकिन रानी फिर उसके साथ न
बोली।<br />
शेरू की झूठन ख़त्म हुई तो वह भी बिल की तरफ़ चला, लेकिन उदास
क़दमों से। उसे वास्तव में रानी ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया
था। वह जाकर बिल में लेट गया लेकिन उसे नींद नहीं आई, वह सोच रहा
था आख़िर झींगा इतना बड़ा शिकार कैसे मार लेता है, ऐसी कोन सी
शक्ति है उसके पास, जो उसमें बूढ़ा होने पर भी इतना जोश और ताक़त पैदा
कर देती है।<br />
शेरू इन्हीं विचारों में काफ़ी देर तक उलझा रहा और यह सोच कर सोया
कि कल झींगे शेर की जासूसी करता हूँ और देखता हूँ की ऐसी कौन सी शक्ति
है जो उसमें इतना जोश भर देती है। इतना सोच कर शेरू गीदड़
निश्चिंत होकर सो गया।<br />
अगले दिन शेरू जल्दी जाग गया, उसने बिल से बाहर मुँह निकाल कर
देखा तो अभी काफ़ी अँधेरा था, और पाला पड़ने के कारण काफ़ी ठंड
थी। लेकिन उसने उसकी परवाह नहीं की और वह अपनी पत्नी और बच्चों
के उठने से पहले ही झींगे शेर की माँद की तरफ़ चल दिया और जाकर एक
काँस के झुंड के पीछे छिप कर बैठ गया।<br />
झींगा शेर अभी जागा न था, कुछ देर बाद सूरज की मीठी धूप चारों
ओर फैली तो झींगा अपनी माँद से बाहर आया और उसने कमर को धनुष बनाते
हुए अँगड़ाई तोड़ी और फिर जाकर धूप में बैठ गया। इसके बाद
उसके बच्चे और शेरनी जागी, वे भी माँद से बाहर आये और धूप में बैठ कर
ऊँघने लगे और झींगा अपनी उसी तलाश में लग गया कि कब शिकार आये और कब
वह उसे मार कर अपने आज के भोजन का इंतज़ाम करे।<br />
काँस के झुंड के पीछे छिपा शेरू झींगे शेर कि इस सारी दिनचर्या को
बड़े ध्यान से देख रहा था और इस समय वह झींगे के हर पैंतरे को बड़े
ध्यान से सीख कर रहा था।<br />
झींगा अपने परिवार के साथ धूप में बैठा था तो एक जंगली भैंसा पानी
कि टोह में उधर से आ निकला, वह धीमे और टूटे क़दमों से चल रहा
था। देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद वह बीमार था और बीमारी में
अपनी प्यास बुझाने तालाब किनारे आया था।<br />
आख़िर जब झींगे ने जंगली भैंसे को देखा तो उसे सुबह-सुबह पौ-बारह
होते नज़र आये और वह भैंसे को देखकर खड़ा हो गया।<br />
झींगे शेर के खड़े होते ही शेरू गीदड़ के भी कान खड़े हो
गये, उसकी एक आँख शिकार पर लगी हुई थी तो दूसरी आँख झींगे कि हर
हरक़त को बारीकी से देख रही थी।<br />
ज्यों ही भैंसा तालाब में पानी पीने के लिए घुसा तो झींगे शेर ने
अपना मूल-मंत्र पढ़ा।<br />
वह पास बैठी शेरनी से बोला – “देखो तो ज़रा मेरी पूँछ मुड़ कर
पीठ पर आ गई है या नहीं?”<br />
शेरनी ने कहा – “हाँ स्वामी आप तो प्रचंड योद्धा की तरह से लग
रहे हो!"<br />
इसके बाद झींगे ने पूछा -<br />
“मेरी आँखें कैसी लग रही हैं?"<br />
शेरनी ने कहा -"स्वामी आप की आँखें तो इस समय ऐसी लग रही हैं मानो
कोई ज्वालामुखी लावा उगल रहा हो!"<br />
शेर ने इतना सुना तो वह पूर्ण रूप से उत्तेजित हो गया और इससे पहले
कि जंगली भैंसा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता, झींगे शेर ने एक ही
वार में तूफ़ान कि गति से आगे बढ़कर भैंसे को धराशायी कर दिया और उसे
खींचकर अपने झुंड में ले आया।<br />
काँस के झुंड के पीछे छुपा शेरू गीदड़ झींगे की ये सारी हरक़त देख
रहा था उसने जब झींगे का मूल-मंत्र सुना तो खुशी से झूम उठा और खुशी
को कारण जमीन में लोटपोट हो गया।उसने भी आज शक्ति के उस मूल-मन्त्र को
पा लिया था जिसे पढ़कर वह भी अधिक शक्तिशाली हो सकता था। वह धूल
से उठा और खुशी से कुलाँचे भरता हुआ अपने बिल में जा घुसा।<br />
शेरू की पत्नी रानी अब तक जग चुकी थी उसने शेरू को इतना खुश होते
देखा तो बोली –<br />
"क्या बात हैं बड़े खुश नज़र आ रहे हो, ऐसा सुबह-सुबह क्या
मिल गया जो तुम फूले नहीं समा रहे हो?"<br />
शेरू बच्चों के पास बैठते हुए टाँग पर टाँग रखकर बोला -<br />
"तुम कहती थी ना मैं शिकार नहीं कर सकता और मैं डरपोक और बुजदिल
हूँ, तो तुम झूठ बोलती थी, तुम नहीं जानती मेरे अन्दर कितनी
शक्ति है, मैं चाहूँ तो अच्छे से अच्छे बलशाली को धूल
चटा सकता हूँ।“<br />
रानी त्योरियाँ चढाते हुए बोली – “रहने दो, कभी किसी चूहे का
शिकार तो किया नहीं,कहते हो बलशाली को धूल चटा सकता हूँ।"<br />
शेरू रहस्यमय मुस्कान होंठों पर लाते हुए बोला – “अरे तुम्हें
क्या पता, जब मैं तुम्हें अपनी शक्ति दिखाऊँगा तब देखना दाँतों
तले उँगली दबा लोगी, तुम बस ऐसा कहना जैसा मैं कहता हूँ।"<br />
“ठीक हैं कह दूँगी लेकिन कुछ कर के तो दिखाओ", रानी ने कहा।<br />
इसके बाद शेरू का पूरा परिवार उठा और जाकर तालाब किनारे काँस के
झुंड में छिपकर बैठ गया और शेरू इस बात का इंतज़ार करने
लगा कि कब कोई शिकार आये और वह उसे अपने मूल-मंत्र से धराशायी
करे।<br />
शेरू को अपने परिवार सहित काँस में छुपे-छुपे शाम हो गई
थी। सूरज अब डूबने ही वाला था लेकिन शेरू को अब तक कोई ऐसा शिकार
दिखाई नहीं दिया था जिस पर वह अपना मूल-मंत्र आज़मा सके।<br />
आख़िर जब शाम होने को आयी तो दरयाई-घोड़ों का वही झुंड जो कल आया
था तालाब किनारे पानी पीने आ पहुँचा। जिसे देखते ही शेरू गीदड़
के मुँह में पानी भर आया और उसके पैरों में खुजली होने लगी और ज्यों
ही घोड़ों का झुंड तालाब में पानी पीने घुसा तो शेरू खड़ा हो
गया। उसने भी अपनी कमर को धनुष बनाते हुए अँगड़ाई तोड़ी और अपनी
पत्नी रानी से मूल-मंत्र पढ़ते हुए बोला -<br />
“देखो तो ज़रा मेरी पूँछ मुड़कर पीठ पर आ गई है या नहीं?"<br />
रानी ने कहा, “हाँ स्वामी आप तो इस समय एक प्रचंड योद्धा की
तरह लग रहे हो।“<br />
शेरू आँखें निकलते हुए -"और मेरी आँखें तो देखो लाल हुई या
नहीं?”<br />
“हाँ स्वामी आपकी आँखें तो इस समय ऐसी लग रही हैं मानो ज्वालामुखी
लावा उगल रहा हो!”<br />
शेरू ने इतना सुना तो वास्तव में उसे अपने अन्दर एक शक्ति सी जान
पड़ी। वह तेज़ी से काँस के झुंड के ऊपर से कूदते हुए किसी
तूफ़ान की तरह से एक दरियाई घोड़े पर कूद पड़ा। लेकिन ज्योंही शेरू ने
घोड़े की पिछली टाँग में अपने दाँत गाड़ने चाहे तो घोड़े ने अपनी
शक्तिशाली दुल्लती से शेरू को काँस के झुंडों के ऊपर से दर्जनों मीटर
दूर फेंक दिया, जिसके कारण जमीन पर पड़ते ही शेरू का मुँह ज़मीन
में चार-पाँच अंगुल नीचे धस गया।<br />
उसकी लाल ज्वालामुखी आँखें धूल मिट्टी के कारण सूखे कुएँ की तरह से
रुँध गई और उनका लाल रंग भी पीला-पीला सा दिखाई देने लगा। इसके
आलावा उसकी धनुष रूपी पूँछ भी टूटकर नीचे को मुड़ती हुई किसी पिटी
भिखारिन की भाँति दोनों टाँगों के बीच में छुप गई।<br />
इतना सब होने के बाद शेरू अपनी टूटी टाँग से खड़ा हुआ और किसी पैर
बँधे ख़च्चर की भाँति लँगड़ता हुआ अपने बिल की तरफ़ चल दिया।<br />
शेरू की महेरिया रानी अपने बच्चों के साथ इस समय दूर से अपने
स्वामी की इस वीरता को देख रही थी।<br />
लेकिन जब उसने स्वामी को स्वादिष्ट शिकार की जगह जंगली धूल खाते
देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह ख़बर लेने के लिए अपने स्वामी की
तरफ़ दौड़ी। एक बार रानी डर गई थी लेकिन अगले ही पल शेरू की हालत
पर रानी हँस पड़ी उसने उसकी इतनी बुरी हालत आज से पहले कभी नहीं देखी
थी।<br />
शेरू ने जब पत्नी के द्वारा उपहास होते देखा तो वह जल उठा और वह
रानी हो जलती आँखों से देखते हुए अपने बिल की दीवार के पास बैठ कर
अपनी टाँग के दर्द को जीभ से चाटने लगा। लेकिन रानी को अब भी
अपने स्वामी की इस मूर्खता भरी वीरता पर हँसी आ रही थी और वह हँसी के
कारण मिट्टी में लोट-पोट थी।<br />
Source : http://www.aparajita.org/read_more.php?id=772&position=5&day=5 <br />
</div>
</div>
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DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-10941546432089255412012-08-15T08:29:00.000+05:302012-08-15T08:29:12.320+05:30पढ़े-लिखे मूर्ख (पंचतंत्र एवं हितोपदेश की कहानियां)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<a aria-hidden="true" class="lfloat" data-ft="{"type":60,"tn":"\u003C"}" data-hovercard="/ajax/hovercard/hovercard.php?id=100000561483232" href="http://www.facebook.com/jagadishwar9" style="background-color: white; color: #3b5998; cursor: pointer; float: left; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; text-align: left; text-decoration: none;" tabindex="-1"><img alt="" class="-cx-PRIVATE-uiSquareImage__root profilePic -cx-PRIVATE-uiSquareImage__large img" src="https://fbcdn-profile-a.akamaihd.net/hprofile-ak-snc4/195366_100000561483232_494618147_q.jpg" style="border: 0px; display: block; height: 50px; width: 50px;" /></a><div class="clearfix permalinkHeaderContent" style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; margin-left: 60px; text-align: left; zoom: 1;">
<div class="rfloat" style="color: #333333; float: right;">
<a ajaxify="/ajax/spam_action.php?objectID=489827661045946&objectType=125&paramString&action=mark_spam&report_link=%2Fajax%2Freport.php%3Fcontent_type%3D125%26cid%3D489827661045946%26rid%3D100000561483232%26profile%3D100000561483232%26h%3DAfiYt1DfSUv_-zsa%26is_permalink%3D1%26stream_id%3D100000561483232%26story_div_id%3Dstream_story_502b0dc4f33d09b01009235%26story_fbid%3D489827661045946&is_permalink=1" class="uiCloseButton" data-hover="tooltip" data-tooltip-alignh="right" href="https://www.facebook.com/jagadishwar9/posts/489827661045946#" rel="async-post" role="button" style="background-image: url(https://s-static.ak.fbcdn.net/rsrc.php/v2/yA/r/4WSewcWboV8.png); background-repeat: no-repeat no-repeat; color: #3b5998; cursor: pointer; display: inline-block; float: right; height: 15px; left: auto; margin: 0px; overflow: visible; padding: 0px; position: relative; text-decoration: none; width: 15px; zoom: 1;" title="Report/Mark as Spam"></a><br /></div>
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</div>
<div class="-cx-PRIVATE-uiInlineBlock__root -cx-PRIVATE-uiInlineBlock__middle" style="display: inline-block; vertical-align: middle;">
<div class="fsl fwb fcb" style="font-size: 13px; font-weight: bold;">
<a aria-controls="utu5kq_1" aria-haspopup="true" aria-owns="utu5kq_1" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100000561483232" href="http://www.facebook.com/jagadishwar9" id="js_8" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Jagadishwar Chaturvedi</a></div>
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<span style="font-size: 13px; line-height: 17px; text-align: justify;"><div class="clearfix permalinkHeaderContent" style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; margin-left: 60px; text-align: left; zoom: 1;">
<span style="font-size: 13px; line-height: 17px; text-align: justify;"><br /></span></div>
<b><span style="color: blue;">पढ़े-लिखे मूर्ख-</span></b></span></div>
<div class="clearfix permalinkHeaderContent" style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; margin-left: 60px; text-align: left; zoom: 1;">
<span style="font-size: 13px; line-height: 17px; text-align: justify;"><br /></span></div>
