परिन्दे अपनी कहानी सुनाके रोने लगे
बिछुड़ने वाले अचानक जो बरसों बाद मिले
वो मुस्कुराने लगे , मुस्कुराके रोने लगे
खुशी मिली तो खुशी में शरीक सबको किया
मिले जो ग़म तो अकेले में जाके रोने लगे
फिर आई ईद तो अब के बरस भी कुछ मां-बाप
गले से अपने खिलौने लगाके रोने लगे
- शफ़क़ बिजनौरी , निकट मदीना प्रेस
बिजनौर - 246701
जनाब शफ़क़ बिजनौरी साहब से मेरी मुलाक़ात दिसम्बर 2008 में जम्मू के ‘वैष्णवी धाम‘ में उस समय हुई जबकि हम हरदम मौत के निशाने पर थे। बचकर घर लौटने की उम्मीद बहुत कम थी और घर से चलते वक्त मैं अपनी वसीयत करके चला था कि अगर मैं इस मिशन में मारा गया तो मेरे बाद उन्हें किन बातों का ख़ास ख़याल रखना है।
ईद क़रीब थी, घरवाले और बच्चे याद आ रहे थे। इसी दरम्यान जम्मू की एक बड़ी आर्ट यूनिवर्सिटी में एक तरही मुशायरे का आयोजन हुआ जिसमें जम्मू के शायर इकठ्ठा हुए। उसमें मेहमान शायर के तौर पर बिजनौर के दूसरे शायरों के साथ जनाब शफ़क़ बिजनौरी को भी बुलाया गया जोकि उस वक्त वैष्णवी धाम में हमारे साथ ही ठहरे हुए थे।
इस ग़ज़ल को मैंने सुना तो मेरी आंखों में आंसू आ गये। मेरी ही क्या वहां मौजूद हर आदमी की आंखें नम हो गयीं। यह ग़ज़ल मैंने उनसे अपनी डायरी में लिखवा ली थी और आज के दिन मैं इसे आपको गिफ़्ट करता हूं। इसे आपके लिए और आज के लिए ही बचाकर रखा गया था और महसूस कीजिये उन मां-बापों का दर्द जो अपने बच्चों को त्यौहार पर नये कपड़े, जूते और खिलौने नहीं दिला पाते। हर वर्ग के ग़रीबों का दर्द त्यौहार पर एकसा ही होता है।
त्यौहार आ रहा है। आपके लिए खुदा की तरफ़ से आज़माईश का एक मौक़ा आ रहा है। आपकी खुशी तभी मुकम्मल होगी जबकि समाज के कमज़ोर वर्ग को भी आप खुशी दे पाएं, अपनी खुशी में उन्हें शरीक कर पाएं।
फ़ितरा एक निश्चित दान है, रोज़े की ज़कात है। इसका मक़सद भी यही है। ईद की नमाज़ को जाने से पहले फ़ितरा ज़रूर अदा कर दीजियेगा।
12 comments:
खुशी मिली तो खुशी में शरीक सबको किया
मिले जो ग़म तो अकेले में जाके रोने लगे
फिर आई ईद तो अब के बरस भी कुछ मां-बाप
गले से अपने खिलौने लगाके रोने लगे
बहुत ही सच्ची और अच्छी गज़ल
आपकी खुशी तभी मुकम्मल होगी जबकि समाज के कमज़ोर वर्ग को भी आप खुशी दे पाएं, अपनी खुशी में उन्हें शरीक कर पाएं।
बहुत ही अच्छा और सच्चा सन्देश
अच्छी पंक्तिया है ....
अच्छा लेख है .....
यहाँ भी आइये ........
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html
क़फ़स में हंसते थे , गुलशन में जाके रोने लगे
परिन्दे अपनी कहानी सुनाके रोने लगे
khubsurat sher mubarak ho
"बिछुड़ने वाले अचानक जो बरसों बाद मिले
वो मुस्कुराने लगे , मुस्कुराके रोने लगे"
यही होता है. सुन्दर आब्जर्वेसन.
हर शेर बयान-ए-हकीक़त,
उम्दा पोस्ट.
आदाब.
इस ग़ज़ल पर ईद मुबारक - एडवांस में!
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल है, एक-एक शेर बहुत कुछ कह रहा है । ख़ास तौर पर अंतिम शेर "फिर आई ईद तो अब के बरस भी कुछ मां-बाप
गले से अपने खिलौने लगाके रोने लगे" हम सब की तरफ से आप सभी को " ईद मुबारक"
बढिया लिखा है !!
बहुत अच्छी ग़ज़ल
Thanks for sharing the beautiful poem. Also Big thanks for your courage and commitment to our nation.
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बिछुड़ने वाले अचानक जो बरसों बाद मिले
वो मुस्कुराने लगे , मुस्कुराके रोने लगे....
awesome !
very touching lines.
.
ईद पर बहुत बढिया गजल और जानकारी
aapne meri kitab padhi hogi,,,na padhi ho ya kisi ko padhwana chahen to hamare blog par padhaaren
सत्यार्थ प्रकाशः समीक्षा की समीक्षा
http://satishchandgupta.blogspot.com/
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल....
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