Monday, December 13, 2010

ज्ञानमधुशाला (Ghazal) - Anwer Jamal

कैसे कोई समझाएगा पीड़ा का सुख होता क्या
गर सुख होता पीड़ा में तो खुद वो रोता क्या

इजाज़त हो तेरी तो हम कर सकते हैं बयाँ
दुख की हक़ीक़त भी और दुख होता क्या

ख़ारिज में हवादिस हैं दाख़िल में अहसास फ़क़त
वर्ना दुख होता क्या है और सुख होता क्या

सोच के पैमाने बदल मय बदल मयख़ाना बदल
ज्ञानमधु पी के देख कि सच्चा सुख होता क्या

भुला दे जो ख़ुदी को हुक्म की ख़ातिर
क्या परवाह उसे दर्द की दुख होता क्या

आशिक़ झेलता है दुख वस्ल के शौक़ में
बाद वस्ल के याद किसे कि दुख होता क्या

पीड़ा सहकर बच्चे को जनम देती है माँ
माँ से पूछो पीड़ा का सुख होता क्या
"""""""""
ख़ारिज - बाहर, हवादिस - हादसे, दाख़िल में - अंदर
हुक्म - ईशवाणी, ख़ुदी - ख़ुद का वुजूद, वस्ल- मिलन

13 comments:

Ayaz ahmad said...

वाह अनवर साहब आपने तो ज्ञान की मधुशाला भी खोल दी । आपके लेख पढ़कर तो पहले ही सरुर क्या कम होता था । अब तो सब झूम ही उठेगें ।

Ayaz ahmad said...
This comment has been removed by the author.
Ayaz ahmad said...

अच्छी ग़ज़ल

Saleem Khan said...

SAHI KAHA AAPNE BHAI!!!

Shabad shabad said...

अच्छी गज़ल
सुन्दर प्रस्तुति..
नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !

अविनाश वाचस्पति said...

मीठा मीठा सारा सुख है
मुबारकबाद भी बेहतर रूख है
एक हिन्‍दी ब्‍लॉगर पसंद है

Unknown said...

नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें!

पल पल करके दिन बीता दिन दिन करके साल।
नया साल लाए खुशी सबको करे निहाल॥

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

सोच के पैमाने बदल मय बदल मयख़ाना बदल
ज्ञानमधु पी के देख कि सच्चा सुख होता क्या

भुला दे जो ख़ुदी को हुक्म की ख़ातिर
क्या परवाह उसे दर्द की दुख होता क्या

bahot khoobsurat likha hai!

नीरज गोस्वामी said...

जमाल भाई आज पहली बार आप के ब्लॉग पर आना हुआ...आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं...मेरी दाद कबूल करें...

नीरज

POOJA... said...

बहुत प्यार से खूबसूरत दर्दों की दास्ताँ कह दी आपने
यही बात हर इंसां समझ जाता तो दुःख ही क्या होता...
बहुत खूब...

DR. ANWER JAMAL said...

@ बहन पूजा जी ! दर्द की दास्तान को एक औरत से ज़्यादा भला कौन पहचान सकता है ?
औरत दर्द से जन्म लेती है , पहले बेटी और फिर बहू होने का दर्द सहती है । मासिक धर्म का दर्द भी वही सहती है और प्रसव के समय का दर्द भी उसी का मुक़द्दर है और उसके बाद भी ढेरों दर्द हैं जिन्हें वह झेलती हैं और फिर भी मुस्कुराती है और तब वह कहलाती है

प्यारी माँ

इस प्यारे से ब्लाग के ज़रिए मैं एक मां के अज़ीम किरदार को सामने लाने की कोशिश कर रहा हूं और आपसे सहयोग की आशा रखता हूँ ।
कृप्या एक लेखिका के रूप में इस ब्लाग से जुड़कर अपने दायित्व को पूरा करें।
अपनी ईमेल आईडी भेजने की कृपा करें ताकि औपचारिक रूप से आपको निमंत्रित किया जा सके।
धन्यवाद !
eshvani@gmail.com

Minakshi Pant said...

पीड़ा सहकर बच्चे को जनम देती है माँ
माँ से पूछो पीड़ा का सुख होता क्या


बहुत खुबसूरत और सच बात किसी किसी दर्द में भी सकूँ मिलता है !

जब दर्द होता है तभी तो शब्द को जुबान मिलती है !

बिना दर्द के तो शब्द भी बेजुबान होती है !

एहसासों को दर्शाती सुन्दर रचना !

dr. shama khan said...

औरत के दर्द को महसुस कर गहराई से उकेरने के लेये शुक्रिया .....