</div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। उनमें खासा मेल-जोल था। बचपन में ही उनके मन में आया कि कहीं चलकर पढ़ाई की जाए।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अगले दिन वे पढ़ने के लिए कन्नौज नगर चले गये। वहाँ जाकर वे किसी पाठशाला में पढ़ने लगे। बारह वर्ष तक जी लगाकर पढ़ने के बाद वे सभी अच्छे विद्वान हो गये।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अब उन्होंने सोचा कि हमें जितना पढ़ना था पढ़ लिया। अब अपने गुरु की आज्ञा लेकर हमें वापस अपने नगर लौटना चाहिए। यह निर्णय करने के बाद वे गुरु के पास गये और आज्ञा मिल जाने के बाद पोथे सँभाले अपने नगर की ओर रवाना हुए।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अभी वे कुछ ही दूर गये थे कि रास्ते में एक तिराहा पड़ा। उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आगे के दो रास्तों में से कौन-सा उनके अपने नगर को जाता है। अक्ल कुछ काम न दे रही थी। वे यह निर्णय करने बैठ गये कि किस रास्ते से चलना ठीक होगा।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अब उनमें से एक पोथी उलटकर यह देखने लगा कि इसके बारे में उसमें क्या लिखा है।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
संयोग कुछ ऐसा था कि उसी समय पास के नगर में एक बनिया मर गया था। उसे जलाने के लिए बहुत से लोग नदी की ओर जा रहे थे। इसी समय उन चारों में से एक ने पोथी में अपने प्रश्न का जवाब भी पा लिया। कौन-सा रास्ता ठीक है कौन-सा नहीं, इसके विषय में उसमें लिखा था, ‘‘महाजनो येन गतः स पन्था।’’</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि यहाँ महाजन का अर्थ क्या है और किस मार्ग की बात की गयी है। श्रेणी या कारवाँ बनाकर निकलने के कारण बनियों के लिए महाजन शब्द का प्रयोग तो होता ही है, महान व्यक्तियों के लिए भी होता है, यह उन्होंने सोचने की चिन्ता नहीं की। उस पण्डित ने कहा, ‘‘महाजन लोग जिस रास्ते जा रहे हैं उसी पर चलें!’’ और वे चारों श्मशान की ओर जानेवालों के साथ चल दिये।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
श्मशान पहुँचकर उन्होंने वहाँ एक गधे को देखा। एकान्त में रहकर पढ़ने के कारण उन्होंने इससे पहले कोई जानवर भी नहीं देखा था। एक ने पूछा, ‘‘भई, यह कौन-सा जीव है?’’</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अब दूसरे पण्डित की पोथी देखने की बारी थी। पोथे में इसका भी समाधान था। उसमें लिखा था।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
उत्सवे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति सः बान्धवः।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
बात सही भी थी, बन्धु तो वही है जो सुख में, दुख में, दुर्भिक्ष में, शत्रुओं का सामना करने में, न्यायालय में और श्मशान में साथ दे।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
उसने यह श्लोक पढ़ा और कहा, ‘‘यह हमारा बन्धु है।’’ अब इन चारों में से कोई तो उसे गले लगाने लगा, कोई उसके पाँव पखारने लगा।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अभी वे यह सब कर ही रहे थे कि उनकी नजर एक ऊँट पर पड़ी। उनके अचरज का ठिकाना न रहा। वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि इतनी तेजी से चलने वाला यह जानवर है क्या बला!</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
इस बार पोथी तीसरे को उलटनी पड़ी और पोथी में लिखा था, धर्मस्य त्वरिता गतिः।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
धर्म की गति तेज होती है। अब उन्हें यह तय करने में क्या रुकावट हो सकती थी कि धर्म इसी को कहते हैं। पर तभी चौथे को सूझ गया एक रटा हुआ वाक्य, इष्टं धर्मेण योजयेत प्रिय को धर्म से जोड़ना चाहिए।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अब क्या था। उन चारों ने मिलकर उस गधे को ऊँट के गले से बाँध दिया।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अब यह बात किसी ने जाकर उस गधे के मालिक धोबी से कह दी। धोबी हाथ में डण्डा लिये दौड़ा हुआ आया। उसे देखते ही वे वहाँ से चम्पत हो गये।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
वे भागते हुए कुछ ही दूर गये होंगे कि रास्ते में एक नदी पड़ गयी। सवाल था कि नदी को पार कैसे किया जाए। अभी वे सोच-विचार कर ही रहे थे कि नदी में बहकर आता हुआ पलाश का एक पत्ता दीख गया। संयोग से पत्ते को देखकर पत्ते के बारे में जो कुछ पढ़ा हुआ था वह एक को याद आ गया। आगमिष्यति यत्पत्रं तत्पारं तारयिष्यति।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
आनेवाला पत्र ही पार उतारेगा।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अब किताब की बात गलत तो हो नहीं सकती थी। एक ने आव देखा न ताव, कूदकर उसी पर सवार हो गया। तैरना उसे आता नहीं था। वह डूबने लगा तो एक ने उसको चोटी से पकड़ लिया। उसे चोटी से उठाना कठिन लग रहा था। यह भी अनुमान हो गया था कि अब इसे बचाया नहीं जा सकता। ठीक इसी समय एक दूसरे को किताब में पढ़ी एक बात याद आ गयी कि यदि सब कुछ हाथ से जा रहा हो तो समझदार लोग कुछ गँवाकर भी बाकी को बचा लेते हैं। सबकुछ चला गया तब तो अनर्थ हो जाएगा।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
यह सोचकर उसने उस डूबते हुए साथी का सिर काट लिया।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
अब वे तीन रह गये। जैसे-तैसे बेचारे एक गाँव में पहुँचे। गाँववालों को पता चला कि ये ब्राह्मण हैं तो तीनों को तीन गृहस्थों ने भोजन के लिए न्यौता दिया। एक जिस घर में गया उसमें उसे खाने के लिए सेवईं दी गयीं। उसके लम्बे लच्छों को देखकर उसे याद आ गया कि दीर्घसूत्री नष्ट हो जाता है, दीर्घसूत्री विनश्यति। मतलब तो था कि दीर्घसूत्री या आलसी आदमी नष्ट हो जाता है पर उसने इसका सीधा अर्थ लम्बे लच्छे और सेवईं के लच्छों पर घटाकर सोच लिया कि यदि उसने इसे खा लिया, तो नष्ट हो जाएगा। वह खाना छोड़कर चला आया।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
दूसरा जिस घर में गया था वहाँ उसे रोटी खाने को दी गयी। पोथी फिर आड़े आ गयी। उसे याद आया कि अधिक फैली हुई चीज की उम्र कम होती है, अतिविस्तार विस्तीर्णं तद् भवेत् न चिरायुषम्। वह रोटी खा लेता तो उसकी उम्र घट जाने का खतरा था। वह भी भूखा ही उठ गया।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
तीसरे को खाने के लिए ‘बड़ा’ दिया गया। उसमें बीच में छेद तो होता ही है। उसका ज्ञान भी कूदकर उसके और बड़े के बीच में आ गया। उसे याद आया, छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति। छेद के नाम पर उसे बड़े का ही छेद दिखाई दे रहा था। छेद का अर्थ भेद का खुलना भी होता है, यह उसे मालूम ही नहीं था। वह बड़े खा लेता तो उसके साथ भी अनर्थ हो जाता। बेचारा वह भी भूखा रह गया।</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
लोग उनके ज्ञान पर हँस रहे थे पर उन्हें लग रहा था कि वे उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। अब वे तीनों भूखे-प्यासे ही अपने-अपने नगर की ओर रवाना हुए।</div>
</span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
(पंचतंत्र एवं हितोपदेश की कहानियां-कमलेश्वर ,हिन्दी समय डॉटकॉम से साभार)</div>
</span><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
यह कहानी सुनाने के बाद स्वर्णसिद्धि ने कहा, ‘‘तुम भी दुनियादार न होने के कारण ही इस आफत में पड़े। इसीलिए मैं कह रहा था शास्त्रज्ञ होने पर भी मूर्ख मूर्खता करने से बाज नहीं आते।’’</div>
</span></div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-84162510937892146072012-07-29T09:33:00.000+05:302012-07-29T09:34:22.587+05:30फूलो का कुर्ता -यशपाल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: justify;">
</h2>
<div>
</div>
<span class="content-image"><img src="http://www.aparajita.org/files/images/580dbfce9fd5f82c3c01d80db899e6ea.jpg" /></span><br />
हमारे यहां गांव बहुत छोटे-छोटे हैं। कहीं-कहीं तो बहुत ही छोटे,
दस-बीस घर से लेकर पांच-छह घर तक और बहुत पास-पास। एक गांव पहाड़ की
तलछटी में है तो दूसरा उसकी ढलान पर।<br />
बंकू साह की छप्पर से छायी दुकान गांव की सभी आवश्कताएं पूरी कर
देती है। उनकी दुकान का बरामदा ही गांव की चौपाल या क्लब है। बरामदे
के सामने दालान में पीपल के नीचे बच्चे खेलते हैं और ढोर बैठकर जुगाली
भी करते रहते हैं।<br />
सुबह से जारी बारिश थमकर कुछ धूप निकल आई थी। घर में दवाई के लिए
कुछ अजवायन की जरूरत थी। घर से निकल पड़ा कि बंकू साह के यहां से ले
आऊं।<br />
बंकू साह की दुकान के बरामदे में पांच-सात भले आदमी बैठे थे।
हुक्का चल रहा था। सामने गांव के बच्चे कीड़ा-कीड़ी का खेल खेल रहे
थे। साह की पांच बरस की लड़की फूलो भी उन्हीं में थी।<br />
पांच बरस की लड़की का पहनना और ओढ़ना क्या। एक कुर्ता कंधे से लटका
था। फूलो की सगाई गांव से फर्लांग भर दूर चूला गांव में संतू से हो गई
थी। संतू की उम्र रही होगी, यही सात बरस। सात बरस का लड़का क्या
करेगा। घर में दो भैंसें, एक गाय और दो बैल थे। ढोर चरने जाते तो संतू
छड़ी लेकर उन्हें देखता और खेलता भी रहता, ढोर काहे को किसी के खेत
में जाएं। सांझ को उन्हें घर हांक लाता।<br />
बारिश थमने पर संतू अपने ढोरों को ढलवान की हरियाली में हांक कर ले
जा रहा था। बंकू साह की दुकान के सामने पीपल के नीचे बच्चों को खेलते
देखा, तो उधर ही आ गया।<br />
संतू को खेल में आया देखकर सुनार का छह बरस का लड़का हरिया चिल्ला
उठा। आहा! फूलो का दूल्हा आया है। दूसरे बच्चे भी उसी तरह चिल्लाने
लगे।<br />
बच्चे बड़े-बूढ़ों को देखकर बिना बताए-समझाए भी सब कुछ सीख और जान
जाते हैं। फूलो पांच बरस की बच्ची थी तो क्या, वह जानती थी, दूल्हे से
लज्जा करनी चाहिए। उसने अपनी मां को, गांव की सभी भली स्त्रियों को
लज्जा से घूंघट और पर्दा करते देखा था। उसके संस्कारों ने उसे समझा
दिया, लज्जा से मुंह ढक लेना उचित है। बच्चों के चिल्लाने से फूलो लजा
गई थी, परंतु वह करती तो क्या। एक कुरता ही तो उसके कंधों से लटक रहा
था। उसने दोनों हाथों से कुरते का आंचल उठाकर अपना मुख छिपा लिया।<br />
छप्पर के सामने हुक्के को घेरकर बैठे प्रौढ़ आदमी फूलो की इस लज्जा
को देखकर कहकहा लगाकर हंस पड़े। काका रामसिंह ने फूलो को प्यार से
धमकाकर कुरता नीचे करने के लिए समझाया। शरारती लड़के मजाक समझकर हो-हो
करने लगे।<br />
बंकू साह के यहां दवाई के लिए थोड़ी अजवायन लेने आया था, परंतु
फूलो की सरलता से मन चुटिया गया। यों ही लौट चला। बदली परिस्थिति में
भी परंपरागत संस्कार से ही नैतिकता और लज्जा की रक्षा करने के प्रयत्न
में क्या से क्या हो जाता है।<br />
Source : http://www.aparajita.org/read_more.php?id=712&position=3&day=7 </div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-75972690335541588252012-04-28T16:28:00.000+05:302012-04-28T16:28:39.264+05:30विवाद -एक लघुकथा डा. अनवर जमाल की क़लम से Dispute (Short story)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
