Sunday, August 28, 2011

चूहों से परेशान तेनालीराम


तेनाली राम के बारे में

(1520 ई. में दक्षिण भारत के विजयनगर राज्य में राजा कृष्णदेव राय हुआ करते थे। तेनाली राम उनके दरबार में अपने हास-परिहास से लोगों का मनोरंजन किया करते थे। उनकी खासियत थी कि गम्भीर से गम्भीर विषय को भी वह हंसते-हंसते हल कर देते थे।

उनका जन्म गुंटूर जिले के गलीपाडु नामक कस्बे में हुआ था। तेनाली राम के पिता बचपन में ही गुजर गए थे। बचपन में उनका नाम ‘राम लिंग’ था, चूंकि उनकी परवरिश अपने ननिहाल ‘तेनाली’ में हुई थी, इसलिए बाद में लोग उन्हें तेनाली राम के नाम से पुकारने लगे।

विजयनगर के राजा के पास नौकरी पाने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। कई बार उन्हें और उनके परिवार को भूखा भी रहना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी और कृष्णदेव राय के पास नौकरी पा ही ली। तेनाली राम की गिनती राजा कृष्णदेव राय के आठ दिग्गजों में होती है।)

चूहों की समस्या


चूहों ने तेनाली राम के घर में बड़ा उत्पात मचा रखा था। एक दिन चूहों ने तेनालीराम की पत्नी की एक सुंदर साड़ी में काटकर एक छेद बना दिया। तेनाली राम और उनकी पत्नी को बहुत क्रोध आया। उन्होंने सोचा-“इन्हें पकड़कर मारना ही पड़ेगा। नहीं तो न जाने ओर कितना नुकसान कर दें।”
बहुत कोशिश करने पर भी चूहे उनके हाथ नहीं लग रहे थे। वे संदूकों और दूसरे सामान के पीछे जाकर छिप जाते। भागते-दौड़ते, घंटों की कोशिश के बाद कहीं एक चूहा पकड़कर मार पाए। तेनाली राम बड़ा परेशान था।

आखिर वह अपने एक मित्र के पास गया, जिसने उसे सलाह दी कि चूहों से छुटकारा पाने के लिए एक बिल्ली पाल लो। वही इस मुसीबत का इलाज है। तेनाली राम ने बिल्ली पाल ली और सचमुच उसके यहां चूहों का उत्पात कम होने लगा। उसने चैन की सांस ली।

अचानक एक दिन उसकी बिल्ली ने पड़ोसियों के पालतू तोते को पकड़ लिया और मार डाला। घर की मालकिन ने अपने पति से शिकायत की और कहा कि इस दुष्ट बिल्ली को मार डालो। उसने तेनाली राम की बिल्ली का पीछा किया और उसे जा पकड़ा। वह उसको मारने ही वाला था कि तेनाली राम वहां आ गया।

तेनाली ने कहा-“भाई, मैंने यह बिल्ली चूहों से छुटाकारा पाने के लिए पाली है। हमें क्षमा कर दीजिए और बिल्ली मुझे वापस कर दीजिए। मुझ पर आपका बड़ा एहसान होगा।” पड़ौसी नहीं माना, बोला-“चूहे पकड़ने के लिए तुम्हें बिल्ली की क्या आवश्यकता है? मैं तो बिना बिल्ली के भी चूहे पकड़ सकता हूं।” और उसने बिल्ली को मार दिया।

कुछ दिनों बाद पड़ोसी को किसी ने एक सुन्दर संदूक उपहार भेजा। उसने अपने शयनकक्ष में जाकर संदूक खोला। उसी कमरे में उसकी पत्नी की कीमती साड़ियां रखी थीं। संदूक खोलते ही चूहों की सेना उसमें से उछलकर बाहर निकल आई। चूहे कमरे के चारों और दौड़ने लगे। वह उन्हें पकड़ने के लिए कभी बाएं तो कभी दाएं उछ्लता पर असफल रहा। उसके साथ उसके नौकर भी थे।

कई घंटों की उछलकूद के बाद कहीं जाकर उन्हें चूहों से छुटकारा मिला। पर इस दौरान उनका काफी नुकसान भी उठाना पड़ा। उनके कीमती गलीचों पर चूहों के खून के निशान पड़ चुके थे। ठोकर खाकर एक कीमती फूलदान भी टूट गया गया। 

थके हारे पड़ोसी ने जब संदूक में यह देखने का प्रयास किया कि आखिर किसने यह संदूक भेजी है, तो एक पर्ची पाई। उस पर लिखा था, “आपने कहा था कि आप बिना बिल्ली के ही चूहों पर काबू पा जाएंगे।

मैं परीक्षा के लिए कुछ चूहों को आपके यहां भेज रहा हूं। आपका तेनालीराम।” तेनालीराम का नाम पढ़ते ही पड़ोसी को सारी बात समझ में आ गई। उसने फौरन अपनी भूल के लिए तेनालीराम से माफी मांग ली।
Source : http://josh18.in.com/showstory.php?id=803872

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