Sunday, March 3, 2013

हीरामन की चौथी क़सम -Sudheesh Pachauri, हिंदी साहित्यकार

हीरामन ने हताश होकर चौथी कसम खाई कि अब किसी हीरा बाई की कहानी को ठीक नहीं करेंगे। इतनी मेहनत की और हीरा बाई ने थैंक्यू तक न कहा। हमने उसे बनाया, लेकिन उस थैंकलेस ने एक बार हमारा जिक्र नहीं किया। हम न होते, तो वह आज कहां होती? नाम कमा लिया, तो नजरें फेर लीं! कसम खाते हैं कि आगे से कभी किसी हीरा बाई को कथाकार नहीं बनाएंगे!

रेणु की तीसरी कसम  कहानी में तीसरी कसम खाकर हीरामन स्टेशन से बाहर निकले। घर आए। गाड़ी चलाना छोड़ लेखनी चलाने लगे। कथाकार हुए। साहित्य के ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ के अनुकूल सभी देवताओं को पूजा चढ़ाई। संपादक साधे। आचार्यों को प्रसन्न किया। इनाम झटके। चर्चा होने लगी। नाम चलने लगा। इनाम टपकते रहे। अकादमी पर टकटकी लगी।

हीरामन भोले थे। गंवई थे। उपकारी थे। रचनाकार थे। चेलों से ज्यादा चेलियां पसंद थीं। चेली देखते ही कहते कि तुम में प्रतिभा है, लेकिन सही मार्गदर्शन जरूरी है। हमें गुरु मानो। हम बतावेंगे कि किस तरह लिखा जाता है। एक दिन हम तुम्हें लेखिका बना देंगे। साहित्य की बयार स्त्रियों की ओर बहती थी। चेलियां चंट थीं। वे हिसाब लगातीं कि हीरा गुरु साहित्य में जिस तिस से जुड़ा है। दिल्ली वाले बड़े-बड़े नाम उसकी मानते हैं। वह अलेखिकाओं को लेखिका बना सकता है, मैं तो लेखिका हूं।
हर शहर में संभावनावान लेखिकाएं होती हैं। हर शहर में एक-दो हीरामन हुआ करते हैं। सबको साहित्य की गाड़ी चलाने वाला एक ठो गाड़ीवान चाहिए। बिना एक हीरामन के साहित्य की गाड़ी आगे नहीं बढ़ती। हीरामनों की डिमांड बनी रहती है। हीरामन सब टोटके जानते थे। बिना खर्चा के साहित्य में चर्चा नहीं होती। आसामी देखते, तो कैश की डिमांड बढ़ा देते और आसामिन हुई, तो यों ही कृपालु हो उठते। हिंदी में लेखिकाओं के घोर अकाल को देख वह लेखिका बनाने का अपना ऐतिहासक कर्तव्य निभाने चले थे।
उन्होंने ‘नई कहानी’ का ‘द विंसी कोड’ पढ़ रखा था, जो कहता था कि हर लेखक के पीछे एक पत्नी के अलावा एक लेखिका (प्रेमिका) जरूरी होती है। ऐसी ही किसी शुभ घड़ी में उनके पास एक संभावनाशील लेखिका आई। आप हमारी कथा देख लें, यह विनती की। साहित्य की अनजान नगरी में हम नई हैं। आप सर्वज्ञ हैं। हमारी कथा ठीक न लगे, तो ठीक कर दें। हीरामन ने बड़ी मेहनत से कथा करेक्ट की। इतनी  तो कभी अपनी करेक्ट न कर सके। लेखिका को प्रकाशक मिल गए। कथा प्रकाशित हो गई और देखते-देखते लेखिका का नाम फैल गया। हर पत्रिका में रिव्यू हो गया। हीरामन की कल्पना से भी स्वतंत्र शक्तियां साहित्य में सक्रिय हो उठीं। सब गुण ग्राहक थे। इनाम-इकराम की बातें फैलने लगीं। लेखिका आजाद हो गई। पंख फैलाने लगी।
हीरामन निराशा में डूब गए। बदले की कार्रवाई में उनका मर्द जाग गया। फिल्मी हीरो की तरह कहने लगे: इतना घमंड? हम बना सकते हैं, तो मिटा भी सकते हैं। कसम खाते हैं कि अब कभी किसी हीरा बाई को लेखिका नहीं बनाएंगे! हिंदी में स्त्रियों का अपना पक्ष ज्यों ही आजाद होता है,  हीरामनों का मर्दवाद कह उठता है, ‘उसे क्या आता था? मैंने बनाया है उसे लेखिका!’ ऐसे स्त्री-विरोधी वातावरण में अगर कोई लेखिका दुर्दमनीय हो साहित्य में निकल पड़ती है, तो उसकी जय बोलने का मन करता है..।
साभार दैनिक हिन्दुस्तान दिनांक 3 मार्च 2013
Source : 

हिंदी में स्त्रियों का अपना पक्ष ज्यों ही आजाद होता है, हीरामनों का मर्दवाद कह उठता है, ‘उसे क्या आता था ? (व्यंग्य)-Sudheesh Pachauri

3 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!
आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1173 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

अज़ीज़ जौनपुरी said...

SUNDAR PRASTUTI, HIRAMAN BEZAR HAI

Dinesh pareek said...

बहुत खूब सुन्दर

मेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

ये कैसी मोहब्बत है