जंगल में लकड़बग्घों का एक समूह रहता था। जवान लकड़बग्घे शिकार करते, बच्चे खिलवाड़ करते और बूढ़े इंतेज़ार।<br />एक दिन छोटे छोटे बच्चों ने देखा कि कुछ जवान लकड़बग्घों ने एक हिरन के पीछे दौड़ लगाई और फिर उसे घेर कर पकड़ लिया। किसी लकड़बग्घे ने उसके कूल्हों में अपने पंजे गड़ाए तो किसी ने अपने मुंह से उसके पैर पकड़ लिए और किसी ने उसकी गर्दन दबा ली। तड़पते हुए हिरन ने भी हाथ पांव मारे। बच्चों के सामने शिकार का यह पहला मौक़ा था। उन्होंने यह मंज़र पहली बार देखा था। वे भाग कर अपने बूढ़ों के पास पहुंचे और बोले-‘बाबा, बाबा, वहां न, एक हिरन बहुत झगड़ा कर रहा है।‘ <br />बूढ़ों ने इत्मीनान से जवाब दिया-‘बच्चों ये हिरन बहुत बदमाश होते हैं। जब भी पकड़ो तभी विवाद शुरू कर देते हैं।<br />बच्चों ने मुड़कर हिरन की तरफ़ देखा। उसके हाथ पांव अब नहीं हिल रहे थे। विवाद पूरी तरह शांत हो चुका था।<br />बूढ़ा बरगद, नीम, पीपल और झाड़ियां बस ख़ामोश तमाशाई थे। वे कभी विवाद में नहीं पड़ते।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkMcbh1UkAwwhNOA8gC8iH9NPkTWLdYRT7xAhv4gow7x9xoJl1mgtw45vcO5dVURV2xcdki5pSPD9r6GHoLK5hH0uGLyqtN8RzxdIwz3jeJGMwhlUzD5luvAykU4YUZXslvykiSPh97ow/s1600/jackals.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkMcbh1UkAwwhNOA8gC8iH9NPkTWLdYRT7xAhv4gow7x9xoJl1mgtw45vcO5dVURV2xcdki5pSPD9r6GHoLK5hH0uGLyqtN8RzxdIwz3jeJGMwhlUzD5luvAykU4YUZXslvykiSPh97ow/s320/jackals.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-40173782324285915282012-04-16T21:52:00.000+05:302012-04-16T21:52:09.652+05:30लंबी उम्र जीने के लिए आपको बढ़िया सेक्स करना चाहिए Sex Therapy<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"><span id="advenueINTEXT" name="advenueINTEXT"><span style="color: blue; font-weight: bold;">हम्ममम... तो आप लंबी </span> उम्र जीना चाहते हैं। अच्छी बात है। लेकिन यदि हम आपको ये बताएं कि लंबी उम्र जीने के लिए आपको बढ़िया सेक्स करना चाहिए, तो क्या लंबी उम्र के इस नुस्खे पर अमल करेंगे <span style="font-family: Arial;"> ? </span> <br />
<br />
यह सच है कि जब जब आप बहुत बढ़िया, तूफानी, तन और मन को झकझोर कर रख देने वाला सेक्स करते हैं तो आपकी जिन्दगी में 10 साल और जुड़ जाते हैं। <br />
<br />
वैसे तो हर कोई हर उम्र में बढ़िया सेक्स करना चाहता है लेकिन हर कोई, यह आमतौर पर, नहीं जानता है कि नियमित रूप से जबरदस्त सेक्स करने से आपके उम्र में 8 साल तक का इजाफा हो सकता है। यही नहीं, जितने ज्यादा ऑर्गैज्म (सेक्स का चरम) आप महसूस करेंगे, उतना ही ज्यादा आपके अधिक जीने की संभावना बढ़ेगी। <br />
<br />
दरअसल रेग्युलर सेक्स से हॉरमोन लेवल बेहतर होता है, आपके दिल की सेहत भी बढ़िया होती है। यही नहीं, आपके दिमाग की पावर भी बढ़ती है और आपकी रोगों से लड़ने की क्षमता भी विकसित होती है। तो देखिए है न यह एक पंथ दो काज? आनंद के साथ यौवन भी बरकरार... और उम्र में भी बढ़ोतरी। <br />
<br />
<span style="color: blue; font-weight: bold;"> कुछ और टिप्स </span> ले लीजिए हमसे ताकि आप लंबी उम्र पाने के अपने मकसद में कामयाब हो सकें- <br />
<br />
<span style="color: red; font-weight: bold;"> आर्गेज्म के लिए कोशिश करें </span> <br />
<br />
ज्यादा से ज्यादा सेक्स करना फायदेमंद उतना नहीं, जितना कि एक अच्छा, ऑर्गेज्म देने वाला सेशन है। क्वालिटी क्वांटिटी से ज्यादा मायने रखती हैं। एक स्टडी के अनुसार, ऑर्गेज्म शरीर में होने वाले इंफेक्शन्स से लड़ने में मदद करते हैं और यह मदद 20 पर्सेंट तक हो सकती है। बुढ़ापे में ऑर्गेज्म पाने वाले पुरुष उन पुरुषों से दोगुना लंबी उम्र जी सकते हैं जो सेक्स नहीं करते हैं। और, औरतें तो आठ साल ज्यादा लंबा जी सकती हैं। <br />
<br />
ऑर्गेज्म के जरिए आपके शरीर में ऐसे केमिकल्स का प्रवाह बढ़ता है जो मूड बूस्ट करते हैं। आप रिलैक्स होते हैं और आपकी अपने पार्टनर के साथ इमोशनल बॉन्डिंग मजबूत होती है। खुशहाल कपल्स की आयु सिंगल लोगों और एक खराब रिलेशनशिप में जीने वाले लोगों के मुकाबले ज्यादा होती है। <br />
<br />
जो महिलाएं एक हफ्ते में दो बार ऑर्गेज्म प्राप्त करती हैं, उनमें ऐसी महिलाओं के मुकाबले जो कि सेक्स का भरपूर आनंद नहीं ले पाती हैं, हार्ट डिजीज का खतरा 30 पर्सेंट तक कम होता है। <br />
<br />
<span style="font-weight: bold;"> उम्र बढ़ी: आठ साल तक </span> <br />
<br />
<span style="color: red; font-weight: bold;"> और.. और.. और...! </span> <br />
<br />
यदि आप सप्ताह में एक बार सेक्स करते हैं, यानी कम से कम एक बार तो कर ही लेते हैं, तो आपका हॉरमोन लेवल, हार्ट और ब्रेन- तीनों चीजें टॉप कंडीशन में रहेंगी। और, आप जितना ज्यादा करेंगे यानी एक सप्ताह में तीन या उससे ज्यादा बार, तो आपको हार्ट अटैक का खतरा 50 पर्सेंट तक कम हो जाएगा। <br />
<br />
<span style="font-weight: bold;"> साल बढ़े: दो साल तक। </span> <br />
<br />
<span style="color: red; font-weight: bold;"> 'तूफानी' सेक्स करें </span> <br />
उम्मीद है तूफानी सेक्स से आप हमारा मतलब समझ गए होंगे। एक ऐसा सेक्स सेशन जिसमें बहुत सारा पैशन हो और वह आपको थका दे। जब आप बीमारी से उठे हों, थके हों, सेक्स करने की इच्छा कम हो, तब ब्रेन में इन चारों में से किसी एक केमिकल की कमी हो जाती है- डोपामाइन ( <span style="font-family: MS Sans Serif;"> dopamine </span> ), ऐसीटिकॉलिन ( <span style="font-family: MS Sans Serif;"> acetylcholine </span> ), गाबा ( <span style="font-family: MS Sans Serif;"> GABA </span> ) और सेरोटिन ( <span style="font-family: MS Sans Serif;"> serotonin </span> )। ऐसे में तूफानी सेक्स फायदेमंद होगा। <br />
<br />
मूड अच्छा करने के लिए डोपामाइन बढ़ाना जरूरी है। इसके लिए बेसिल, ब्लैक पेपर, मिर्चें, अदरक, जिंजर और हल्दी का सेवन करें। ऐसीटिकॉलिन अलर्टनेस बढ़ाने और फोकस बढ़ाने के लिए जरूरी है। इसके लिए मसालेदार चीजें, बेसिल, पेपरमिंट, तेजपत्ता लें। गाबा कुदरती दवा है अवसाद हटाने की। यह रेड वाइन में मिलता है। सेरोटिन खुशी और रिलैक्सेशन की भावना बढ़ाता है। यह केले और चॉकलेट में पाया जाता है। <br />
<br />
<span style="font-weight: bold;"> साल बढ़े: 10 साल तक। </span> <br />
<br />
<span style="color: red; font-weight: bold;"> स्वस्थ रहने में सहायक </span> <br />
एक स्टडी कहती है कि यदि हफ्ते में दो बार अच्छा सेक्स करेंगे तो शरीर में ऐंटिबॉडीज का लेवल बढ़ेगा जिससे शरीर की कोल्ड और फ्लू से रक्षा होगी। और जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, स्टडी कहती है कि, उन्हें इन चीजों से दो-चार ज्यादा होना पड़ता है। <br />
<br />
तो दोस्तो, जितना जरूरी हफ्ते में 5 दिन ऑफिस में 'काम' करना है, उतना ही जरूरी हफ्ते में दो दिन बेडरूम में 'काम' करना है। </span></div><div style="text-align: justify;"><span id="advenueINTEXT" name="advenueINTEXT"><span style="font-size: xx-small;">Source : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/12688137.cms</span> </span></div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-13525505788662107482012-04-15T15:14:00.000+05:302012-04-15T15:14:51.366+05:30गुल्लक (कहानी) -विकेश निझावन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <div class="left" style="text-align: justify;"> <div class="image"> <span class="content-image"><img src="http://aparajita.org/files/images/0802714bedd8108c2b992964e1ac8639.jpg" /></span> <br />
<span> -ममी! इस बार कितने दिन के लिये आई हो? शिप्रा ने आईने पर से नज़र हटाते हुए मेरी ओर देखते हुए पूछा तो मैं खिलखिला कर हँस दी। शिप्रा को बाँहों में भरते हुए मैंने कहा- मेरी बेटी जब तक चाहेगी मैं उसके पास रह लूँगी।</span> <span> -अगर मैं वापिस ही न जाने दूँ...?<br />
-तो हम नहीं जाएँगे।<br />
-सच कह रही हो ममी?<br />
-क्या हम अपनी बेटी से झूठ बोलेंगे?<br />
-आई लव यू ममी! आई रियली लव यू! शिप्रा ने मेरे दाएँ गाल पर किस किया और मेरी बाँहों का घेरा तोड़ते हुए बाहर को भाग गई।</span><br />
<span> शिप्रा के इस निश्छल स्नेह को मैं समझ पा रही थी। यकीनन मेरे प्यार के लिए वह अतृप्त है। इस पूरे साल के बीच मैं बहुत ही कम आ पायी हूँ। सरकारी नौकरी में कितना काम है कितने बन्धन हैं -इन बातों को शिप्रा क्या समझे। उसकी यह उम्र भी तो नहीं है ये सब समझने की। लेकिन इस बार अपनी इस लम्बी छुट्टी के बीच मैं उसे पूरी तरह से अतृप्त कर ही दूँगी। अपना पिछला एकाकीपन भी भूल जाएगी वह।</span><br />
<span> मैं तो अपनी छुट्टियों का भूली ही चली जा रही थी। वर्मा साहब ने रजिस्टर पर नज़र दौड़ाते हुए मुझे कनखियों से देखते हुए कहा था- मिसेज श्रीवास्तवा क्या इस बार श्रीवास्तव साहब से झगड़ा करके आयी हैं?</span><br />
<span> -क्या मतलब? मैं चौंकी थी।<br />
-साल खतम होने जा रहा है।<br />
-फिर?<br />
अब तो कुछ रोज़ साहब के पास जाकर रह लीजिए।<br />
-कैसी बात करते हैं वर्मा साहब! हमारे साहब हमें चाहते हैं और हम उन्हें चाहते हैं यह तो सच है। लेकिन विदाउट पे छुट्टी लेकर घर पर रहना न उन्हें गँवारा है न हमें।<br />
-भई वही तो बताने जा रहा था। आपकी तो ढेर छुट्टियाँ बन रही हैं। इस पूरे वर्ष में केवल तीन ही तो छुट्टियाँ ली हैं आपने।<br />
केवल तीन! जतिन की शादी पर ... अरे! मैं तो कन्फयूज़ हो जाती हूँ। वह तो पिछले साल की बात थी। यह वर्ष इतनी तेज़ी से गुज़र गया पता ही नहीं चला। इस बार छुट्टियों में बच्चे यहाँ पर आ गये थे सो उनसे दूरी का पता ही नहीं चला। यों तो उनसे एक-एक पल की दूरी सालती है लेकिन काम के बोझ से इतना दब जाती हूँ कि मुझे उन्हें अपने से दूर रखना ही पड़ता है। यों पिछली बार मेरे चेहरे को देखते हुए पापा ने अनायास कह दिया था- अपनी सेहत का ध्यान रखो। जब बच्चों को हमारे पास छोड़ा है तो हम पर विश्वास भी रखना होगा। यह बात केवल पापा ने ही नहीं ममी भैया और भाभी ने भी कही थी। सच में उनके इन शब्दों से मुझे कहीं भीतर तक राहत मिली थी और मैं बच्चों को लेकर पूरी तरह से निश्चिन्त हो आई थी।</span><br />
<span> पिछली छुट्टियों में मैंने देव से फोन पर कह दिया था- मैं इस बार नहीं आ पाऊँगी। नये डायरैक्टर आए हैं अभी हमें उन्हें और उन्हें हमें समझने में समय लगेगा।</span><br />
<span> मेरी इस बात पर देव हँस पड़े थे- भई तुम्हें आने के लिये कह कौन रहा है। छुट्टियाँ शुरू होते ही मैं बच्चों को तुम्हारे पास छोड़ जाऊँगा।</span><br />
<span> देव जिस रोज़ आए थे अगले रोज़ ईद की छुट्टी थी। एक रोज़ छोड़ कर रविवार था जिस वजह से देव ने चार छुट्टियाँ बना ली थीं। इन चार दिनों को खूब जिया था हमने। ईद के मेले पर शिप्रा और अर्शी ने ढेरों छोटी-छोटी चीज़ें खरीद डाली थीं। लेकिन घर आकर महसूस किया कि अर्शी को अपनी बन्दूक और शिप्रा को अपनी मिट्टी की बत्तख के आकार वाली गुल्लक बहुत पसन्द थी। मेरे पर्स में पड़ी आठ-दस रूपये की रेजगारी शिप्रा ने घर में आते ही अपनी गुल्लक में ड़ाल ली थी।</span><br />
<span> हर सुबह उठते ही शिप्रा गुल्लक मेरे सामने ले आती- ममी इसमें कुछ कॉयन्स डालिये न! मुझे अच्छा लगा था कि बच्चे इन छोटी-छोटी चीज़ों के मोह में मुझसे दूर रह सकते हैं।</span><br />
<span> छुट्टियाँ खतम होने पर देव बच्चों को लेने आए तो शिप्रा का चेहरा उतर गया था। अर्शी नाना-नानी को बराबर मिस कर रहा था लेकिन शिप्रा ने नाना-नानी के नाम पर कोई उत्सकता जाहिर नहीं की। जाने क्यों वह मेरे चेहरे की ओर देखने लगी तो मैंने तपाक से कहा- नाना-नानी से भी हर रोज़ कॉयन्स डलवाती रहना। फिर देखना गुल्लक जल्दी ही भर जाएगी।</span><br />
<span> पल भर के लिये शिप्रा के होंठ फैले थे लेकिन अगले ही पल फिर सिकुड़ कर रह गये। जाते हुए उसने बॉय किया था लेकिन शब्द उसके होंठों पर नहीं थे। मैं समझ गई थी शिप्रा अब बड़ी हो रही है। सब समझने लगी है वह।</span><br />
