Tuesday, January 25, 2011

चाँद जागता रहा, रात हुई माधुरी Moon on the bed

चाँद जागता रहा, रात हुई माधुरी







धूप फागुनी खिली
बयार बसन्ती चली,
सरसों के रंग में
मधुमाती गंध मिली.

मीत के मन प्रीत जगे
सतरंगी गीत उगे ,
धरती को मदिर कर
महुए  हैं  रतजगे.

अंग अंग दहक रहे
पोर पोर कसक रहे,
पिय से मिलने को
रोम रोम लहक रहे.

अधर दबाये हुए
पुलक रही है बावरी,
चाँद जागता रहा
रात हुई माधुरी. 

@ डाक्टर पवन कुमार मिश्रा जी ! 'वाह' शब्द उस चीज़ के लिए बोला जाता है जो कि काबिले तारीफ़ होती है.
'वाह वाह' का मतलब है कि चाएज़ निहायत ही उम्दा है .लेकिन जिस  चीज़ कि तारीफ़ के लिए 'वाह वाह'
लफ्ज़ भी छोटा पड़ जाये और मन में उभरने वाले अहसासात को ज़ाहिर करने  के लिए  कोई लफ़्ज़ न मिले तब उस रचना की अज़्मत को और उस रचनाकार की महानता को सलाम करने के लिए कोई चीज़ भेंट दी जाती है . सबसे बड़ी भेंट है जीवन का एक अंश किसी को देना , अपना समय दे देना , जो कि एक प्रशंसक देता है अपने प्रिय कलाकार को . जीवन का अर्थ है समय  और धन प्राप्ति में भी समय ही खपाना  पड़ता  है तब कुछ मुद्रा हाथ आती है . मूल्य धन का नहीं है . मूल्य है समय का  जो कि मुद्रा में रूपांतरित हो जाता है . किसी विचार का कोई मूल्य नहीं है . मूल्य उस भाव का है जो कि एक रचनाकार अपनी रचना में प्रकट करता है , मूल्य उस भाव का है जो उसका प्रशंसक उसे भेंट करते समय अपने दिल में रखता है . मूल्य उस प्रेम का है जो रचनाकार और उसके प्रशंसकों के दरमियान होता है .
आपकी यह कविता ब्लाग जगत की ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य की भी  एक अनुपम कृति है . इसने मुझे अन्दर तक अभिभूत कर दिया है . अपने जज़्बात को आप पर ज़ाहिर करने कि ख़ातिर एक छोटी सी भेंट आपको प्रेषित है , उसे स्वीकार करके आप मुझे शुक्रिया का मौक़ा दें . इस अनुपम रचना को मैं अपने ब्लाग 'मन की दुनिया' पर पेश कर रहा हूँ .
धन्यवाद.

http://pachhuapawan.blogspot.com/2011/01/blog-post_20.html

7 comments:

POOJA... said...

वाह वाह...

Anonymous said...

मार ले बेटा मक्खन जितना जी चाहे, मिश्रा जी नहीं तेरे झांसे मे आने वाले।

जयकृष्ण राय तुषार said...

very nice congrats

PAWAN VIJAY said...

रविन्द्र नाथ जी
एक शेर अर्ज है
इन आब्लो के पाँव से घबरा गया था मै
जी खुश हुआ है राह को पुर खार देख कर
अगर इस मौके पर हमने अनवर जमाल को प्यार नहीं दिया तो यह हमारी मुहब्बत की तौहीन होगी
बाकी
हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ
मै अपने दुश्मन को ख़त्म करना चाहता हूँ .....
अगर जमाल एक कदम आये है तो मै दस कदम आगे बढ़ कर गले लगाऊंगा
और मै सभी बंधुओ से चाहूँगा कि इस कदम क़ा समर्थन करे
नफरत से नफरत बढ़ती है
एक बार प्यार के रास्ते पर चल कर देखा जाय

निर्मला कपिला said...

िस सुन्दर रचना को पढवाने के लिये आभार। आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

shikha varshney said...

बहुत सुंदर....

सञ्जय झा said...

achhi lagne wali baat ko apne achhi nazron se pesh-e-khidmat ki
iske liye apko.....bahut sukriya.

aur hum mishraji baton se apna iktphak rakhte hain.....

salam jamal bhaijan.