कैसे कोई समझाएगा पीड़ा का सुख होता क्या
गर सुख होता पीड़ा में तो खुद वो रोता क्या
इजाज़त हो तेरी तो हम कर सकते हैं बयाँ
दुख की हक़ीक़त भी और दुख होता क्या
ख़ारिज में हवादिस हैं दाख़िल में अहसास फ़क़त
वर्ना दुख होता क्या है और सुख होता क्या
सोच के पैमाने बदल मय बदल मयख़ाना बदल
ज्ञानमधु पी के देख कि सच्चा सुख होता क्या
भुला दे जो ख़ुदी को हुक्म की ख़ातिर
क्या परवाह उसे दर्द की दुख होता क्या
आशिक़ झेलता है दुख वस्ल के शौक़ में
बाद वस्ल के याद किसे कि दुख होता क्या
पीड़ा सहकर बच्चे को जनम देती है माँ
माँ से पूछो पीड़ा का सुख होता क्या
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ख़ारिज - बाहर, हवादिस - हादसे, दाख़िल में - अंदर
हुक्म - ईशवाणी, ख़ुदी - ख़ुद का वुजूद, वस्ल- मिलन
Monday, December 13, 2010
Friday, December 10, 2010
शुक्र और शिकायत {Ghazal} - Farookh Qaisar
अपना ग़म भूल गए तेरी जफ़ा भूल गए
हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गए
अब तो सोचा है दामन ही तेरा थामेंगे
हाथ जब हमने उठाए हैं दुआ भूल गए
शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो
तुमने वो दर्द दिया है कि दवा भूल गए
हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गए
अब तो सोचा है दामन ही तेरा थामेंगे
हाथ जब हमने उठाए हैं दुआ भूल गए
शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो
तुमने वो दर्द दिया है कि दवा भूल गए
Thursday, December 9, 2010
'दाग़ ए दिल' {Ghazal} -Hafeez Merathi
अजीब लोग हैं क्या मुंसिफ़ी की है
हमारे क़त्ल को कहते हैं ख़ुदकुशी की है
ये बांकपन था हमारा के ज़ुल्म पर हमने
बजाए नाला-ओ-फ़रियाद शायरी की है
ज़रा से पांव भिगोए थे जाके दरिया में
ग़ुरूर ये है कि हमने शनावरी की है
इसी लहू में तुम्हारा सफ़ीना डूबेगा
ये क़त्ल-ऐ-आम नहीं तुमने ख़ुदकुशी की है
हमारी क़द्र करो चौदहवीं के चाँद हैं हम
ख़ुद अपने दाग़ दिखाने को रौशनी की है
उदासियों को 'हफ़ीज़' आप अपने घर रखें
के अंजुमन को ज़रूरत शगुफ़्तगी की है
हमारे क़त्ल को कहते हैं ख़ुदकुशी की है
ये बांकपन था हमारा के ज़ुल्म पर हमने
बजाए नाला-ओ-फ़रियाद शायरी की है
ज़रा से पांव भिगोए थे जाके दरिया में
ग़ुरूर ये है कि हमने शनावरी की है
इसी लहू में तुम्हारा सफ़ीना डूबेगा
ये क़त्ल-ऐ-आम नहीं तुमने ख़ुदकुशी की है
हमारी क़द्र करो चौदहवीं के चाँद हैं हम
ख़ुद अपने दाग़ दिखाने को रौशनी की है
उदासियों को 'हफ़ीज़' आप अपने घर रखें
के अंजुमन को ज़रूरत शगुफ़्तगी की है
Monday, December 6, 2010
Message of peace अमन का पैग़ाम (एक इच्छा और वसीयत भारत माता की)
पैग़ाम है माँ का ये बेटे के नाम
तेरा काम है देना अमन का पैग़ाम
तेरा काम है देना अमन का पैग़ाम
क्या माँ ने झूठ बोला था सोचा बहुत सुबह शाम
फिर सवाल किया मैंने लेकर प्रभु का नाम
निहारा उसने ऐसे मुझको जैसे मैं घनश्याम
फिर यूँ बोली मुझसे बेटा मत दे इल्ज़ाम
जो कहा उसे तू इक वसीयत समझ मेरी
जिसे पूरा करना ही अब है तेरा काम
हंस यहां अपशकुन करे जंगल जले तमाम
हर पेड़ पे लिखना अल्लाह तू पात पात पे राम
अपने रूप सा सुंदर तू बनाना दुनिया सारी
हर जन को पहुंचाकर 'अमन का पैग़ाम'
(मशहूर शायर जनाब अमीर नहटौरी के कलाम से मुतास्सिर होकर)
आग नफ़रत की दिलों से तुम बुझा दो लोगो
प्यार के फूल गुलशन में फिर खिला दो लोगो
हमने वेद ओ क़ुरआन से यही सीखा है
दर्स वहदत का दुनिया को पढ़ा दो लोगो
एक थे एक हैं और एक रहेंगे हम सदा
यह अमल करके दुश्मन को दिखा दो लोगो
विनती हरेक से यही करता है अनवर
धर्म के लिए मत की हर दिवार गिरा दो लोगो
(मशहूर शायर जनाब अमीर नह्टोरी के कलाम से मुतास्सिर होकर)
..........
वहदत-एकत्व
आग नफ़रत की दिलों से तुम बुझा दो लोगो
प्यार के फूल गुलशन में फिर खिला दो लोगो
हमने वेद ओ क़ुरआन से यही सीखा है
दर्स वहदत का दुनिया को पढ़ा दो लोगो
एक थे एक हैं और एक रहेंगे हम सदा
यह अमल करके दुश्मन को दिखा दो लोगो
विनती हरेक से यही करता है अनवर
धर्म के लिए मत की हर दिवार गिरा दो लोगो
(मशहूर शायर जनाब अमीर नह्टोरी के कलाम से मुतास्सिर होकर)
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वहदत-एकत्व
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