<span> -पापा! एक रोज़ और रुक जाएँ? रात सोने से पहले शिप्रा ने कहा तो देव डपटकर बोले थे- दिमाग खराब हो रहा है तुम्हारा! दो महीने रह लिए क्या मन नहीं भरा तुम्हारा? मैंने महसूस किया था कि शिप्रा सहम गई है।</span><br />
<span> देव के यहाँ से रवाना होते ही मैंने ममी-पापा से फोन पर कह दिया था कि वे शिप्रा का विशेषरूप से ध्यान रखें। शी इज़ मोर सेन्सिटिव।</span><br />
<span> -ममी राघव हमें खेलने नहीं देता। शिप्रा ने अपने हाथ मेरे कंधे पर रख दिए तो मैं वर्तमान में लौटी थी- तो उसके साथ मत खेलो।<br />
-ममी वह गंदी-गंदी बातें करता है।<br />
-कहा न उसके साथ मत खेला करो। अर्शी को अन्दर बुलाओ हम मिलकर केरम खेलेंगे। मेरी बात पर शिप्रा उछल पड़ी और चहकती हुई सी अर्शी को भी भीतर बुला लाई।</span><br />
<span> केरम की गोटियाँ सेट करते हुए अर्शी बोला- ममी राघव को भी बुला लो न! अर्शी ने नज़र उठा कर बाहर की ओर देखा तो मेरी नज़र भी उधर ही घूम गई। मैंने देखा राघव दरवाज़े की ओट में ललचाई नज़रों से हमारी ओर ही देख रहा था।</span><br />
<span> -आओ बेटा तुम भी आ जाओ! मैंने कहा तो शिप्रा एकाएक चिल्ला उठी- नहीं ममी! इसे नहीं खिलाएँगे हम। इसे अन्दर मत आने दो। ये गन्दा है। गन्दी बातें करता है ये।</span><br />
<span> शिप्रा और अर्शी की तरह राघव भी इस घर में पला और बड़ा हुआ है लेकिन शिप्रा की ज़िद्द के आगे मुझे स्वीकारोक्ति देनी ही पड़ी। मैंने जरा सा लहजा बदला- राघव बेटे वो बाई छत पर कपड़े डाल गई थी न वो उतार ला। मौसम खराब है कहीं बारिश ही न आ जाए। वह मुड़ने को हुआ तो मैंने पुनः उसे रोका- हाँ! एक कप गर्म-गर्म चाय भी बना दे। जरा सर में दर्द है चाय लेकर ठीक हो जाएगा। उसके बाद तू भी खेल लेना।<br />
-ममी! तुम्हारे सर में दर्द है तो मैं दबाए देती हूँ। तुम आराम कर लो।<br />
शिप्रा की बात को अर्शी ने काट दिया- चल बुद्धू कहीं की। आराम करने से सर दर्द जाएगा क्या! सर दर्द तो खेलने से जाएगा। खेलने से ममी का ध्यान बंट जाएगा। दोनों बच्चे इतने समझदार हो रहे हैं मैं कहीं भीतर तक गदगद हो आई थी।<br />
राघव चाय लेकर आया तो मैंने केरम एक ओर सरका दिया- तुम लोग बाहर चल कर खेलो। मैं चाय पीकर थोड़ा आराम करना चाहूँगी।<br />
-हाँ-हाँ चलो अर्शी और राघव हम बाहर चल कर खेलते हैं। ममी को आराम करने दो। शिप्रा अब तक राघव के प्रति अपने गुस्से को भूल चुकी थी। राघव चलते-चलते बोला- मेमसाहब छोटी मेमसाहब कब आएँगी?<br />
-अरे आ जाएँगी। तू चलकर अपना काम निबटा। इसे कैसे समझाती मैं कि मेरे आने पर सबको कितनी आज़ादी मिल जाती है। वरना बच्चों की वजह से सबको बंधन तो रहता ही है। जाने अपने कितने-कितने प्रोग्राम इनकी वजह से इन्हें रद्द करने पड़ते होंगे। जब ममी पापा मसूरी गये हुए थे छाया भाभी को दो बार अपनी किट्टी-पार्टी भी मिस करनी पड़ी थी - जय ने बताया था।<br />
कल छाया भाभी सकुचाती हुई बोली थी- दीदी आज हम ममी के यहाँ चले जाएँ?<br />
-अरे यह भी कोई पूछने की बात है! जरूर हो आओ। अब मैं इन दोनों के पास हूँ न!<br />
जय और छाया बाहर को निकले ही थे कि शिप्रा पूछ बैठी- ममी ये लोग कहाँ गए हैं?<br />
-कौन लोग?<br />
-मामा और मामी?<br />
-तुम्हारी मामी अपनी ममी के पास जा रही है। जिस तरह से तुम अपनी ममी के लिए उदास हो जाती हो उसी तरह से तुम्हारी मामी भी अपनी ममी के लिए उदास हो रही थी। तुम लोगों की वजह से वह अपनी ममी के पास भी नहीं जा पाती न।<br />
-हमारी वजह से! शिप्रा जैसे चौंकती हुई बोली- मामी तो हर सप्ताह अपनी ममी के पास जाती है।<br />
-हर सप्ताह! कैसी बात करती हो!<br />
-हाँ! अभी परसों ही तो मामी लौटी है।<br />
-ये कैसे हो सकता है। मैं शिप्रा की बात पर अविश्वास जताती बोली- पिछले डेढ़ माह से ममी-पापा यहाँ नहीं हैं फिर मामी तुम्हें छोड़ कर कैसे जा सकती है।<br />
शिप्रा के जवाब से पहले अर्शी बोल पड़ा- मामी हमें शर्मा अंकल के यहाँ छोड़ जाती है। शर्मा अंकल हमें बहुत डांटते हैं। पिछली बार हमारी पिटाई भी हो गई थी ममी। लेकिन तब हमने शर्मा अंकल से सॉरी कह दिया था। हम आगे से डिब्बे में से बिस्किट लेकर नहीं खाया करेंगे।</span><br />
<span> ये कैसी असलियत मेरे सामने खुल रही थी। मन तो हुआ था देव से सारी बात फोन पर ही बता दूँ। मैं अकेली इस बात को झेल ही नहीं पा रही थी। जय और छाया से सीधे से बात कर पाने की हिम्मत ही नहीं है। पापा-ममी कब आएँगे इसका अभी कुछ अता-पता नहीं। यों देव से कहने का मतलब तो यही होगा कि मैं खुद ही अपने माँ-बाप और भाई-भाभी की तौहीन करने जा रही हूँ।<br />
काफी सोच-विचार के बाद इस निर्णय पर पहुँची थी कि मौका लगते ही अकेले में भाभी को ही समझा दूँगी।<br />
पच्चीस दिन की छुट्टियाँ मैंने सोचा था बहुत लम्बी होंगी। लेकिन वक्त के आगे मैं फिर हार गई। शिप्रा के सामने आह भरते हुए कहा था- बस तीन दिन और रह गये हैं मेरी छुट्टियाँ खतम होने में।<br />
-उसके बाद?<br />
-उसके बाद मुझे जाना होगा।<br />
-तुमने मुझसे प्रामिस किया था ममी कि अब तुम हमें छोड़ कर नहीं जाओगी।<br />
-नौकरी पर तो जाना ही है बेटे। <br />
-नौकरी पर क्यों जाते हैं ममी? शिप्रा के इस सवाल पर मैं हँस पड़ी- नौकरी पर जाने से पैसा मिलता है। उन्हीं पैसों से तो ढेर सारी चीज़ें लाती हूँ तुम्हारे लिये। और फिर भविष्य के लिये पैसा ही तो चाहिये।<br />
-पैसा...! शिप्रा ने दबे से कहा था और झट से अपने कमरे की ओर भाग गयी। अगले ही पल वह लौट आयी थी। उसके हाथ में मिट्टी की गुल्लक देख मैं कह उठी- हाँ-हाँ! इधर लाओ गुल्लक मैं कॉयन्स डालती हूँ।<br />
-नहीं ममी पैसा मुझे नहीं पैसा तो आपको चाहिये। शिप्रा ने पटाक से गुल्लक ज़मीन पर दे मारी- आपको पैसा चाहिये न ममी। आप मेरे सारे पैसे ले लो। लेकिन प्लीज़ आप नौकरी पर मत जाओ। हम आप बिना नहीं रह सकते। देखो मैंने अब तक ढेर पैसे जमा कर लिये हैं। मैं सब आपको दे दूँगी।<br />
शिप्रा का ऐसा विद्रूप रूप को मैं पहली बार देख रही थी। उसके इस व्यवहार से मैं पूरी तरह से टूट गई। लगा अब जाना भी चाहूँ तो नहीं जा पाऊँगी। पल भर में मेरी टाँगें और पाँव बिल्कुल बेजान हो आये। अब तो एक कदम भी नहीं चल पाऊँगी मैं।<br />
मेरी पूरी रात आँखों में कटी थी। मैंने रात भर में यह निर्णय ले लिया था कि सुबह उठते ही दो काम करूँगी। एक तो देव को फोन पर स्पष्ट कह दूँगी कि मैं नौकरी छोड़ रही हूँ। दूसरे डायरैक्टर साहब को फोन पर ही इतला दे दूँगी कि मैं रेज़गनेशन लैटर भेज रही हूँ।<br />
लेकिन मेरे सुबह उठने से पहले दरवाज़े पर कॉल-बेल हुई तो मैंने उनींदी आँखों से दरवाज़ा खोला था। दरवाज़ा खोलते ही मैं हतप्रभ रह गई। सामने देव खड़े थे।<br />
-आप! मैं चौंकती सी बोली थी।<br />
-मेरे आने पर इतना चौंकने वाली क्या बात है?<br />
-नहीं ऐसा नहीं है। मैं झेंपती हुई बोली थी। आप तो पन्द्रह तारीख को आने वाले थे। -हाँ! सोचा दो दिन तुम्हारे साथ और रह लूँगा। तुम्हें सौलह तारीख सुबह ही तो जाना है।<br />
-अब केवल दो दिन और नहीं। तुम चाहो तो अब सारी उम्र मेरे साथ रह सकते हो। मुझे इनकी बात से बात करने का मौका मिल गया था।<br />
-क्या मतलब? देव का चौंकना स्वाभाविक था। अरे अन्दर तो आओ। मैं भी क्या सुबह-सुबह ले बैठी। आप बाथरूम में चल कर ब्रश कीजिए मैं चाय लेकर आती हूँ।</span><br />
<span> बैग ड्राईंगरूम में ही रख ये टॉयलट की ओर बढ़ गए। फ्रेश हो कर लौटे तो मैं डाईनिंग पर चाय के इन्तज़ार में बैठी थी। इनका चेहरा देख मैं हैरान थी। मेरी इतनी बड़ी बात के बावजूद इनके चेहरे पर कोई उत्सुकता नहीं। वैसे यह कोई नई या बड़ी बात नहीं थी मेरे लिये। अक्सर ऐसा होता आया है। मेरी पहाड़ जैसी समस्याओं को सुनकर भी इन्होंने ठहाके लगाये हैं- बस इतनी सी बात थी! इनका पैट वाक्या है यह। मुझे सन्नाटे में देख कह उठते हैं- छोटी-छोटी बातों पर चेहरा ऐसे बना लेती हो जैसे मुर्दाघाट से लौटी हो। मैं अक्सर इन बातों से टूटी हूँ। आँखों से नहीं तो दिल से रोयी हूँ। अगर मेरी वे समस्याएँ इस आदमी के लिये छोटी थीं तो उनमें भी इसने कौन सा साथ दिया मेरा। मैं स्वयं ही उनसे लड़ती रही।</span><br />
<span> ये चुपचाप चाय सिप किये जा रहे थे। में अपने द्वन्द्व को झेलती भूल ही गयी कि मेरे आगे चाय का कप रखा है।<br />
-चाय बहुत गर्म है क्या? इन्होंने कहा तो मैं जैसे धरातल पर गिरी- नहीं तो!<br />
-बच्चे कब उठते हैं? चाय खतम हो गई तो इन्होंने पूछा।<br />
-आजकल मस्ती में हैं। आठ बाजे के बाद ही उठते हैं। आज तुम जाकर उठा लो न।<br />
-मैं जानता था तुम्हारे होते ये इसी तरह बिगड़ेंगे। देव बेड़रूम की ओर बढ़ते हुए बोले। यह वाक्य मज़ाक में कहा गया है या फिर सच में मुझ पर आरोप लगाया जा रहा है मैं बात को पूरी तरह से पकड़ नहीं पायी थी।<br />
कमरे में पहुँच ये अर्शी के साथ बैड पर बैठ गए । मैं शिप्रा के बालों पर हाथ फेरती बोली- देखो बेटे पापा आए हैं।<br />
बच्चे गहरी नींद में थे। मैं शिप्रा से नज़र हटा इनसे मुखातिब हुई- शिप्रा कुछ परेशान है।<br />
-क्यों?<br />
-भैया-भाभी इन्हें कुछ निगलैक्ट कर रहे हैं।<br />
-मतलब?<br />
-कल ही दोनों बता रहे थे कि भाभी कई बार इन्हें शर्मा अंकल के यहाँ छोड़ कर चले जाती है।<br />
-जब बच्चे तुम्हारे साथ थे तो तुम कितने घंटे उन्हें पड़ौसियों के यहाँ छोड़ शॉपिंग के लिये जाती थी याद है तुम्हे?<br />
इनके दो टूक जवाब ने पलभर के लिए मुझे पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। लेकिन अगले ही पल मैं सीधे ही विषय पर आ गई थी- देव मैं नौकरी छोड़ रही हूँ। शिप्रा अब बड़ी हो रही है मैं उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहती।<br />
-तुम नौकरी छोड़ रही हो! देव ने एक-एक शब्द को चबाते हुए जिस हेय दृष्टि से मेरी ओर देखा मैं बुरी तरह से आतंकित हो आई थी। ये उसी रौ में बोले- मैं जानता हूँ तुमने कभी दिमाग से काम नहीं लिया वरना इतनी घटिया बात कभी न करती। तुम मेरी कमाई पर ऐश करना चाहती हो या फिर तुम्हे अपने ही माँ-बाप भाई-बहन पर सन्देह होने लगा है। केवल मेरी तनख्वाह पर कितना बना लोगी? बच्चों की पढ़ाई बच्चों का भविष्य उसकी कोई परवाह है तुम्हे!<br />
बच्चों का भविष्य! मेरा मन चीत्कार उठा। बच्चों का वर्तमान ही नहीं है तो फिर उनका भविष्य क्या होगा? राघव और शर्मा जैसे कई चहरे मेरे सामने अट्टहास कर उठे थे लेकिन मैं समझ गई थी देव मेरी बात को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। अर्थ उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। मेरे एक शब्द और पर वे मुझे जलालत की गर्त में फैंक देंगे। तब नहीं सह पाऊंगी मैं। मुझे वापिस जाना पड़ेगा। यह व्यक्ति जो मेरा पति होने का दम्भ भरता है मेरे ऊपर अपनी कमाई का एक पैसा लगा पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।<br />
मुझे लगा था शिप्रा की उस टूटी हुई गुल्लक की तरह मैं भी टूटकर पूरी तरह से बिखर चुकी हूँ । अब मैं न उनका वर्तमान समेट सकती हूँ न उनका भविष्य।</span><br />
<span><span style="font-size: xx-small;">Source : http://www.aparajita.org/read_more.php?id=182&position=4&day=7</span> </span><br />
</div></div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-51719869563971079412011-10-19T10:57:00.000+05:302011-10-19T10:57:12.336+05:30जीवन की सार्थकता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span id="advenueINTEXT" name="advenueINTEXT"><span style="font-weight: bold;">एक राजा काफी </span> वृद्ध और बीमार हो चला था। उसका जीवन दवाओं के सहारे ही चल रहा था। इस दौरान एक ज्योतिषी उसके पास आया और उसने कहा कि राजा का जीवन बस एक माह शेष है। इससे राजा और चिंतित हो गया। उसकी बीमारी और बढ़ गई। उन्हीं दिनों एक संत राजा को देखने आए। राजा ने उन्हें सारी बात बताई तो वे हंसकर बोले, 'आप तो अमर हैं।' इस पर राजा को बेहद आश्चर्य हुआ। उसने संत से कहा, 'मेरा शरीर तो जर्जर हो चुका है। यह कभी भी टूट सकता है फिर मैं अमर कैसे हो सकता हूं। कृपया विस्तार से समझाएं।' <br />
