कथा के चोले में सच को सजाने की एक अल्हड़ सी कोशिश
‘ सदा सहिष्णु भारत‘ शीर्षक लिखकर मिश्रा जी अपनी नयी पोस्ट पब्लिश कर दी। इसमें उन्होंने प्राचीन भारत के दार्शनिकों के हवाले देकर साबित किया था कि यहां लोगों को सोचने की आज़ादी आज से नहीं बल्कि हमेशा से है।----
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यह पोस्ट आधा तीतर आधा बटेर बनकर रह गई है। सबसे पहले सलीम साहब ने,फिर क्रमशः शहरोज़ भाई, उमर साहब और शाहनवाज़ भाई ने भी अपना फ़ोन पर अपना ऐतराज़ जताया था। उमर कैरानवी साहब ने इसे एक घटिया पोस्ट क़रार दिया है और गुरू वही है जो ग़लती बताये, मार्ग दिखाये और शिष्य वह है जो अपनी कमी को कुबूल करे और उसे दूर भी करे। वैसे इसे पोस्ट करते समय भी मेरे मन में खटक थी लेकिन ख़याल था कि एक कहानी है लेकिन ‘निष्पक्ष लेखकों‘ ने बताया कि कहानी है तो इसमें नाम असली क्यों हैं ?
... और वाक़ई यह एक बड़ी ग़लती है जिसकी वजह से जनाब मिश्रा जी अपने गुस्से में भी हक़ बजानिब हैं और सज़ा देने में भी। मेरे दिल में उनके लिये प्यार और सम्मान है और एक लेखक के लिये सबसे बड़ी नाकामी यह है कि वह अपने जज़्बात को भी ढंग से अदा न कर पाये। मैं इस कहानी को खेद सहित वापस लेता हूं और कमेंट्स ज्यों के त्यों रहने देता हूं ताकि मुझे अपनी ख़ता का अहसास होता रहे और जिन्हें पीड़ा पहुंची है उन्हें कुछ राहत मिल सके। मैं एक बार फिर आप सभी हज़रात से क्षमा याचना करता हूं।
ब्लॉगिंग का उद्देश्य स्वस्थ संवाद होना चाहिये जोकि अपने और देश-समाज के विकास के लिये बेहद ज़रूरी है। सबका हित इसी में है। मेरे लेखन का उद्देश्य भी यही है। नाजायज़ दबाव मैं किसी का मानता नहीं और ग़लती का अहसास होते ही फिर मैं उसे रिमूव करने में देर लगाता नहीं।
सो यह पोस्ट रिमूव की जाती है।
9 comments:
@आदरणीय एवं प्रिय अनवर जी
स्वयं के अहंकार को दूर रखके अपनी गलती मानने और निष्पक्षतापूर्वक दूसरे को उसकी गलती बताने के लिए काफी हिम्मत और होंसला चाहिए जो की इस पोस्ट के माध्यम से आपने एक बार फिर से साबित कर दिया की आपमें वो हिम्मत और होंसला है
आपके इस कदम का बहुत-२ स्वागत है
आभार
महक
मनुष्य समाज का जो क़बीला ,जो जाति जो धर्म सत्ता में आ जाता है वह समाज की श्रेष्ठता के पैमाने अपनी श्रेष्ठता के आधार पर ही बना देता है [यह श्रेष्ठता होती भी है या नहीं यह अलग प्रश्न है] यानी सत्ता आये हुए की शक्ती ही व्यवस्था और कानून हो जाया करती है,
सशंकित होना क्या जायज़ नहीं कि क्या वास्तव में आज ऐसा हो रहा है !!
गर हो रहा है तो मुखर विरोध होना चाहिए.
plz plz read
शमा ए हरम हो या दिया सोमनाथ का
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
@ शहरोज़ साहब ! आदमी समूह में रहता है और व्यवस्था में जीता है। व्यवस्था में ख़राबी की वजह से आदमी और समाज दुखी रहता है। वह दुख से मुक्ति का हरसंभव उपाय करता है लेकिन उसकी मुसीबतें पहले से ज़्यादा और ज़्यादा होती रहती हैं। उसे याद ही नहीं रहता कि जिस ईश्वर ने उसे जीवन दिया है उसने उसे व्यवस्था भी दी है जो जीवन के हरेक पहलू में काम देती है। राजनेता और धर्मगुरू भी अपने-अपने राजनीतिक और आध्यात्मिक दर्शनों में लोगों को उलझाये और भरमाये रहते हैं लेकिन उन्हें धर्म और दर्शन के बीच मौजूद बुनियादी फ़र्क़ तक नहीं समझाते और जो समझाना चाहते हैं उन्हें अपने हितों का दुश्मन देखकर जनता को उनके खि़लाफ़ खड़ा करने में सारा ज़ोर लगा देते हैं। पहले भी यही हुआ और मनु महाराज के काल जल प्रलय आई,आज भी यही हो रहा है और अग्नि प्रलय हर ओर हो रही है। निराश मानवता ईश्वर और उसकी दण्ड व्यवस्था के बारे में सशंकित है लेकिन अगर यहां न्याय नहीं है तो फिर न्याय कहीं और तो ज़रूर ही है। जो न्याय पूरी मानव जाति को अपेक्षित है वह उसे ज़रूर मिलेगा चाहे उसके लिये उस मालिक को फ़ना हो चुकी सारी मानव जाति को नये सिरे से जीवित करना पड़े। वह जीवनदान का दिन ही न्याय दिवस है, जो चाहे मान ले और जो चाहे इन्कार कर दे। लेकिन किसी के इन्कार से हक़ीक़त बदला नहीं करती। सृष्टि के आदि से , वेदों से लेकर कुरआन तक दोबारा जन्म, आवागमन नहीं बल्कि केवल दूसरे जन्म का जो ज़िक्र तत्वदर्शियों ने किया है, वह होकर रहेगा। जो ज़ालिम अपने दबदबे के चलते यहां सज़ा से बच निकलते हैं, वहां धर लिये जाएंगे। धर्म यही कहता है और मैं इसे मानता हूं। यही मानना आदमी को आशावादी बनाता है, जीवन के मौजूदा कष्ट झेलना आसान बनाता है।
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html?showComment=1281266175841#c7842753521943884721
मैं आपके इस कदम का स्वागत करता हूँ । माफी माँगकर आपने एक बार फिर अपने आपको साबित ही किया ।
सही क़दम!
वह व्यक्ति अच्छा माना जाता है जो ग़लती न करे लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं. लिहाज़ा उससे भी अच्छा वह है जो ग़लती को तस्लीम करले. आप मुबारकबाद के हकदार हैं कुबूल करें.
सही क़दम!
मिश्रा जी की और आपकी पिछली पोस्ट तो नही पढ पाई मगर आपकी आज की बात से सहमत हूँ। शुभकामनायें
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