<br />
यह सुनकर संत राजा को एक जुलाहे के यहां ले गए। संत ने जुलाहे से पूछा, 'तुम कपड़ा तो बनाते हो पर बेचारी रूई के अस्तित्व को क्यों मिटाते हो?' इस पर जुलाहा बोला, 'यदि समय रहते रूई का उपयोग न किया जाए तो वायु और रेत इसको नष्ट कर देंगी। मैं तो इन्हें कपड़े में बदल इन्हें समाज के लिए उपयोगी बना रहा हूं।' अब संत ने राजा को समझाया, 'राजन्, दुनिया की हर वस्तु का एक न एक दिन मिटना तय है। </span><br />
<span id="advenueINTEXT" name="advenueINTEXT">इसलिए उनका सर्वोत्तम प्रयोग किया जाना चाहिए। इसी में उसकी सार्थकता है। शरीर का भी एक दिन नष्ट होना तय है। उसे स्थायी रूप से बचाया नहीं जा सकता। इसलिए उसके बचने की चिंता छोड़कर हमें उसका दूसरों के हित में प्रयोग करना चाहिए।' राजा संत का आशय समझ गया। वह मृत्यु की चिंता छोड़कर राजकाज में फिर से मन लगाने लगा। धीरे-धीरे वह स्वस्थ हो गया। <br />
<span style="font-weight: bold;"> संकलन: नरेंद्र वार्ष्णेय </span></span> <br />
<div class="Normal" style="text-align: left;"><span style="font-weight: bold;">साभार दैनिक नव भारत टाइम्स : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/10403461.cms</span></div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-74120229781483108352011-08-29T17:36:00.000+05:302011-08-29T17:36:54.060+05:30दस दिन का अनशन - हरिशंकर परसाई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">हरिशंकर परसाई की यह रचना रोचक है और आज के संदर्भों से जुड़ी है। इन दिनों नेट पर पढ़ी जा रही है। आपने पढ़ी न हो तो पढ़ लें। इसे मैने <a href="http://ek-ziddi-dhun.blogspot.com/2011/06/blog-post_12.html">एक जिद्दी धुन</a> नाम के ब्लॉग से लिया है।<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_fknQp0FAHNkiVV2Ady9akwboN7xirG2LG22q1zH3Zzf6XOL4VnGvHEH_BEX7NckeoTG9DoZ_SPBC_tpTd6iKytEZw04UZ3s7NnBQOcCXSA-54h46prOZIbHwHFSdLPxyDVS73jH79VA/s1600/anshan.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_fknQp0FAHNkiVV2Ady9akwboN7xirG2LG22q1zH3Zzf6XOL4VnGvHEH_BEX7NckeoTG9DoZ_SPBC_tpTd6iKytEZw04UZ3s7NnBQOcCXSA-54h46prOZIbHwHFSdLPxyDVS73jH79VA/s1600/anshan.jpg" /></a></div><br />
<b>10 जनवरी</b><br />
<br />
आज मैंने बन्नू से कहा, " देख बन्नू, दौर ऐसा आ गया है कि संसद, क़ानून, संविधान, न्यायालय सब बेकार हो गए हैं. बड़ी-बड़ी मांगें अनशन और आत्मदाह की धमकी से पूरी हो रही हैं. २० साल का प्रजातंत्र ऐसा पक गया है कि एक आदमी के मर जाने या भूखा रह जाने की धमकी से ५० करोड़ आदमियों के भाग्य का फैसला हो रहा है. इस वक़्त तू भी उस औरत के लिए अनशन कर डाल."<br />
<br />
बन्नू सोचने लगा. वह राधिका बाबू की बीवी सावित्री के पीछे सालों से पड़ा है. भगाने की कोशिश में एक बार पिट भी चुका है. तलाक दिलवाकर उसे घर में डाल नहीं सकता, क्योंकि सावित्री बन्नू से नफरत करती है.<br />
<br />
सोचकर बोला, " मगर इसके लिए अनशन हो भी सकता है? "<br />
<br />
मैंने कहा, " इस वक़्त हर बात के लिए हो सकता है. अभी बाबा सनकीदास ने अनशन करके क़ानून बनवा दिया है कि हर आदमी जटा रखेगा और उसे कभी धोएगा नहीं. तमाम सिरों से दुर्गन्ध निकल रही है. तेरी मांग तो बहुत छोटी है- सिर्फ एक औरत के लिए."<br />
<br />
सुरेन्द्र वहां बैठा था. बोला, " यार कैसी बात करते हो! किसी की बीवी को हड़पने के लिए अनशन होगा? हमें कुछ शर्म तो आनी चाहिए. लोग हँसेंगे."<br />
<br />
मैंने कहा, " अरे यार, शर्म तो बड़े-बड़े अनशनिया साधु-संतों को नहीं आई. हम तो मामूली आदमी हैं. जहाँ तक हंसने का सवाल है, गोरक्षा आन्दोलन पर सारी दुनिया के लोग इतना हंस चुके हैं कि उनका पेट दुखने लगा है. अब कम-से-कम दस सालों तक कोई आदमी हंस नहीं सकता. जो हंसेगा वो पेट के दर्द से मर जाएगा."<br />
<br />
बन्नू ने कहा," सफलता मिल जायेगी?"<br />
<br />
मैंने कहा," यह तो 'इशू' बनाने पर है. अच्छा बन गया तो औरत मिल जाएगी. चल, हम 'एक्सपर्ट' के पास चलकर सलाह लेते हैं. बाबा सनकीदास विशेषज्ञ हैं. उनकी अच्छी 'प्रैक्टिस' चल रही है. उनके निर्देशन में इस वक़्त चार आदमी अनशन कर रहे हैं."<br />
<br />
हम बाबा सनकीदास के पास गए. पूरा मामला सुनकर उन्होंने कहा," ठीक है. मैं इस मामले को हाथ में ले सकता हूँ. जैसा कहूँ वैसा करते जाना. तू आत्मदाह की धमकी दे सकता है?"<br />
<br />
बन्नू कांप गया. बोला," मुझे डर लगता है."<br />
<br />
"जलना नहीं है रे. सिर्फ धमकी देना है."<br />
<br />
"मुझे तो उसके नाम से भी डर लगता है."<br />
<br />
बाबा ने कहा," अच्छा तो फिर अनशन कर डाल. 'इशू' हम बनायेंगे."<br />
<br />
बन्नू फिर डरा. बोला," मर तो नहीं जाऊँगा."<br />
<br />
बाबा ने कहा," चतुर खिलाड़ी नहीं मरते. वे एक आँख मेडिकल रिपोर्ट पर और दूसरी मध्यस्थ पर रखते हैं. तुम चिंता मत करो. तुम्हें बचा लेंगे और वह औरत भी दिला देंगे."<br />
<br />
<br />
<b>11 जनवरी</b><br />
<br />
आज बन्नू आमरण अनशन पर बैठ गया. तम्बू में धुप-दीप जल रहे हैं. एक पार्टी भजन गा रही है - 'सबको<br />
सन्मति दे भगवान्!'. पहले ही दिन पवित्र वातावरण बन गया है. बाबा सनकीदास इस कला के बड़े उस्ताद हैं. उन्होंने बन्नू के नाम से जो वक्तव्य छपा कर बंटवाया है, वो बड़ा ज़ोरदार है. उसमें बन्नू ने कहा है कि 'मेरी आत्मा से पुकार उठ रही है कि मैं अधूरी हूँ. मेरा दूसरा खंड सावित्री में है. दोनों आत्म-खण्डों को मिलाकर एक करो या मुझे भी शरीर से मुक्त करो. मैं आत्म-खण्डों को मिलाने के लिए आमरण अनशन पर बैठा हूँ. मेरी मांग है कि सावित्री मुझे मिले. यदि नहीं मिलती तो मैं अनशन से इस आत्म-खंड को अपनी नश्वर देह से मुक्त कर दूंगा. मैं सत्य पर हूँ, इसलिए निडर हूँ. सत्य की जय हो!'<br />
<br />
सावित्री गुस्से से भरी हुई आई थी. बाबा सनकीदास से कहा," यह हरामजादा मेरे लिए अनशन पर बैठा है ना?"<br />
बाबा बोले," देवी, उसे अपशब्द मत कहो. वह पवित्र अनशन पर बैठा है. पहले हरामजादा रहा होगा. अब नहीं रहा. वह अनशन कर रहा है."<br />
<br />
सावित्री ने कहा," मगर मुझे तो पूछा होता. मैं तो इस पर थूकती हूँ."<br />
<br />
बाबा ने शान्ति से कहा," देवी, तू तो 'इशू' है. 'इशू' से थोड़े ही पूछा जाता है. गोरक्षा आन्दोलन वालों ने गाय से कहाँ पूछा था कि तेरी रक्षा के लिए आन्दोलन करें या नहीं. देवी, तू जा. मेरी सलाह है कि अब तुम या तुम्हारा पति यहाँ न आएं. एक-दो दिन में जनमत बन जाएगा और तब तुम्हारे अपशब्द जनता बर्दाश्त नहीं करेगी."<br />
वह बड़बड़ाती हुई चली गई.<br />
<br />
बन्नू उदास हो गया. बाबा ने समझाया," चिंता मत करो. जीत तुम्हारी होगी. अंत में सत्य की ही जीत होती है."<br />
<br />
<br />
<b>13 जनवरी</b><br />
<br />
बन्नू भूख का बड़ा कच्चा है. आज तीसरे ही दिन कराहने लगा. बन्नू पूछता है, " जयप्रकाश नारायण आये?"<br />
मैंने कहा," वे पांचवें या छठे दिन आते हैं. उनका नियम है. उन्हें सूचना दे दी है."<br />
<br />
वह पूछता है," विनोबा ने क्या कहा है इस विषय में?"<br />
<br />
बाबा बोले," उन्होंने साधन और साध्य की मीमांसा की है, पर थोड़ा तोड़कर उनकी बात को अपने पक्ष में उपयोग किया जा सकता है."<br />
<br />
बन्नू ने आँखें बंद कर लीं. बोला,"भैया, जयप्रकाश बाबू को जल्दी बुलाओ."<br />
<br />
आज पत्रकार भी आये थे. बड़ी दिमाग-पच्ची करते रहे.<br />
<br />
पूछने लगे," उपवास का हेतु कैसा है? क्या वह सार्वजनिक हित में है? "<br />
<br />
बाबा ने कहा," हेतु अब नहीं देखा जाता. अब तो इसके प्राण बचाने की समस्या है. अनशन पर बैठना इतना बड़ा आत्म-बलिदान है कि हेतु भी पवित्र हो जाता है."<br />
<br />
मैंने कहा," और सार्वजनिक हित इससे होगा. कितने ही लोग दूसरे की बीवी छीनना चाहते हैं, मगर तरकीब उन्हें नहीं मालूम. अनशन अगर सफल हो गया, तो जनता का मार्गदर्शन करेगा."<br />
<br />
<br />
<b>14 जनवरी</b><br />
<br />
बन्नू और कमज़ोर हो गया है. वह अनशन तोड़ने की धमकी हम लोगों को देने लगा है. इससे हम लोगों का मुंह काला हो जायेगा. बाबा सनकीदास ने उसे बहुत समझाया.<br />
<br />
आज बाबा ने एक और कमाल कर दिया. किसी स्वामी रसानंद का वक्तव्य अख़बारों में छपवाया है. स्वामीजी ने कहा है कि मुझे तपस्या के कारण भूत और भविष्य दिखता है. मैंने पता लगाया है क बन्नू पूर्वजन्म में ऋषि था और सावित्री ऋषि की धर्मपत्नी. बन्नू का नाम उस जन्म में ऋषि वनमानुस था. उसने तीन हज़ार वर्षों के बाद अब फिर नरदेह धारण की है. सावित्री का इससे जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध है. यह घोर अधर्म है कि एक ऋषि की पत्नी को राधिका प्रसाद-जैसा साधारण आदमी अपने घर में रखे. समस्त धर्मप्राण जनता से मेरा आग्रह है कि इस अधर्म को न होने दें.<br />
<br />
इस वक्तव्य का अच्छा असर हुआ. कुछ लोग 'धर्म की जय हो!' नारे लगाते पाए गए. एक भीड़ राधिका बाबू के घर के सामने नारे लगा रही थी----<br />
<br />
"राधिका प्रसाद-- पापी है! पापी का नाश हो! धर्म की जय हो."<br />
<br />
स्वामीजी ने मंदिरों में बन्नू की प्राण-रक्षा के लिए प्रार्थना का आयोजन करा दिया है.<br />
<br />
<br />
<b>15 जनवरी</b><br />
<br />
रात को राधिका बाबू के घर पर पत्थर फेंके गए.<br />
<br />
जनमत बन गया है.<br />
<br />
स्त्री-पुरुषों के मुख से यह वाक्य हमारे एजेंटों ने सुने---<br />
"बेचारे को पांच दिन हो गए. भूखा पड़ा है."<br />
<br />
"धन्य है इस निष्ठां को."<br />
<br />
"मगर उस कठकरेजी का कलेजा नहीं पिघला."<br />
<br />
"उसका मरद भी कैसा बेशरम है."<br />
<br />
"सुना है पिछले जन्म में कोई ऋषि था."<br />
<br />
"स्वामी रसानंद का वक्तव्य नहीं पढ़ा!"<br />
<br />
"बड़ा पाप है ऋषि की धर्मपत्नी को घर में डाले रखना."<br />
<br />
आज ग्यारह सौभाग्यवतियों ने बन्नू को तिलक किया और आरती उतारी.<br />
<br />
बन्नू बहुत खुश हुआ. सौभाग्यवतियों को देख कर उसका जी उछलने लगता है.<br />
<br />
अखबार अनशन के समाचारों से भरे हैं.<br />
<br />
आज एक भीड़ हमने प्रधानमन्त्री के बंगले पर हस्तक्षेप की मांग करने और बन्नू के प्राण बचाने की अपील करने भेजी थी. प्रधानमन्त्री ने मिलने से इनकार कर दिया.<br />
<br />
देखते हैं कब तक नहीं मिलते.<br />
<br />
शाम को जयप्रकाश नारायण आ गए. नाराज़ थे. कहने लगे," किस-किस के प्राण बचाऊं मैं? मेरा क्या यही धंधा है? रोज़ कोई अनशन पर बैठ जाता है और चिल्लाता है प्राण बचाओ. प्राण बचाना है तो खाना क्यों नहीं लेता? प्राण बचाने के लिए मध्यस्थ की कहाँ ज़रुरत है? यह भी कोई बात है! दूसरे की बीवी छीनने के लिए अनशन के पवित्र अस्त्र का उपयोग किया जाने लगा है."<br />
<br />
हमने समझाया," यह 'इशू' ज़रा दूसरे किस्म है. आत्मा से पुकार उठी थी."<br />
<br />
वे शांत हुए. बोले," अगर आत्मा की बात है तो मैं इसमें हाथ डालूँगा."<br />
<br />
मैंने कहा," फिर कोटि-कोटि धर्मप्राण जनता की भावना इसके साथ जुड़ गई है."<br />
<br />
जयप्रकाश बाबू मध्यस्थता करने को राज़ी हो गए. वे सावित्री और उसके पति से मिलकर फिर प्रधानमन्त्री से मिलेंगे.<br />
<br />
बन्नू बड़े दीनभाव जयप्रकाश बाबू की तरफ देख रहा था.<br />
<br />
बाद में हमने उससे कहा," अबे साले, इस तरह दीनता से मत देखा कर. तेरी कमज़ोरी ताड़ लेगा तो कोई भी नेता तुझे मुसम्मी का रस पिला देगा. देखता नहीं है, कितने ही नेता झोलों में मुसम्मी रखे तम्बू के आस-पास घूम रहे हैं."<br />
<br />
<br />
<b>16 जनवरी</b><br />
<br />
जयप्रकाश बाबू की 'मिशन' फेल हो गई. कोई मानने को तैयार नहीं है. प्रधानमन्त्री ने कहा," हमारी बन्नू के साथ सहानुभूति है, पर हम कुछ नहीं कर सकते. उससे उपवास तुडवाओ, तब शान्ति से वार्ता द्वारा समस्या का हल ढूँढा जाएगा."<br />
<br />
हम निराश हुए. बाबा सनकीदास निराश नहीं हुए. उन्होंने कहा," पहले सब मांग को नामंज़ूर करते हैं. यही प्रथा है. अब आन्दोलन तीव्र करो. अखबारों में छपवाओ क बन्नू की पेशाब में काफी 'एसीटोन' आने लगा है. उसकी हालत चिंताजनक है. वक्तव्य छपवाओ कि हर कीमत पर बन्नू के प्राण बचाए जाएँ. सरकार बैठी-बैठी क्या देख रही है? उसे तुरंत कोई कदम उठाना चाहिए जिससे बन्नू के बहुमूल्य प्राण बचाए जा सकें."<br />
<br />
बाबा अद्भुत आदमी हैं. कितनी तरकीबें उनके दिमाग में हैं. कहते हैं, "अब आन्दोलन में जातिवाद का पुट देने का मौका आ गया है. बन्नू ब्राम्हण है और राधिकाप्रसाद कायस्थ. ब्राम्हणों को भड़काओ और इधर कायस्थों को. ब्राम्हण-सभा का मंत्री आगामी चुनाव में खड़ा होगा. उससे कहो कि यही मौका है ब्राम्हणों के वोट इकट्ठे ले लेने का."<br />
<br />
आज राधिका बाबू की तरफ से प्रस्ताव आया था कि बन्नू सावित्री से राखी बंधवा ले.<br />
<br />
हमने नामंजूर कर दिया.<br />
<br />
<br />
<b>17 जनवरी</b><br />
<br />
आज के अखबारों में ये शीर्षक हैं---<br />
"बन्नू के प्राण बचाओ!<br />
<br />
बन्नू की हालत चिंताजनक!'<br />
<br />
मंदिरों में प्राण-रक्षा के लिए प्रार्थना!"<br />
<br />
एक अख़बार में हमने विज्ञापन रेट पर यह भी छपवा लिया---<br />
"कोटि-कोटि धर्म-प्राण जनता की मांग---!<br />
बन्नू की प्राण-रक्षा की जाए!<br />
बन्नू की मृत्यु के भयंकर परिणाम होंगे !"<br />
<br />
ब्राह्मण-सभा के मंत्री का वक्तव्य छप गया. उन्होंने ब्राह्मण जाति की इज्ज़त का मामला इसे बना लिया था. सीधी कार्यवाही की धमकी दी थी.<br />
<br />
हमने चार गुंडों को कायस्थों के घरों पर पत्थर फेंकने के लिए तय कर किया है.<br />
<br />
इससे निपटकर वही लोग ब्राह्मणों के घर पर पत्थर फेंकेंगे.<br />
<br />
पैसे बन्नू ने पेशगी दे दिए हैं.<br />
<br />
बाबा का कहना है क कल या परसों तक कर्फ्य लगवा दिया जाना चाहिए. दफा 144 तो लग ही जाये. इससे 'केस' मज़बूत होगा.<br />
<br />
<br />
<b>18 जनवरी</b><br />
<br />
रात को ब्राह्मणों और कायस्थों के घरों पर पत्थर फिंक गए.<br />
<br />
सुबह ब्राह्मणों और कायस्थों के दो दलों में जमकर पथराव हुआ.<br />
<br />
शहर में दफा 144 लग गयी.<br />
<br />
सनसनी फैली हुई है.<br />
<br />
हमारा प्रतिनिधि मंडल प्रधानमन्त्री से मिला था. उन्होंने कहा," इसमें कानूनी अडचनें हैं. विवाह-क़ानून में संशोधन करना पड़ेगा."<br />
<br />
हमने कहा," तो संशोधन कर दीजिये. अध्यादेश जारी करवा दीजिये. अगर बन्नू मर गया तो सारे देश में आग लग जायेगी."<br />
<br />
वे कहने लगे," पहले अनशन तुडवाओ ? "<br />
<br />
हमने कहा," सरकार सैद्धांतिक रूप से मांग को स्वीकार कर ले और एक कमिटी बिठा दे, जो रास्ता बताये कि वह औरत इसे कैसे मिल सकती है."<br />
<br />
सरकार अभी स्थिति को देख रही है. बन्नू को और कष्ट भोगना होगा.<br />
<br />
मामला जहाँ का तहाँ रहा. वार्ता में 'डेडलॉक' आ गया है.<br />
<br />
छुटपुट झगड़े हो रहे हैं.<br />
<br />
रात को हमने पुलिस चौकी पर पत्थर फिंकवा दिए. इसका अच्छा असर हुआ.<br />
<br />
'प्राण बचाओ'---की मांग आज और बढ़ गयी.<br />
<br />
<br />
<b>19 जनवरी</b><br />
<br />
बन्नू बहुत कमज़ोर हो गया है. घबड़ाता है. कहीं मर न जाए.<br />
<br />
बकने लगा है कि हम लोगों ने उसे फंसा दिया है. कहीं वक्तव्य दे दिया तो हम लोग 'एक्सपोज़' हो जायेंगे.<br />
<br />
कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा. हमने उससे कहा कि अब अगर वह यों ही अनशन तोड़ देगा तो जनता उसे मार डालेगी.<br />
<br />
प्रतिनिधि मंडल फिर मिलने जाएगा.<br />
<br />
<br />
<b>20 जनवरी</b><br />
<br />
'डेडलॉक '<br />
<br />
सिर्फ एक बस जलाई जा सकी.<br />
<br />
बन्नू अब संभल नहीं रहा है.<br />
<br />
उसकी तरफ से हम ही कह रहे हैं कि "वह मर जाएगा, पर झुकेगा नहीं!"<br />
<br />
सरकार भी घबराई मालूम होती है.<br />
<br />
साधुसंघ ने आज मांग का समर्थन कर दिया.<br />
<br />
ब्राह्मण समाज ने अल्टीमेटम दे दिया. १० ब्राह्मण आत्मदाह करेंगे.<br />
<br />
सावित्री ने आत्महत्या की कोशिश की थी, पर बचा ली गयी.<br />
<br />
बन्नू के दर्शन के लिए लाइन लगी रही है.<br />
<br />
राष्ट्रसंघ के महामंत्री को आज तार कर दिया गया.<br />
<br />
जगह-जगह- प्रार्थना-सभाएं होती रहीं.<br />
<br />
डॉ. लोहिया ने कहा है क जब तक यह सरकार है, तब तक न्यायोचित मांगें पूरी नहीं होंगी. बन्नू को चाहिए कि वह सावित्री के बदले इस सरकार को ही भगा ले जाए.<br />
<br />
<br />
<b>21 जनवरी</b><br />
<br />
बन्नू की मांग सिद्धांततः स्वीकार कर ली गयी.<br />
<br />
व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने के लिए एक कमेटी बना दी गई है.<br />
<br />
भजन और प्रार्थना के बीच बाबा सनकीदास ने बन्नू को रस पिलाया. नेताओं की मुसम्मियाँ झोलों में ही सूख गईं. बाबा ने कहा कि जनतंत्र में जनभावना का आदर होना चाहिए. इस प्रश्न के साथ कोटि-कोटि जनों की भावनाएं जुड़ी हुई थीं. अच्छा ही हुआ जो शान्ति से समस्या सुलझ गई, वर्ना हिंसक क्रान्ति हो जाती.<br />
<br />
ब्राह्मणसभा के विधानसभाई उमीदवार ने बन्नू से अपना प्रचार कराने के लिए सौदा कर लिया है. काफी बड़ी रकम दी है. बन्नू की कीमत बढ़ गयी.<br />
<br />
चरण छूते हुए नर-नारियों से बन्नू कहता है," सब ईश्वर की इच्छा से हुआ. मैं तो उसका माध्यम हूँ."<br />
<br />
नारे लग रहे हैं -- सत्य की जय! धर्म की जय!<br />
<br />
Source : http://pramathesh.blogspot.com/2011/08/blog-post_1980.html#comment-form </div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-82149054189365596752011-08-28T17:41:00.002+05:302011-09-16T12:19:43.317+05:30चूहों से परेशान तेनालीराम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="blue_1_11"></span> <br />
<div style="padding: 10px 0px;"><table border="0" cellpadding="0" cellspacing="0"><tbody>
<tr> <td align="left"><div align="center" style="border: 1px #bcbcc3 solid; margin-right: 10px; width: 250px;"><img src="http://www.josh18.com/media/images/2010/Oct/12oct_rat.jpg" style="padding: 5px;" /></div></td> <td valign="bottom"></td></tr>
</tbody></table></div><b>तेनाली राम के बारे में <br />
<br />
(1520 ई. में दक्षिण भारत के विजयनगर राज्य में राजा कृष्णदेव राय हुआ करते थे। तेनाली राम उनके दरबार में अपने हास-परिहास से लोगों का मनोरंजन किया करते थे। उनकी खासियत थी कि गम्भीर से गम्भीर विषय को भी वह हंसते-हंसते हल कर देते थे।<br />
<br />
उनका जन्म गुंटूर जिले के गलीपाडु नामक कस्बे में हुआ था। तेनाली राम के पिता बचपन में ही गुजर गए थे। बचपन में उनका नाम ‘राम लिंग’ था, चूंकि उनकी परवरिश अपने ननिहाल ‘तेनाली’ में हुई थी, इसलिए बाद में लोग उन्हें तेनाली राम के नाम से पुकारने लगे।<br />
<br />
विजयनगर के राजा के पास नौकरी पाने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। कई बार उन्हें और उनके परिवार को भूखा भी रहना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी और कृष्णदेव राय के पास नौकरी पा ही ली। तेनाली राम की गिनती राजा कृष्णदेव राय के आठ दिग्गजों में होती है।)<br />
<br />
<u>चूहों की समस्या</u></b><br />
<br />
चूहों ने तेनाली राम के घर में बड़ा उत्पात मचा रखा था। एक दिन चूहों ने तेनालीराम की पत्नी की एक सुंदर साड़ी में काटकर एक छेद बना दिया। तेनाली राम और उनकी पत्नी को बहुत क्रोध आया। उन्होंने सोचा-“इन्हें पकड़कर मारना ही पड़ेगा। नहीं तो न जाने ओर कितना नुकसान कर दें।” <br />
बहुत कोशिश करने पर भी चूहे उनके हाथ नहीं लग रहे थे। वे संदूकों और दूसरे सामान के पीछे जाकर छिप जाते। भागते-दौड़ते, घंटों की कोशिश के बाद कहीं एक चूहा पकड़कर मार पाए। तेनाली राम बड़ा परेशान था।<br />
<br />
आखिर वह अपने एक मित्र के पास गया, जिसने उसे सलाह दी कि चूहों से छुटकारा पाने के लिए एक बिल्ली पाल लो। वही इस मुसीबत का इलाज है। तेनाली राम ने बिल्ली पाल ली और सचमुच उसके यहां चूहों का उत्पात कम होने लगा। उसने चैन की सांस ली। <br />
<br />
अचानक एक दिन उसकी बिल्ली ने पड़ोसियों के पालतू तोते को पकड़ लिया और मार डाला। घर की मालकिन ने अपने पति से शिकायत की और कहा कि इस दुष्ट बिल्ली को मार डालो। उसने तेनाली राम की बिल्ली का पीछा किया और उसे जा पकड़ा। वह उसको मारने ही वाला था कि तेनाली राम वहां आ गया। <br />
<br />
तेनाली ने कहा-“भाई, मैंने यह बिल्ली चूहों से छुटाकारा पाने के लिए पाली है। हमें क्षमा कर दीजिए और बिल्ली मुझे वापस कर दीजिए। मुझ पर आपका बड़ा एहसान होगा।” पड़ौसी नहीं माना, बोला-“चूहे पकड़ने के लिए तुम्हें बिल्ली की क्या आवश्यकता है? मैं तो बिना बिल्ली के भी चूहे पकड़ सकता हूं।” और उसने बिल्ली को मार दिया। <br />
<br />
कुछ दिनों बाद पड़ोसी को किसी ने एक सुन्दर संदूक उपहार भेजा। उसने अपने शयनकक्ष में जाकर संदूक खोला। उसी कमरे में उसकी पत्नी की कीमती साड़ियां रखी थीं। संदूक खोलते ही चूहों की सेना उसमें से उछलकर बाहर निकल आई। चूहे कमरे के चारों और दौड़ने लगे। वह उन्हें पकड़ने के लिए कभी बाएं तो कभी दाएं उछ्लता पर असफल रहा। उसके साथ उसके नौकर भी थे। <br />
<br />
कई घंटों की उछलकूद के बाद कहीं जाकर उन्हें चूहों से छुटकारा मिला। पर इस दौरान उनका काफी नुकसान भी उठाना पड़ा। उनके कीमती गलीचों पर चूहों के खून के निशान पड़ चुके थे। ठोकर खाकर एक कीमती फूलदान भी टूट गया गया। <br />
<br />
थके हारे पड़ोसी ने जब संदूक में यह देखने का प्रयास किया कि आखिर किसने यह संदूक भेजी है, तो एक पर्ची पाई। उस पर लिखा था, “आपने कहा था कि आप बिना बिल्ली के ही चूहों पर काबू पा जाएंगे। <br />
<br />
मैं परीक्षा के लिए कुछ चूहों को आपके यहां भेज रहा हूं। आपका तेनालीराम।” तेनालीराम का नाम पढ़ते ही पड़ोसी को सारी बात समझ में आ गई। उसने फौरन अपनी भूल के लिए तेनालीराम से माफी मांग ली।<br />
Source : http://josh18.in.com/showstory.php?id=803872 </div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-63819376652398800222011-08-28T09:12:00.001+05:302011-08-28T09:24:28.783+05:30महंगाई के चूहे -रश्मि गौड़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6RCr1SE-ksnnpldz4-2oMqWATL0sNvVjtcqAIuTBOmAQTP2p4iwxzUlpO_3sKVQjtsRPMROG-EWcyCAvbpM7lInXX6qZuY8SSTcgGVHH1YElQW2A9EbL7DLkklS6RaxEPpF-X0BzwWkI/s1600/bhartiy+sarkar.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6RCr1SE-ksnnpldz4-2oMqWATL0sNvVjtcqAIuTBOmAQTP2p4iwxzUlpO_3sKVQjtsRPMROG-EWcyCAvbpM7lInXX6qZuY8SSTcgGVHH1YElQW2A9EbL7DLkklS6RaxEPpF-X0BzwWkI/s1600/bhartiy+sarkar.jpeg" /></a></div><div style="text-align: justify;">अभी कुछ दिन पहले लालाजी ने अपने ऊपर का मकान पाटिल साहब को लीज पर दिया था। पाटिल साहब किसी कंपनी में प्रबंध निदेशक थे। भारी किराया अदा करती थी उनकी कंपनी। पाटिल साहब का क्या कहना, गजब का रोब-दाब, शोफर ड्रिवन गाड़ी आती थी उन्हें लेने, चकाचक यूनिफॉर्म में जब शोफर तपाक से गाड़ी का दरवाजा खोलता तो पूरी कॉलोनी के लोग देखते रह जाते।</div><div style="text-align: justify;">उस कॉलोनी में अधिकतर निवासी व्यवसायरत थे। उनके बाप-दादे ही ये कोठियां और व्यवसाय विरासत में दे गए थे। किसी की चांदी की दुकान थी, किसी की कपड़े की, तो कोई टेंट की दसियों दुकानें लिए बैठा था। आज तक इस कॉलोनी में कोई भी असली पढ़ा-लिखा नहीं आया था। यूं तो इंटर और मैट्रिक पास कई नौजवान थे, परंतु सभी ने अपने स्कूल लड़खड़ाते हुए पास किए थे। घर में कोई कमी नहीं थी, सो कोई बड़े भाई के साथ लग गया तो कोई पिता का हाथ बंटाने लगा, लाखों के वारे-न्यारे होने लगे, बिजनेस के गुर सीखने व सिखाने में जिंदगी शांति से बीत रही थी कि पाटिल साहब के आने पर मानो तेज हवाएं चलने लगीं। जनाब पाटिल साहब व उनकी पत्नी, जो कि किसी कॉलेज में प्राध्यापिका थीं, की चर्चा घर-घर होने लगी। ज्यों-ज्यों लोग-बाग उनके ठाट-बाट देखते, त्यों-त्यों उनका मन मेलजोल बढ़ाने को करता, पर पाटिल साहब व उनकी पत्नी किसी की ओर देखते भी न थे, धड़ाधड़ सीढ़ियों से नीचे उतरते और गाड़ी में बैठ कर ओझल। अंग्रेजी तो मानो उनकी मातृभाषा थी। लालाजी से भी बस दुआ-सलाम ही थी। घर में एक वृद्धा नौकरानी थी, जो बस सब्जी आदि लेने नीचे उतरती, पर बोलती किसी से भी नहीं थी। बस पाटिल दंपत्ति के जाने के बाद बालकनी में बैठती और सड़क पर आते-जाते लोगों को देखती रहती या सिलाई-बुनाई करती रहती। पाटिल दंपत्ति के आने पर खिड़की बंद हो जाती। ऐसे में भला कॉलोनी की महिलाओं में गजब की बेचैनी हो गई। किटी पार्टीज व ताश पार्टियों में उनकी चर्चा होने लगी। एक दिन मिसेज शर्मा मिसेज खन्ना से बोलीं, ‘अरे, इन मेम साहब को भी मेंबर बनाओ अपने क्लब का।’ ‘हुंह, इनके तो मिजाज ही नहीं मिलते, मेम साब होंगी तो अपने घर की। जितना ये दोनों मिया-बीवी मिल कर कमाते होंगे, उतना तो खन्ना साहब एक दिन में कमा लेते होंगे।’ मिसेज खन्ना ने खिन्न होकर कहा।</div><div style="text-align: justify;">‘और क्या, वो मेंबर बनना तो दूर, किसी की ओर देखती तक नहीं।’ मिसेज सिंह को अपना डायमंड सेट पहनना व्यर्थ ही लग रहा था। उधर, लालाजी की ललाइन बड़ी दु:खी थीं। शेयर दलाल लालाजी रोज आकर हजारों रुपए की थैली उनके हाथ में पकड़ाते तो ललाइन की बड़ी इच्छा होती कि ऊपरवाली मेम साब भी देख लें एक नजर, पर उस किले से किसी को देखना तो दूर, एक आवाज भी सुनाई न देती। खैर, इसी प्रकार छह महीने बीत गए, पाटिल साहब से किसी का भी परिचय न हो सका। लालाजी के हाथ में हर पहली तारीख को किराए का चेक आ ही जाता था, सो समझ में ही न आ रहा था कि पहल कैसे की जाए। अचानक एक दिन मानों बिल्ली के भागों छींका टूट गया। पोस्टमैन एक तार लाया, जिसे लालाजी ने पाटिल दंपती के घर पर न होने की वजह से रिसीव कर लिया। जब पाटिल साहब घर पहुंचे तो लालाजी ने उन्हें नीचे नहीं रोका, बल्कि ऊपर जाने दिया, फिर थोड़ी देर बाद ऊपर पहुंच कर घंटी बजाई। पाटिल साहब की वृद्धा नौकरानी ने दरवाजा खोला तो लालाजी बोले, ‘पाटिल साहब से ही काम है, उन्हें बुला दीजिए।’ ‘आप थोड़ा बैठिए, साहब जरा बाथरूम में हैं।’ नौकरानी अंदर चली गई। लालाजी लपक कर ड्राइंग-रूम में जा बैठे। चारों ओर चौकन्नी नजरों से देखने लगे। उन्हें यह देख कर बड़ी हैरत हुई कि इतने बड़े साहब का ड्राइंग-रूम बड़ा ही साधारण था, न ढंग का सोफासेट, खिड़की-दरवाजों पर मामूली परदे, हालांकि रूम सुरुचिपूर्ण सजा था, परंतु ढंग का कोई सामान ड्राइंग-रूम में नहीं था। इतने में पाटिल साहब आ पहुंचे, नमस्ते का जवाब देते हुए आने का मकसद पूछा। जवाब में लालाजी ने वह तार पकड़ा दिया। </div><div style="text-align: justify;">टेलीग्राम पढ़ कर पाटिल साहब कुछ गमगीन-से हो गए। लालाजी ने पूछा ‘क्या बात है जी, सब कुशल तो है न?’ उनकी आवाज में अपनेपन का आभास पाकर पाटिल साहब से भी न रहा गया, बोले, ‘मेरी दो बेटियां वैलहैम्स कॉलेज में देहरादून में पढ़ती हैं, पहाड़ों पर ऐजीटेशन चल रहा है, इसलिए वहां से तार आया है कि आकर बच्चों को ले जाएं।’ ‘तो की गल है जी, तुसी जाकर हुणे ही ले आओ। हम आपके घर को देख लेंगे।’ लालाजी ने फौरन मदद का हाथ बढ़ाया। ‘घर की चिंता नहीं ब्रदर, पर ये देहरादून आना-जाना हमारे बजट में नहीं था। अब दो-तीन हजार रुपए यूं ही खर्च हो जाएंगे।’ पाटिल साहब की मजबूरी अब समझ में आई लालाजी को। लालाजी ने पाटिल साहब की ओर देखा और बोले, ‘आप बुरा न मानो तो एक सुझाव है जी।’ ‘हां-हां कहिए!’ कह कर साहब ने मुंह के बुझे चुरुट को जलाते हुए चिंतामग्न अवस्था में कहा।</div><div style="text-align: justify;">‘आप जी, थोड़ा-बोत रुपया शेयर में लगाया करो।’ लालाजी बोले।</div><div style="text-align: justify;">‘पर हमको शेयर्स के बारे में कुछ नहीं मालूम।’ पाटिल साहब एक्सेंट से बोले।</div><div style="text-align: justify;">‘अजी, बंदा कब काम आएगा, साड्डा तो धंधा ही ये है।’ लालाजी उमगते हुए बोले। लालाजी आश्चर्यचकित थे कि इस अभेद्य से दिखने वाले किले को किस कदर महंगाई के चूहों ने खा रखा है। खैर, इसके बाद साहब की दोनों बेटियां घर पर आ गईं। लालाजी के यहां आना-जाना शुरू हो गया। पता नहीं, लालाजी ने उन्हें क्या गुर सिखाए कि पाटिल दंपती के मुख पर संतोष के भाव रहने लगे, मातृभाषा हिंदी होने लगी। दो बच्चियों के लालन-पालन, उनके करियर, शादी की चिंता के बादल छंटने लगे। शेयर की आमदनी से घर भी अच्छा सज गया। इधर, कॉलोनी के निवासियों ने अपने बच्चों को इस बिजनेसवाले माहौल से दूर हॉस्टल में डालना शुरू कर दिया, जिससे वे भी पाटिल साहब जैसे रोबीले अफसर बन सकें। </div><div style="text-align: justify;">Source : http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-187478.html </div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-37338190146647333052011-08-03T15:21:00.005+05:302011-08-05T20:42:45.605+05:30आप क्या जानते हैं हिंदी ब्लॉगिंग की मेंढक शैली के बारे में ? Frogs online<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhV_qkQab-Iw4LrbpwnFCmHf2YukW6WqNsPGimqQB039p-pkQh3zth5AAg05rCA_80CR5iZuGlmmtRRaptpMvgScSWLQZ4EzM5WBABpK7yCdsl0hYRFhHWwhFkkWygTeBn_sExXqSQcYOc/s1600/ggg.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhV_qkQab-Iw4LrbpwnFCmHf2YukW6WqNsPGimqQB039p-pkQh3zth5AAg05rCA_80CR5iZuGlmmtRRaptpMvgScSWLQZ4EzM5WBABpK7yCdsl0hYRFhHWwhFkkWygTeBn_sExXqSQcYOc/s1600/ggg.jpeg" /></a></div><div style="text-align: left;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzEOvBcrxeZnxQQU-7Ygp6GwhZCGMdCGHEjUOanvQQWplZFZkoBf8ckAA0VfJIJSundh1CMw5itTqBEkxHkuzmcVSVLLr8AAi3S05eZ-uKDFE-VOgi9gZE0S3coR-i4Im97uTa8vO948Q/s1600/delhi+ke+gangsters+as+blggers.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzEOvBcrxeZnxQQU-7Ygp6GwhZCGMdCGHEjUOanvQQWplZFZkoBf8ckAA0VfJIJSundh1CMw5itTqBEkxHkuzmcVSVLLr8AAi3S05eZ-uKDFE-VOgi9gZE0S3coR-i4Im97uTa8vO948Q/s1600/delhi+ke+gangsters+as+blggers.jpeg" /></a>पाताल को जाती हुई हिंदी ब्लॉगिंग का गुज़र दिल्ली के एक कुएँ से हुआ तो उसे कुछ मेंढकों ने लपक लिया और ब्लॉगिंग शुरू करते ही उस पर एक छत्र राज्य की स्कीम भी बना ली । वे चाहते थे कि तमाम हिंदी ब्लॉगर्स की नकेल उनके हाथ में रहे ताकि ब्लॉगिंग में वही टिके जिसे वे टिकाना चाहें और जो उनकी चापलूसी न करे , उसे वे उखाड़ फेंके चाहे वह एक सच्चा आदमी ही क्यों न हो।</div>इसके लिए उन्होंने टिप्पणी को बतौर चारा इस्तेमाल किया और तय किया कि टिप्पणी को मीठी रेवड़ियों की तरह बस अपनों में ही बांटा करेंगे। इनके लालच में दूसरे लोग भी जुड़ने लगेंगे जिससे अपना दायरा और रूतबा बढ़ेगा। बढ़ता दायरा लोगों के लालच को और बढ़ाएगा और इस तरह अपना दायरा और बढ़ जाएगा। बस, तब हम होंगे हिंदी ब्लॉगिंग की तक़दीर के मालिक और हिंदी ब्लॉगर्स हमारे सामने झुके होंगे अपने घुटनों पर।<br />
अपनी ताक़त दिखाने के लिए उन्होंने ब्लॉगर्स मीट भी की और अपनी अपनी पोस्ट में सभी ने एक दूसरे को सकारात्मक और महान विचारक bhi घोषित कर दिया । सूद खाने वाले और शराब पीने वाले इन ब्लॉगर्स में कोई तो ऐसे ऐलान भी कर गुज़रा जिन्हें सुनकर स्वर्णदंत दानी कर्ण भी पितृलोक में मुस्कुरा पड़ा । <br />
इन सब कोशिशों के बावजूद अपने कुएं से बाहर के किसी इंसान ब्लॉगर की नकेल उनके हाथ न आ सकी । तब उन्होंने टर्रा कर बहुत शोर मचाया और सोचा कि इंसान शायद इससे डर जाये लेकिन जब बात नहीं बनी तो वे समझ गए कि 'इन चेहरों को रोकना मुमकिन नहीं है।'<br />
इस बार भी उनसे सहमत वही थे जो उनके साथ कुएँ में थे ।<br />
<br />
<div style="text-align: left;">इंसान ने कुएं की मुंडेर से देख कर उनकी हालत पर अफ़सोस जताया और हिंदी ब्लॉगिंग को मेंढकों की टर्र टर्र से मुक्त कराने के लिए उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया ।<br />
------------<br />
<div style="text-align: left;"> <b style="color: blue;">कुछ उपयोगी पोस्ट्स जिनसे करेला जा चढ़ता है नीम पर और सुहागा सोने पर </b></div><div style="text-align: left;"><b>(1)</b> <b><span style="color: #cc0000;">ब्लॉगर्स मीट के बारे में ; </span><a href="http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/08/lady-rachna.html">बिना लाग लपेट के सुना रही हैं खरी खरी Lady Rachna</a></b></div><div style="text-align: left;"><b>(2) <a href="http://zealzen.blogspot.com/2011/08/blog-post_05.html">दिलों में सम्मान क्या मुलाक़ात के बाद उपजता है ? - Dr. Divya Shriwastawa</a></b></div></div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com18tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-1546803287142940322011-05-24T21:56:00.002+05:302011-05-25T10:04:02.151+05:30अल्बर्ट पिंटो को ग़ुस्सा क्यों आता है ? Part 1 (गहन विश्लेषण पर आधारित भविष्य की सुरक्षा का उपाय बताती एक प्रतीक कथा ) - Dr. Anwer Jamal<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">ध्यानी बहुत हिम्मत वाला था और ज्ञानी भी। वह जान चुका था कि जगत मिथ्या है और रिश्ते माया का बंधन। उसने कड़ी साधना की और अब वह मान-अपमान के भावों से ऊपर उठ चुका था। सभी दर्शन उसके नित्य व्यवहार में समा चुके थे। वंश चलाने के लिए उसने विवाह तो कर लिया लेकिन उसके विचारों में कोई परिवर्तन न आया।<br />
एक रोज़ वह अपनी नई नवेली पत्नी सत्या को साथ लेकर ससुराल पहुंचे तो बस से उतरते-उतरते रात हो गई और बस स्टैंड पर कोई रिक्शा वग़ैरह भी न था। घर वहां से 2 किमी. दूर था। रास्ता कम करने के लिए ध्यानी जी बाग़ से होकर गुज़रने लगे तो ज़ेवरों से लदी उनकी पत्नी डरते-डरते बोली -‘कहां जाते हो जी, कोई गुंडा बदमाश मिल गया तो ?’<br />
‘अरे मूर्ख, अल्पविश्वासी स्त्री ! क्या तू नहीं जानती कि तू किसके साथ जा रही है ?‘-ध्यानी जी ने अपनी भोली पत्नी को लताड़ा।<br />
‘किसके साथ जा रही हूं मैं ?‘-वह सचमुच ही भोली थी।<br />
‘अपने पति के साथ, जो किसी भी चीज़ से नहीं डरता। तू भी निर्भय होकर चल।‘-ध्यानी जी ने आत्मविश्वास के शिखर से कहा।<br />
‘आपको भला डर क्यों नहीं लगता ?‘-पत्नी ने उत्सुकता से पूछा तो रास्ता काटने की ग़र्ज़ से ध्यानी ने उसे बताना शुरू किया-‘क्योंकि मैं जान चुका हूं।‘<br />
‘आप क्या जान चुके हैं ?‘-भोली ने बड़े भोलेपन से पूछा।<br />
‘जो तू नहीं जानती।‘-ध्यानी ने फिर बताया।<br />
‘मैं क्या नहीं जानती स्वामी।‘<br />
‘शाश्वत सत्य, विधि का विधान और प्रकृति का नियम। इनमें से तू कुछ भी नहीं जानती।‘<br />
‘आप बताएंगे तो मैं भी जान ही जाऊंगी स्वामी।‘<br />
‘तो सुन। जो कुछ है सब एक ब्रह्म ही है। सारी सृष्टि में वही व्याप रहा है, वही भास रहा है। यह अलग है वह अलग है, यह भला है वह बुरा है। यह सब मन का वहम और दिमाग़ का फ़ितूर है। हम यहां वही काट रहे हैं जो हमने पिछले जन्मों में किया है। यहां जो भी हुआ अच्छा हुआ और जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। सब कुछ प्रारब्ध और संचित कर्मों का फल है जो भोगे बिना क्षीण नहीं हो सकता।‘-ध्यानी ने ज्ञान के मोती अपनी पत्नी पर लुटाने शुरू कर दिए।<br />
‘स्वामी क्या कर्मों के फल से मुक्ति का कोई उपाय नहीं है ?‘<br />
‘है क्यों नहीं लेकिन जो उपाय है, उसे करना हरेक के बस में नहीं है। कर्म करते समय उसमें लिप्त न होओ और अपने आस-पास की घटनाओं को भी मात्र साक्षी भाव से देखो। अपने अहं को शून्य कर लो, मानो कि तुम हो ही नहीं। अपने मन को हरेक बंधन और हरेक भाव से मुक्त कर लो तो फिर कर्मों के फल से ही नहीं जन्म-मरण के चक्र से भी मुक्ति मिल जाएगी।‘-ध्यानी ने अपनी पत्नी को बताया और अभी वह कुछ और भी बताने जा रहा था कि अंधेरे में से एक-एक करके 5 हट्टे-कट्टे बदमाश अचानक ही प्रकट हो गए। उनके चेहरे भी ठीक से नज़र नहीं आ रहे थे।<br />
‘दर्शन नाम है मेरा, दर्शन, समझा क्या ? यहां अपना राज चलता है।‘-एक ग़ुंडे ने अपना चाक़ू ध्यानी की गर्दन पर रखकर उसे डराना चाहा लेकिन ध्यानी की आंखों में डर का कोई भाव न आया। वास्तव में ही वह सिद्धि पा चुका था।<br />
‘तू यहीं रूक।‘-ग़ुंडे ने उससे कहा और उसके चारों तरफ़ अपने चाक़ू से एक गोल घेरा खींच दिया।<br />
‘ख़बरदार, जो इस घेरे से अपना पैर बाहर निकाला तो ...।‘-ग़ुंडे ने उसे धमकाया लेकिन वह साक्षी भाव से सारी घटना को देखता रहा और सोचता रहा कि जो भी हो रहा है अच्छे के लिए ही हो रहा है। वह वहीं खड़ा रहा और फिर पांचों ग़ुंडों ने उसकी पत्नी को वहीं दबोच लिया, बिल्कुल उसके सामने ही। उसकी पत्नी चिल्लाई, रोई और गिड़गिड़ाई लेकिन उन ग़ुंडों को उस पर कोई तरस न आया और न ही ध्यानी ने बदमाशों का विरोध किया। ज्ञानियों के रहते जो हश्र भारत का हुआ, वही सत्या का भी हुआ, ध्यानी के सामने ही। एक-एक मिनट उसे एक-एक सदी जैसा लग रहा था और घंटे भर बाद जब पांचों ने उसे छोड़ा तो उसे ऐसा लगा जैसे कि उसे पांच हज़ार साल बीत चुके हों। रोते-सिसकते हुए उसने अपने बाल और अपने कपड़े दुरूस्त किए और फिर लड़खड़ाते हुए वह एक पेड़ का सहारा लेकर खड़ी हो गई। तभी एक ग़ुंडे ने सत्या के ज़ेवर उतारने शूरू कर दिए।<br />
‘नहीं उसके ज़ेवर मत लूटो बेवक़ूफ़।‘-दर्शन ने उसके सिर पर चपत जमा कर कहा।<br />
‘क्यों उस्ताद ?‘-उसके चमचे ने पूछा।<br />
‘ज़ेवर औरत की जान होती है मूरख। उसके बिना वह मर जाएगी।‘-उसने राज़ की बात बताई।<br />
‘आप कितने दयालु हैं उस्ताद ! जय हो।‘-चेला नारा लगाते हुए पीछे हट गया और एक-एक करके वे पांचों फिर अंधेरे में ही समा गए।<br />
उनके जाने के बाद सत्या दौड़कर ध्यानी से लिपट गई और दहाड़ें मार मारकर रोने लगी। अचानक ही ध्यानी ठहाके लगाकर हंसने लगा। वहां अजीब मंज़र था, पत्नी बुरी तरह रो रही थी और उसका पति बेतहाशा हंसे जा रहा था। ध्यानी इसी हाल में अपनी पत्नी को सहारा देकर बाग़ से बाहर ले आया।<br />
रास्ते में जूस की दुकान नज़र आई तो ध्यानी उस पर रूक गया। यह दुकान अल्बर्ट पिंटो की थी। ध्यानी ने अल्बर्ट को जूस बनाने के लिए कहा, तब तक सत्या भी कुछ आपे में आ गई थी। उसे हैरत थी कि उसके पति ने उसे बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया और फिर जब वह रो रही थी तब भी वह हंसे जा रहा था। आखिर उसने पूछ ही लिया-‘आप इतना हंस क्यों रहे थे ?‘<br />
‘मैंने, अकेले ने पांच-पांच ग़ुंडों को मूरख बना दिया। बड़ा घमंड दिखा रहे थे अपनी ताक़त का लेकिन उन्हें पता भी नहीं चला।‘-ध्यानी ने अपने हुनर की तारीफ़ की।<br />
‘आपने ग़ुडों को कब और कैसे मूरख बना दिया ?‘-सत्या हैरान थी।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAOp4dTM1X4r4oa-RyEktQXTHObLiDu4FwgVKgAOEh5t7ZD9P547YTTbM8dI0EQaPSsgadYNZ89XDXnS2IVDLfgD-plXEgGIfMc4scw-Bz2R78JoijBNWK_uIA22hYjCbPqYSvU5Pn3bU/s1600/Albert+Pinto+%25E0%25A4%2585%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AC%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%259F+%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%259F%25E0%25A5%258B+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258B+%25E0%25A5%259A%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2582+%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2588.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAOp4dTM1X4r4oa-RyEktQXTHObLiDu4FwgVKgAOEh5t7ZD9P547YTTbM8dI0EQaPSsgadYNZ89XDXnS2IVDLfgD-plXEgGIfMc4scw-Bz2R78JoijBNWK_uIA22hYjCbPqYSvU5Pn3bU/s1600/Albert+Pinto+%25E0%25A4%2585%25E0%25A4%25B2%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AC%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%259F+%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%259F%25E0%25A5%258B+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258B+%25E0%25A5%259A%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B8%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF%25E0%25A5%258B%25E0%25A4%2582+%25E0%25A4%2586%25E0%25A4%25A4%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%25B9%25E0%25A5%2588.jpg" /></a></div>‘सत्या ! तुम्हें याद है कि दर्शन ने मुझे धमकी दी थी कि मैं घेरे से पैर बिल्कुल भी बाहर न निकालूं ?‘-ध्यानी ने पूछा।<br />
‘हां, उसने कहा तो था।‘<br />
‘बस, जब वे सारे तुम्हारे पास थे तो मैंने चुपके-चुपके कई बार अपना पैर घेरे से बाहर निकाला था और उन मूरखों को कुछ भी पता न चला। मैं इसीलिए हंस रहा था।‘-ध्यानी ने बताया और सत्या ने सुनकर अपना माथा पीट लिया।<br />
<div style="text-align: left;">अल्बर्ट पिंटो भी ज़्यादा दूर नहीं था। सत्या का हाल देखकर अंदाज़ा तो उसे भी हो गया था कि उस पर क्या बीती होगी लेकिन अब उसने सब कुछ सुन भी लिया था और उसके दिमाग़ की नसों में तनाव और ग़ुस्सा समाने लगा। ध्यानी विजयी मुस्कान के साथ जूस पीने लगा और अल्बर्ट पिंटो को भरपूर ग़ुस्सा आने लगा। (...जारी)</div><div style="text-align: center;">-------------------------------------------</div><div style="text-align: center;">इस कहानी की पृष्ठभूमि जानने के लिए देखें :</div><div style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="color: #222222; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; line-height: 16px;"></span></div><h3 class="post-title entry-title" style="font: normal normal normal 22px/normal Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0.75em; position: relative; text-align: center;"><a href="http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/blog-post_3988.html">उसे हंसी आ रही है और मुझे रोना / यहाँ देखिए एक से एक नमूना</a></h3></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8566224444256762815.post-47759742398635005072011-01-29T21:01:00.002+05:302011-02-15T09:57:19.536+05:30मेरे जितने विरोधी हैं , उनमें से कोई एक भी इस कलाम को हल करने की ताक़त नहीं रखता The challenge<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjC3fyed2IZem7sEwF7bpqgPr5DL8h229ZYF8tZfr_Mb5iIjtL_sYqH4bNv3tCZipMqgXHIsIglbgSooHG8ncxcB4wrrBSgyYqMR-FvTDvIJbvxfGZHFqghhFgOeFPUvd9qwpB3-nbsi-4/s1600/Srinagar+men+Morcha.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjC3fyed2IZem7sEwF7bpqgPr5DL8h229ZYF8tZfr_Mb5iIjtL_sYqH4bNv3tCZipMqgXHIsIglbgSooHG8ncxcB4wrrBSgyYqMR-FvTDvIJbvxfGZHFqghhFgOeFPUvd9qwpB3-nbsi-4/s320/Srinagar+men+Morcha.jpg" width="320" /></a></div><div style="text-align: center;"><span style="background-color: yellow; color: purple; font-size: large;">कलाम ए हाली</span><br />
दर्दे दिल को दवा से क्या मतलब<br />
कीमिया को तिला से क्या मतलब<br />
<br />
चश्मा ए ज़िंदगी है ज़िक्रे जमील<br />
ख़िज़्रो आबे बक़ा से क्या मतलब<br />
<br />
बादशाही है नफ़्स की तस्ख़ीर<br />
ज़िल्ले बाले हुमा से क्या मतलब<br />
<br />
गरचे है रिन्द दामने आलूदा<br />
हमको चूनो चरा से क्या मतलब<br />
<br />
जो करेंगे भरेंगे खुद वाइज़<br />
तुमको हमारी ख़ता से क्या मतलब<br />
<br />
काम है मरदुमी से इंसां की <br />
ज़ोहोदो इत्क़ा से क्या मतलब<br />
<br />
नकहते मै पे जो ग़श हैं ‘हाली‘<br />
उनको दुर्दो सफ़ा से क्या मतलब</div><div style="text-align: center;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUPV3tawV53chpxnwyXORCGPmVh_uJn98ixcCkgq0AVtFSVFw7vIZQOgpc5Ph5Uhekl1cu4xX9S-a2LdPftbK2mSBL4se48W38v0tI3xVJAbsEZiT7sNLnmkwNZRATsqs11px8ZNC3f_k/s1600/21122010103.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUPV3tawV53chpxnwyXORCGPmVh_uJn98ixcCkgq0AVtFSVFw7vIZQOgpc5Ph5Uhekl1cu4xX9S-a2LdPftbK2mSBL4se48W38v0tI3xVJAbsEZiT7sNLnmkwNZRATsqs11px8ZNC3f_k/s320/21122010103.jpg" width="320" /></a></div><br />
यह कलाम हमें जनाब हकीम ज़मीरूद्दीन अहमद सलीम तुर्क मावराउन्नहरी साहब ने बतारीख़ 24 जनवरी 2011 को सुनाया तो हमने फ़ौरन उनसे इसे अपनी डायरी में तहरीर करवा लिया और अब आपके सामने बग़र्ज़े इम्तेहान पेश है। मेरे जितने विरोधी मेरी समझ पर अक्सर सवाल खड़े करते हैं। उनमें से कोई एक भी इस कलाम को हल करने की ताक़त नहीं रखता। अगर कोई रखता है तो वह सामने आए। <br />
जो मेरा विरोधी नहीं है, वह आराम से इसका लुत्फ़ ले। हर चीज़ समझ आना ज़रूरी भी नहीं है। कुछ चीज़ें रहस्यमय रहें तो अपना आकर्षण बनाए रखती हैं। <br />
इस कलाम को हल करने के लिए मैं कुछ दिन बाद खुद किसी उर्दू दां ब्लागर से दरख्वास्त करूंगा। तब तक आप सब्र रखें और बेवजह मेरा विरोध करने वालों के ज्ञान की हक़ीक़त देखें।<br />
<div style="text-align: center;">ख़ास तौर पर डा. श्याम गुप्ता जी के इल्मो-फ़ज़्ल को देख लें क्योंकि वे कहते हैं कि उन्हें</div><div style="text-align: center;"><a href="http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/01/blessings.html?showComment=1296304080685#c9166885839775105083"><b style="background-color: #ffd966; color: #990000;">जन्नत की हक़ीक़त</b></a> </div><div style="text-align: center;">पता है। शायरी की समझ का दावा भी वे बेमौक़ा किया करते हैं। </div><div style="text-align: center;">अब मौक़ा है, अब वे सामने नहीं आएंगे, ऐसा मुझे यक़ीन है।</div>पहाड़ यहां क़ायम कर दिया गया है, देखें कौन इसकी चोटी पर अपना झंडा फहराने में कामयाब होता है ?DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com8